उधार के पानी से जिंदा होगी सरस्वती

ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो।

आखिरकार हरियाणा सरकार ने सरस्वती नदी को जिंदा करने की तारीख घोषित कर दी। सरकार की ओर से दावा किया गया कि 30 जुलाई को नदी में पानी छोड़ा जाएगा लेकिन यह उधार का पानी होगा। कुछ पानी यमुना नदी से उधार लिया जा रहा है और कुछ पानी चार नलकूप लगा कर जमीन से निकाला जाएगा। दावा है कि इस तरह से नदी जिंदा हो जाएगी। हरियाणा सरस्वती विकास बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन प्रशांत भारद्वाज ने ओपिनियन पोस्ट को बताया कि हमारी योजना है कि दादूपुर फीडर से उंचा चंदाना तक पानी लाया जाए। इसके बाद सरस्वती में पानी छोड़ा जाएगा। इसके साथ ही छह बोरवेल ओएनजीसी और दो बोरवेल वाडिया इंस्टीट्यूट आॅफ जियोलॉजी, देहरादून के सहयोग से लगाए जाएंगे। इस पानी को नदी में डाला जाएगा। नदी के रास्ते को साफ करने का काम इसी माह पूरा हो जाएगा। इसके बाद इसमें पानी छोड़ा जाएगा। उन्होंने दावा किया कि इसके साथ ही नदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने का काम भी किया जाएगा।
विशेषज्ञ सरकार के इस प्रयास को अवैज्ञानिक करार दे रहे हैं। उनका तर्क है कि सरकार ने बिना वैज्ञानिक तथ्यों व रिसर्च के आनन फानन में ही नदी को जिंदा करने की जिद पाल रखी है। सरस्वती नदी पर रिसर्च कर रहे पर्यावरण विशेषज्ञ डॉक्टर अमरीक सिंह ने कहा, ‘नदी की परिभाषा पर सरकार का यह प्रयास खरा नहीं उतरता क्योंकि नदी बनाई नहीं जाती। जिसे खुदाई करके बनाया जाता है वह नदी नहीं नहर होती है। फिर इसे नदी कैसे कह सकते हैं। दूसरी बात यह है कि सरस्वती नदी का वह पानी कहां गया जिसे खोजने का दावा किया जा रहा था। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि नदी का पानी जमीन के नीचे बह रहा है। इसे जमीन पर लाया जा सकता है।’

दो साल से सूखे से दो चार हो रहे हरियाणा में क्या पानी की यह बर्बादी उचित है। कृषि विभाग के मुताबिक प्रदेश में डार्क जोन तेजी से बढ़ रहे हैं। पानी के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संस्था आकृति के अध्यक्ष अनुज ने बताया कि प्रदेश में भूजल का स्तर हर साल औसतन 30 फीट की रफ्तार से नीचे जा रहा है। इसका पता अभी इसलिए नहीं चल रहा है क्योंकि यहां के किसान समर्सिबल बोरवेल लगवा रहे हैं। इसमें होता यह है कि पानी निकालते ही मोटर की गहराई किसान आसानी से बढ़वा लेते हैं। दूसरा यहां उन्हें बिजली पर इतनी सब्सिडी दी जा रही है कि बिजली का बिल मामूली ही आता है। ऐसे में अभी इसका असर नजर नहीं आ रहा है लेकिन यह बहुत खतरनाक स्थिति है। प्रदेश का 30 फीसदी पानी सिर्फ सिंचाई में खर्च हो रहा है। पूरा दक्षिण हरियाणा पानी के लिए तरस रहा है। ऐसे प्रदेश में आप एक नदी को जिंदा करने के लिए कितना पानी खर्च करेंगे। दूसरा यह है कि यमुनानगर जहां बोरवेल लगाने की बात हो रही है वहां कृषि विभाग के मुताबिक रादौर, मुस्तफाबाद, छछरौली, बिलासुपर और जगाधरी में भूजल स्तर गंभीर स्थिति में है। ऐसे में वहां सरकार छह गहरे बोरवेल लगा कर उनका पानी लगातार नदी में डालेगी तो यह पानी की बर्बादी ही होगी। इससे तो यहां रेगिस्तान ही बन जाएगा।
फिर आरटीआई में चुप्पी क्यों

आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर एक साल से लगातार सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत नदी पर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। बार बार अपील के बावजूद कपूर को इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा रही है। कपूर ने ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में कहा कि 30 मार्च 2015 को यमुनानगर में लुप्त सरस्वती नदी मिलने की जो घोषणा की गई थी वह बिना किसी प्रमाणिक रिपोर्ट के थी। राज्य सूचना आयोग में 20 मई 2016 को पेशी के दौरान डीसी यमुनानगर व डीडीपीओ ने स्वीकार किया कि लुप्त सरस्वती नदी के बारे में जो रिपोर्ट यमुनानगर प्रशासन ने तैयार की थी उसकी प्रमाणिकता की जांच नहीं कराई गई। इसी प्रकार कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी विभाग के डॉक्टर एआर चौधरी ने भी प्रामाणिकता की जांच रिपोर्ट से पल्ला झाड़ते हुए सूचित किया है कि यह रिसर्च का विषय है और इसमें समय लगेगा।

