नई दिल्ली। पहली जून से महंगाई की नई खेप के लिए तैयार हो जाइए क्योंकि सर्विस टैक्स के रूप में अब आधा फीसदी ज्यादा टैक्स देना होगा। इससे मोबाइल फोन, क्रेडिट कार्ड, टैक्सी, रेस्टोरेंट का बिल, मूवी, एयर और ट्रेन के टिकट सहित हर तरह की सेवाएं महंगी हो जाएंगी। राहत की बात यह है कि डेबिट या क्रेडिट कार्ड से टिकट बुक कराने पर अब सर्विस चार्ज के रूप में 30 रुपये अलग से नहीं देने होंगे।

दरअसल, कृषि कल्याण सेस के लिए सर्विस टैक्स को 14.5 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी किया जा रहा है। इसके साथ ही पहली तारीख से लग्जरी टैक्स भी लागू हो जाएगा। यानी अगर आप 10 लाख रुपये से ज्यादा की कार खरीदते हैं तो उसके लिए 1 फीसदी का अतिरिक्त टैक्स आपको भरना पड़ेगा।

इससे पहले पिछले साल सरकार ने स्वच्छ भारत सेस लगाया था। दो साल के भीतर ही सर्विस टैक्स 12.36 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी पर पहुंच गया है। जिन अन्य सेवाओं के लिए अब आपके पहले से ज्यादा खर्च करना होगा उनमें डीटीएच, बिजली, पानी आदि के बिल, बैंकिंग, बीमा सेवाएं शामिल हैं।

बता दें कि मोदी सरकार ने बजट के दौरान 0.5 फीसदी कृषि कल्याण सेस लगाने का एेलान किया था। इसके जरिए सरकार कृषि और किसानों की योजनाओं के लिए पांच हजार करोड़ रुपये जुटाना चाहती है। एक साल में तमाम सेस से सरकार 1.16 लाख करोड़ रुपये जुटा लेती है।जानकारों का कहना है कि सर्विस टैक्स 18 फीसदी तक संभव है। यह जीएसटी की संभावित दर के करीब आ सकती है। सर्विस टैक्स सरकार के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बनती जा रही है। इसका अंदाजा इस आंकड़े से लगाया जा सकता है कि सर्विस टैक्स कलेक्शन सालाना 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
गूगल टैक्स की भी शुरुआत

इसके साथ ही पहली जून से कारोबारियों और कंपनियों पर छह फीसदी गूगल टैक्स भी लगने जा रहा है। यह वह टैक्स है जिसे लेकर बजट में ही प्रावधान कर दिया गया था। इसे इस रूप में भी समझा जा सकता है कि इंटरनेट पर भारतीय व्यापारियों या कंपनियों के विज्ञापन या अन्य सेवाओं, जिसमें सेवा प्रदात्ता कंपनी विदेशी हो, पर अब टैक्स देना होगा। इसके तहत देश के कारोबारियों/कंपनियों द्वारा विदेशी ऑनलाइन सर्विस प्रोवाइडरों, जिनमें ट्विटर, फेसबुक, गूगल और याहू जैसी कंपनियां शामिल हैं, आदि को दिए ऑनलाइन ऐड के लिए भुगतान की गई राशि पर टैक्स वसूला जाएगा। इसे तकनीकी रूप से इक्वालाइजेशन लेवी का नाम दिया गया है। इसे सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस  ने नोटिफाई किया है। चूंकि इंटरनेट पर अधिकांश व्यापार व विज्ञापन गूगल के माध्यम से होते हैं, इसलिए आम भाषा में इसे गूगल टैक्स कहा जा रहा है।

हालांकि यह केवल तभी चुकाना होगा जब पेमेंट की राशि पूरे वित्तीय वर्ष में एक लाख रुपये से अधिक हो। यह लेवी पूरी तरह से बिजनेस टु बिजनेस ट्रांजैक्शन्स पर ही लागू होगा। जानकारों का कहना है कि भविष्य में चलकर इसे लेकर तीन कठिनाइयां हो सकती हैं। पहली, इस टैक्स को लागू करने में एक बड़ी दिक्कत यह आ सकती है कि विदेशी कंपनियां अपने बिजनेस डाटा संभवत: शेयर न करें। दूसरी, टैक्स की दर उन टैक्सों से कम है जो भारतीय कारोबारियों की इनकम पर लगाया जाता है। तीसरी दिक्कत यह है कि नोटिफिकेशन में जिस इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर की बात की गई है, उसे अभी उचित और पूरी तरह से कानूनी जामा नहीं पहनाया जा सका है।