जम्मू-कश्मीर एक बार फिर अशांति के दौर से गुजर रहा है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का स्थिति से निपटने का तरीका पिछली सरकारों से अलग नजर आ रहा है। मोदी सरकार की अब तक की नीति से लग रहा है कि वह पिछली सरकारों की गलतियों को दोहराना नहीं चाहती। यह भी संभव है कि बाद में पता चले कि वह एक नई गलती कर रही है। लेकिन सरकार के रवैए का फिलहाल तो असर दिखने लगा है। मोदी सरकार ने तय कर लिया है कि वह घाटी के अलगाववादियों से बात नहीं करेगी। यह भी कि घाटी में उत्पात मचाने और हिंसा में शामिल लोगों के प्रति सहानुभूति का रवैया नहीं अपनाया जाएगा। इस नीति के खतरे भी हैं। लेकिन हर बार स्थिति बिगड़ने पर एक ही इलाज के प्रभावी होने की एक सीमा है। केंद्र की नीति का पहला असर यह दिख रहा है कि सूबे की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती डेढ़ महीने के असमंजस से निकल आई हैं। उन्होंने केंद्र के सुर से सुर मिला लिया है। पच्चीस अगस्त को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में उन्होंने मीडिया के लोगों से बड़े तल्ख लहजे में कहा कि क्या पंद्रह साल के ये बच्चे सुरक्षा बलों के शिविर में टॉफी खरीदने गए थे या दूध खरीदने। जब सुरक्षा बलों पर हमला होगा तो बचाव में वे कार्रवाई तो करेंगे ही। जो महबूबा मुफ्ती कुछ दिन पहले तक आतंकवादी बुरहान वानी के एनकाउंटर पर भी गोलमोल बोल रही थीं, पहली बार उपद्रवी तत्वों के खिलाफ खुलकर बोलीं। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बाद जब पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भाजपा का गठबंधन हुआ तो कहा गया कि ये दो परस्पर विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों का मिलन है। लेकिन महबूबा मुफ्ती और केंद्र सरकार इस समय एक ही भाषा बोल रहे हैं। यह एक अच्छी शुरुआत है। उपद्रवियों/आतंकवादियों की बात हो या पाकिस्तान की भूमिका की बात, दोनों का स्वर एक है।

राज्य और केंद्र सरकार में यह एका केवल बयानों तक सीमित नहीं है। केंद्र सरकार चाहती थी कि उपद्रव का आयोजन करने और लोगों को उकसाने में सक्रिय भूमिका निभाने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो। राज्य के पुलिस महानिदेशक ने कश्मीर क्षेत्र के आईजी को ऐसे 169 लोगों की सूची भेजकर उन्हें पीएसए में गिरफ्तार करने का निर्देश दिया है। पीएसए के तहत बिना किसी मुकदमे के छह महीने तक जेल में रखा जा सकता है। दरअसल महबूबा की सक्रियता और निर्णायक कदम इसलिए भी उठे हैं कि ज्यादातर घटनाएं उनके प्रभाव क्षेत्र वाले दक्षिण कश्मीर में हुई हैं। यह कह कर कि इसमें केवल पांच फीसदी लोग शामिल हैं वे एक तरह से बाकी लोगों को आश्वस्त भी कर रही हैं कि उन्हें इस बड़े समुदाय की परेशानी की चिंता है। महबूबा ने कहा भी कि हमें अमन चाहने वालों और उपद्रव के लिए बच्चों का इस्तेमाल करने वालों में फर्क करना चाहिए। इस उपद्रव और कर्फ्यू के कारण लोगों को रोजाना 135 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। कश्मीर में यह पर्यटकों के आने का मौसम था। स्थानीय लोगों की आजीविका का यही सबसे बड़ा साधन है। कश्मीर घाटी में आम लोगों को आशंका थी कि अमरनाथ यात्रा खत्म होते ही सरकार घाटी को सेना के हवाले कर देगी। लेकिन सीमा सुरक्षा बल की तैनाती के बाद यह आशंका खत्म हो गई है। राजनाथ सिंह ने अपने दौरे के साथ संवाद की एक प्रक्रिया शुरू की है जिसे आगे बढ़ाने के लिए राज्य में जल्दी ही सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल लोगों से मिलने जाएगा।

कश्मीर घाटी की समस्या का कोई फौरी हल नहीं है। इसके लिए राजनीतिक दलों, सरकारों और सूबे के लोगों को मिलकर प्रयास करना पड़ेगा। अच्छी बात यह हुई है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री की आलोचना करते हुए भी ऐसा कुछ कहा या किया नहीं जिससे हालात और खराब हों। राजनाथ सिंह ने कहा कि कश्मीर के भविष्य से भारत का भविष्य जुड़ा हुआ है। दोनों को अलग करके नहीं देखा जा सकता। आठ जुलाई को उपद्रव शुरू होने के बाद से केंद्रीय गृहमंत्री का यह दूसरा कश्मीर दौरा था। घाटी की समस्या से उपजे हालात पर देश में एक राजनीतिक आम राय बनती नजर आ रही है। सबको लग रहा है कि इस मुद्दे पर दलगत हित देखने की कोशिश से किसी का हित नहीं सधने वाला। अब राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय लोगों के वास्तविक मसलों पर ध्यान दे। संवाद, विकास और विश्वास के जरिए यह करना मुश्किल नहीं है। लेकिन यह मानकर चलने में कोई हर्ज नहीं कि यह एक लम्बी और सतत चलने वाली प्रक्रिया है। राज्य सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अलगाववादी और उपद्रवी तत्वों को अलग थलग करने की है। जिस दिन इन तत्वों को स्थानीय लोगों का समर्थन मिलना बंद हो जाएगा, सरकार और सुरक्षा बलों के लिए अपना काम करना आसान हो जाएगा। नहीं भूलना चाहिए कि पंजाब में भी हम आतंकवाद से तभी लड़ पाए जब आतंकवादियों को स्थानीय लोगों का समर्थन मिलना बंद हो गया।