माहवारी पर बात करने में #NOSHAME

निशा शर्मा।
भारत हो या दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश चीन किसी भी देश में माहवारी या पीरियडस पर खुल कर बात नहीं की जाती। भारत जैसे देशों में तो जिन महिलाओं को इसकी जानकारी नहीं होती वह इसे बीमारी के तौर पर देखती हैं या पूरी उम्र इसके बारे में अशिक्षित। इसी तरह कई देशों में माहवारी को एक ऐसी चीज की तरह जताया जाता है जिस पर खुलकर बात करना औरत के दायरे के बाहर का हो। हालही में महावारी (पीरियड्स)  का मामला  तब सुर्खियों में आया जब ओलंपिक में हार के बाद स्विमर फू युआनहुई ने खुलासा किया कि  वह वे बहुत तेजी से इसलिए नहीं तैर पाईं, क्योंकि एक दिन पहले ही उन्हें महावारी (पीरियड्स) शुरू हुए थे। उनके इस बोल्ड रिएक्शन की तारीफ पूरे चीन में ही नहीं बल्कि दुनिया में हो रही है।
खासकर महिलाएं  इस मामले पर खुलकर नहीं बोलती हैं जिसकी वजह से वह कईं बार गलत भी ठहरा दी जाती हैं। 20 साल की फू युआनहुई स्विमिंग में महिलाओं की 4×100 मीटर रिले में लू यिंग, शी जिनग्लिन और झू मेंघुई के साथ उतरी थीं। चीनी टीम मेडल की बड़ी दावेदार थीं, लेकिन इवेंट में चौथे नंबर पर रह गई। इस इवेंट के बाद एक रिपोर्टर ने टीम के तीन तैराकों का इंटरव्यू लिया, लेकिन फू का पता नहीं चल पाया।  फू उस वक्त एक बोर्ड के पीछे दुबकी हुई थीं। रिपोर्टर वहां भी पहुंच गया। जब उसने हार को लेकर फू से रिएक्शन मांगा, तो फू ने कहा, “इस बार मैं ठीक से नहीं तैर पाई। मैंने अपने साथियों को नीचा दिखाया।” उन्हें दर्द से परेशान देख रिपोर्टर ने पूछा- “आप ठीक तो हैं?” इस पर फू ने बताया “मेरे पीरियड्स कल ही शुरू हए थे। इसलिए मैं थकान महसूस कर रही थी।”
चीन के समर्थकों के लिए यह यह भावनात्मक क्षण था। फिर क्या था सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में लोगों ने ट्वीट और पोस्ट करने शुरू कर दिए।
कई बार ऐसा होता है कि महिला खिलाड़ियों के कोच पुरूष होते हैं और ऐसे में कईं महिला खिलाड़ी इस मामले में खुलकर बोल नहीं पाती हैं और निराशाजनक बातों का सामना उन्हे करना पड़ता है।
भारत हो या कोई और देश सब जगह महावारी को लेकर खुलकर बात की जानी चाहिए। नीचे दिखाया गया एनिमेटिड वीडियो बताता है कि भारत में कितने प्रतिशत महिलाएं हैं जिन्हे महावारी की पूरी तरह से जानकारी ना मिलने की वजह से वह या तो किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाती हैं या फिर अपनी अगली पीढ़ी को भी महावारी के बारे में रूढिवादी विचारों को ढोने के  लिए मजबूर कर देती हैं।

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