संध्या दि्ववेदी

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के सवालों का जवाब नहीं देगा। बोर्ड ने अपने समुदाय से आयोग द्वारा जारी की गई प्रश्नावली का बहिष्कार करने की अपील की है। बोर्ड का मानना है कि यह प्रश्नावली एक साजिश है, समान नागरिक संहिता को जबरन थोपने की। उधर मुस्लिम औरतों के हक में काम करने वाली संस्थाओं ने विधि आयोग के इस कदम को सराहनीय बताया। मुस्लिम कार्यकर्ता जकिया सोमन ने साफ कहा “ समान नागरिक संहिता की वैकल्पिक व्यवस्था से हमे एतराज नहीं है।”

विधि आयोग ने एक प्रश्नावली जारी की है। इस प्रश्नावली में देश के लोगों से सवाल पूछे गए हैं। इसका पहला सवाल कानूनी तर्क को आधार बनाकर पूछा गया है। सवाल है- क्या आप जानते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में यह उपबंधित है कि राज्य, “भारत के समस्त क्षेत्र में भारत के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा।” लगातार समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड केंद्र सरकार के इस कदम से बेहद खफा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव हजरत मौलाना वली रहमानी ने साफ कहा कि हमारे धार्मिक मसले में कोर्ट दखल नहीं दे सकता। इस तरह का कदम धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है।

इसी प्रश्नावली में एक बार में तिहरे तलाक जैसी प्रथा के सवाल को भी उठाया गया है। हालांकि इसमें केवल मुस्लिम समुदाय के ही नहीं बल्कि हिंदूओं और इसाइयों के विवाह, संपत्ति में अधिकार संबंधित सवाल भी हैं। लेकिन जैसी कि उम्मीद थी पहली प्रतिक्रिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से ही आई। हालांकि मुस्लिम समुदाय में जेंडर जस्टिस को लेकर लंबे समय से काम करने वाले संगठन विधि आयोग के इस कदम को मुस्लिम औरतों को बराबरी देने की तरफ उठाया गया एक कदम मान रहे हैं। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन संस्था की सह संस्थापक जकिया सोमन की मानें तो विधि आयोग अपना काम कर रहा है। हम लोकतंत्र में रहते हैं, किसी मसले में जनमत संग्रह करना तो एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने कहा “ समान नागरिक संहिता अगर वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में लागू हो जाए तो क्या बुराई है। एक कानूनी मैरिज एक्ट होना जरूरी है। दरअसल मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जेंडर जस्टिस के मुद्दे पर सियासत कर रहा है। ये लोग धर्म की आड़ लेकर औरतों के साथ इंसाफ नहीं होना देना चाहते।” उन्होंने कहा , “जो लोग यह कह रहे हैं कि रहती दुनिया तक यानी कयामत तक शरीयत में बदलाव नहीं हो सकता तो उन्हें मालूम होना चाहिए कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में बदलाव किए जा चुके हैं, तो इस तरह की बातें करने वाले मौलवियों से पूछना चाहती हूं कि इस्लामिक देशों में बदलाव मुमकिन है तो हिंदुस्तान में क्यों नहीं? वहां तो कयामत भी नहीं आई और पर्सनल लॉ में बदलाव भी कर दिए गए।”

जमियत उलेमा-ए-हिंद के अरसद मदनी ने कुछ दिन पहले कहा था “रहती दुनिया तक पर्सनल लॉ बोर्ड में बदलाव नहीं किया जा सकता।” जकिया सोमन का कहना है कि दरअसल ये लोग मर्दवादी सोच से बाहर नहीं आना चाहते। ये लोग धर्म पर खतरे का ढिंढोरा पीटकर लोगों को डराना चाहते हैं ताकि लोग घबराकर किसी भी सुधार से मना कर दें। जबकि असल में ये लोग पितृ सत्ता की जड़ों के हिलने से घबराएं हैं। मगर अब हिंदुस्तान का मुसलमान उनकी बातों में नहीं आने वाला। आगे उन्होंने कहा “सच तो यह है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक गैर सरकारी संगठन से ज्यादा कुछ भी नहीं जिसने लोगों को धर्म का खौफ दिखा-दिखाकर अपना वजूद स्थापित किया है। जकिया सोमन ने कहा “कुरान में मुस्लिम औऱतों को बराबर के हक दिए गए हैं। लेकिन आजादी के बाद से मुस्लिम औरतें इस बराबरी से महरूम हैं। आम हिंदुस्तानी औरत न्याय चाहती है। मुस्लिम औरतें भी हिंदुस्तानी हैं, इसलिए हम भी कुरान और भारत के संविधान की जद में न्याय चाहते हैं।”

भारतीय मुस्लिम महिला संगठन लंबे समय से मौजूदा तिहरे तलाक के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। सुप्रीम कोर्ट में इस संस्था की ओर से मौजूदा तिहरे तलाक को खत्म करने की याचिका दाखिल की जा चुकी है। साथ ही प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से भी इस मामले में दखल देने की गुहार लगाई गई है। विधि आयोग ने 45 दिनों के अंदर लोगों से इस प्रश्नावली के जवाब और राय मांगी है।