वीरेंद्र नाथ भट्ट।
यह सियासत में अर्श से फर्श तक की कहानी है। मोदी के मंच तक पहुंच कर सियासत की धूल में मिले दयाशंकर। बसपा सुप्रीमो मायावती को ‘वेश्या से गया गुजरा’ कह कर अपमानित करने वाले दयाशंकर सिंह की फेसबुक प्रोफाइल की टाइमलाइन पर तस्वीर में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्मृति चिन्ह देते हुए नजर आ रहे हैं। यही उनकी राजनीतिक उपलब्धि की पराकाष्ठा है। वरना 1991 से 2016 तक उनकी राजनीति लखनऊ विश्वविद्यालय के अध्यक्ष से लेकर बलिया में भाजपा से 2017 के विधानसभा चुनाव के टिकटार्थी तक ही सीमित रही।
एक बार विधायकी लड़े मगर बुरी तरह से हार गए। बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी में जगह बना चुके दयाशंकर ने न केवल अपनी सियासत को हाशिये पर ला दिया, बल्कि चुनाव से पहले दलितों को अपनी ओर एक कदम आता देख रही भाजपा को अब वही वोट बैंक तीन कदम पीछे हटता नजर आ रहा है। मूलरूप से बिहार के जिला बक्सर में गांव छुटका राजपुर के रहने वाले दयाशंकर सिंह अब बलिया के गांव मिड्ढी में बस गए हैं। उनकी सियासत एबीवीपी के साथ लखनऊ विश्वविद्यालय से शुरू हुई, जहां दयाशंकर ने 1998 में महामंत्री का चुनाव जीता था। 1999 में वह सपा के दिवंगत नेता ब्रह्माबख्श सिंह गोपाल को हरा कर यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे थे। एबीवीपी के बाद वह पहले भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश पदाधिकारियों में रहे और इसके बाद में उनको पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों में शामिल किया गया। 2007 में बलिया सदर में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा। महज 6500 वोट मिले और पांचवें नंबर पर रहे। हाल ही में दयाशंकर प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए थे।
केंद्र में सरकार बनने के बाद हुए और दबंग
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बलिया के लिए अमित शाह की कोर टीम के सदस्य दयाशंकर थे। इसके बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई। गरीब परिवारों को निशुल्क एलपीजी कनेक्शन देने की योजना के तहत बलिया में नरेंद्र मोदी की दो महीने पहले हुई रैली के मुख्य आयोजक दयाशंकर रहे थे। लखनऊ से बलिया तक पोस्टरों और बैनर में वे नजर आते रहे। रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वक्ताओं के साथ मंच पर भी नजर आये थे। इस बार बलिया सदर में उनका टिकट एक बार फिर पक्का माना जा रहा था, मगर दयाशंकर अपने एक बयान से ही अब जमीन पर आ गिरे हैं और पद और सदस्यता दोनों खो चुके हैं। गिरफ्तारी की तलवार उन पर लटक रही है और वे फरार हैं।
बीजेपी के लिए भी झटका बना बयान
दयाशंकर का घटिया बयान भाजपा के लिए भी बड़ा संकट बन गया है। संघ और भाजपा के आला पदाधिकारी दलित वोट बैंक को रिझाने की तमाम कोशिशों में लगे हुए हैं। मगर दयाशंकर का दलित नेता को लेकर दिया गया बयान अब एक बड़ा आघात है। यही नहीं दलित वोट बैंक को अपनी ओर खींच पाना बीजेपी के लिए खासा मुश्किल होने जा रहा है। जबकि बसपा को इस प्रकरण में बैठे बिठाए ही एक बड़ा मुद्दा जरूर मिल गया है।
प्रेम विवाह
बलिया की रहने वाली स्वाति ने लखनऊ विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। इसी दौरान विश्वविद्यालय में ही पढ़ने वाले छात्र नेता दयाशंकर सिंह से उनकी दोस्ती हो गई। देखते ही देखते दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों ने शादी कर ली।
रिश्तों में दरार
शादी के बाद दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चला। दयाशंकर के राजनीतिक जीवन में भागीदारी को लेकर दोनों के बीच झगड़ा भी हुआ। बात बढ़ी तो दोनों के बीच लंबे समय तक बातचीत भी बंद हो गई। लेकिन जैसे ही पति दयाशंकर की जान खतरे में पड़ी तो स्वाति ने अपने पति और बच्चों की जान बचाने के लिए मायावती पर पलटवार कर चंद घंटों में ही प्रदेश का नया चेहरा बन गर्इं। हर परिवार इस महिला के समर्थन में बातें कर रहा है। लखनऊ के आशियाना इलाके के लोग इस सहज नारी का ये रूप देख कर हैरान हैं।