संध्या द्विवेदी
12 जनवरी को छपरा गांव की एक आशा कार्यकर्ता निकली तो अपने बच्चे को दवा दिलाने थी, उसने दवा दिलवा भी दी। मगर अपने बच्चे को उसने अकेला ही घर भेज दिया। खुद घर जाने की जगह उसने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। कारण बना एक वीडियो जो मोबाइल पर वायरल हो चुका था। इस वीडियो में आत्महत्या करने वाली महिला के साथ हुए बलात्कार की कहानी दर्ज थी। हालांकि यह वीडियो करीब दो महीने पुराना था। मगर यह बात आशा कार्यकर्ता ने अपनी इज्जत खोने के डर से दबा ली थी। पर, जब यह वीडियो गांव ही नहीं जिले के कई हिस्सों तक पहुंच गया तो शर्मसार हुई इस महिला ने आत्महत्या कर ली। राहगीरों ने महिला को अस्पताल पहुंचाया, मगर रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। इस गांव के पूर्व प्रधान अनिल ने बताया, ‘गांव में यह पहला मामला है। दोनों rape-ashaसमुदाय यहां मेल-मिलाप के साथ रहते हैं। चार हजार की आबादी वाले इस गांव में पैंतालीस फीसदी हिंदू और पचपन फीसदी मुस्लिम हैं। यहां कभी कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई। यहां तक कि दो साल पहले हुए दंगों के वक्त भी यह गांव सुरक्षित रहा था। महिलाओं के लिए भी यह गांव पूरी तरह सुरक्षित है। ऐसी घटना तो पहली बार सामने आई है।’

पहली बार नहीं हुआ ऐसा
मगर सवाल यह भी उठता है कि अगर वीडियो न वायरल होता तो न महिला आत्महत्या करती और न ही बलात्कार की यह घटना ही सामने आती। इस इलाके की ही एक दूसरी आशा कार्यकर्ता की राय छपरा गांव के पूर्व प्रधान अनिल की राय से अलग है। उसने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘घटनाएं तो होती रहती हैं। औरतों के साथ छेड़छाड़ तो आम बात है। बलात्कार भी हुए हैं। मगर दब गए। कुछ घर वाले ही इज्जत बचाने के लिए ऐसी घटनाओं को दबा लेते हैं तो कहीं आरोपी दबंग होता है तो धमकी देकर ऐसी घटनाएं दबा दी जाती हैं।’
इस औरत की यह बात ग्रामीण इलाकों में कानून व्यवस्था की स्थिति देखकर और इज्जत की भारी-भरकम गठरी लादे रखने वाली औरतों को देखकर समझी जा सकती है। दो परिवारों की लड़ाई में अक्सर औरतें ही दुश्मनी निकालने का जरिया बनती हैं। छेड़छाड़ से बचने के लिए लड़कियों का स्कूल आना-जाना बंद करा दिया जाता है। पति और ससुराल के लोगों की हिंसा जब तक असहनीय न हो जाए, तब तक सहने की सलाह दी जाती है। यही सब वजहें हैं कि औरतों के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा के सही-सही आंकड़े निकालना आज भी कठिन काम है। आशा कार्यकर्ता की इस घटना को बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना इसलिए जरूरी था क्योंकि गांव के जिम्मेदार लोग यही कह रहे हैं कि हमारे गांव में पहले ऐसी कोई घटना नहीं हुई। जबकि इसी आशा कार्यकर्ता ने यह भी बताया कि गांव के ही जिम्मेदार लोगों ने उसे बताया है कि उनके फोन टेप हो रहे हैं। उन पर प्रशासन की नजर है। इसलिए गांव के लोगों का इस मुद्दे पर मुंह खोलना खतरा बन सकता है। इसीलिए यह आशा भी बड़ी मुश्किल के बाद हमसे बात करने के लिए तैयार हुई। यह आशा मृतक आशा कार्यकर्ता की खास सहेली थी। इसलिए इस आशा कार्यकर्ता को तो कई लोग रास्ते में रोककर धमकी भी दे चुके हैं कि मुंह खोला तो उसका भी वही हाल होगा जो उसकी सहेली का हुआ था।

rapevictimClipartचौकन्ना प्रशासन और मौका तलाशते नेता
छपरा थाने की ही नहीं बल्कि पूरे मुजफ्फरनगर जिले की पुलिस चुस्त है, प्रशासन चौकन्ना है। छपार थाना क्षेत्र के एस.ओ. भानु प्रताप सिंह ने बताया कि सांप्रदायिक रंग देने वाले लोग तो अपना काम करेंगे ही। मगर अबकी पुलिस पूरी तरह चौकस है। गांव में सिपाही लगातार पहरा दे रहे हैं। लेकिन इस आशंका से इनकार भी नहीं किया कि अगर इतनी सावधानी न बरती जाती तो यह घटना सांप्रदायिक बन सकती थी। अभी भी हम लगातार चौकन्ने बने हुए हैं। उन्होंने भी यही बताया कि यौन हिंसा का वीडियो बनाकर महिला को ब्लैकमेल करने की घटना का मामला इस थाने में उनके सामने पहली बार आया है।
हालांकि इतनी पुलिसिया चौकसी के बाद भी नेतागिरी जारी है। गांव में नेता जा रहे हैं और बयानबाजी हो रही है। संगीत सोम, सांसद संजीव बालियान वहां पहुंच चुके हैं। भाजपा की बयान वीरांगना साध्वी प्राची 16 जनवरी को उस पीड़ित महिला के परिवार से न केवल मिलीं बल्कि लोगों की मानें तो उन्होंने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आग भी उगली। गांव के कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने खुलेआम कहा कि मुस्लिमों के लिए दो ही जगह हैं। पहली पाकिस्तान, दूसरी कब्रिस्तान। इसके बाद वे 21 जनवरी को आशा की तेरहवीं में पहुंची। यानी सांप्रदायिक हिंसा के लिए माहौल बनाने की भरसक कोशिशें तो हुर्इं। राहत वाली बात यह है कि अभी तक तो गांव का माहौल शांत है। उधर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना नजर भी मृतक आशा कार्यकर्ता के घर पहुंचे। हालांकि उन्होंने किसी भी तरह का भड़काऊ बयान देने की जगह आरोपियों को पकड़वाने में पुलिस की मदद की। छपार थाना के एस.ओ. ने भी इस बात की पुष्टि की कि तीनों आरोपी शाईद, सलमान और चांद मियां को पकड़वाने में जमीयत ने हमारी मदद की। खुद मौलाना नजर भी इसे दो संप्रदायों से जोड़कर देखने की जगह इसे महज अपराध की एक घटना मान रहे हैं। उन्होंने कहा कि दोषी को किसी भी धर्म से जोड़कर देखने की जगह उसे केवल अपराधी माना जाना चाहिए।

एक साल में तीन आशाओं की मौत
आशा कार्यकर्ता संगठन की जिलाध्यक्ष निर्मला इस मामले को किसी एक आशा कार्यकर्ता के साथ हुई घटना से जोड़कर देखने की जगह सभी आशा कार्यकर्ताओं के परिप्रेक्ष्य में देख रही हैं। उन्होंने बताया, ‘आशाओं को दिन हो या रात कभी भी जरूरत के वक्त पहुंचना ही पड़ता है। यह पहली घटना है, कहना गलत होगा। हां, पहली बार ऐसा मामला सामने जरूर आया है। रहाणे गांव की आशा के साथ भी ऐसी ही घटना घटी थी। मगर दोषी के परिवार वालों ने ले-दे%