पानीपत के आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने हरियाणा सरकार व यमुनानगर प्रशासन के इन दावों की सच्चाई जानने के लिए 3 जून 2015 को डीसी यमुनानगर के दफ्तर में आरटीआई लगाई। इसका गोलमोल जवाब देकर उन्हें टरका दिया गया। कपूर ने आरटीआई में पूछा था कि यमुनानगर प्रशासन ने लुप्त सरस्वती नदी को खोज निकालने के दावे करते हुए जो रिपोर्ट तैयार की है उस रिपोर्ट की प्रामाणिकता की जांच क्या राज्य सरकार, केंद्र सरकार या राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थान से कराई? इस सवाल का जवाब नहीं मिलने पर कपूर ने राज्य सूचना आयोग में 14 नवंबर 2015 को दो अलग-अलग अपील दायर की। दोनों अपीलों पर राज्य सूचना आयोग ने डीडीपीओ यमुनानगर को सूचनाएं नहीं देने का दोषी मानते हुए 50 हजार रुपये जुर्माने का कारण बताओ नोटिस जारी किया। 20 मई को राज्य सूचना आयुक्त समीर माथुर के समक्ष पेश होकर डीसी यमुनानगर एसएस फुलिया व डीडीपीओ यमुनानगर गगनदीप सिंह ने स्वीकार किया कि लुप्त सरस्वती नदी खोज निकालने के दावों की प्रामाणकिता की जांच सरकार ने कहीं से नहीं करवाई।

सरस्वती नदी आस्था का प्रतीक : सीएम
उधर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बताया कि सरस्वती नदी हमारी आस्था का प्रतीक है। हम वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर ही नदी की खोज कर रहे हैं। इसके पीछे बहुत रिसर्च हुई है। सरकार की योजना अगले साल फरवरी में राष्ट्रीय स्तर पर सरस्वती महोत्सव मनाने की है। इसके लिए उन राज्यों के साथ समन्वय स्थापित किया जाएगा जहां-जहां पौराणिक सरस्वती नदी बहती थी। सीएम ने दावा किया कि जुलाई के अंत तक सरस्वती नदी में सभी कार्य जैसे कि खुदाई, सफाई और पानी छोड़ने का काम पूरा हो जाएगा ताकि आदिबद्री से पौराणिक नदी का जो उद्गम स्थल है, से दोबारा पानी चल सके। नदी के कुल 50 किलोमीटर हिस्से में से पहले ही 40 किलोमीटर हिस्से की सफाई का काम पूरा कर लिया गया है। जल्दी ही शेष हिस्से की सफाई का काम पूरा किया जाएगा। इसके अलावा 20 पुलों का निर्माण भी किया जाएगा जिसमें से 18 पुलों के निर्माण का कार्य आवंटित किया जा चुका है।

भाजपा को होगा सियासी नुकसान
आस्था अलग है और हकीकत अलग। सरस्वती नदी किसानों के खेतों से होकर गुजर रही है। नदी की खुदाई की वजह से खेत दो हिस्सों में बंट गए हैं। अब किसानों को अपने खेत के दूसरे हिस्से में जाने के लिए लंबा चक्कर काटना पड़ेगा। इससे पहले यहां एक नहर निकाली गई थी। इससे भी किसानों के खेत दो हिस्सों में बंट गए थे। अब सरस्वती नदी की खुदाई से किसानों को यही दिक्कत आएगी। यमुनानगर जिले के गांव बिहटा के किसान सुखपाल व सतपाल ने बताया कि हम इस नदी का विरोध करेंगे क्योंकि उनकी जमीन को नदी के नाम पर लिया जा रहा है। युवा किसान संघ के प्रधान प्रमोद चौहान ने बताया कि हम अगले माह सरस्वती नदी के रास्ते में पड़ने वाले किसानों की एक सभा बुला रहे हैं। इसमें सारे मुद्दों पर चर्चा कर आगे की रणनीति बनाई जाएगी। नदी के नाम पर सरकार किसानों को परेशान कर रही है। इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इसके लिए एक जनहित याचिका भी कोर्ट में दायर की जाएगी क्योंकि यह पानी का बेजा इस्तेमाल है।

नदी के रास्ते पर भी विवाद
सरकार नदी के रास्ते का जो दावा कर रही है क्या वह प्रमाणिक है। इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। सरस्वती नदी पर शोध कर रहे इतिहास के प्रोफेसर डॉक्टर संतोष कुमार ने बताया कि घग्गर नदी सरस्वती नदी है क्योंकि घग्गर नदी के किनारे पर सभ्यता के निशान मिलते हैं। जो रास्ता हरियाणा सरकार बता रही है वह सही नहीं है क्योंकि यह हो सकता है कि लुप्त हुई नदी सरस्वती की वह एक सहायक नदी हो। इतना ही नहीं मारकंडा नदी और दूसरी नदियां भी आगे चल कर घग्गर में मिल जाती हैं। इससे इस नदी का विस्तार काफी बड़ा हो जाता है। ऐसे में इस बात पर भी रिसर्च होनी चाहिए कि वास्तव में सरस्वती नदी है कहां? एक तरफा निर्णय से न सरस्वती नदी का भला होने वाला है न ही जनता का और न ही सरकार का।

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