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मुजफ्फरपुर के मेयर समीर कुमार की हत्या, नवरुणा अपहरण-हत्याकांड, मोतिहारी के महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए भू-अर्जन में करोड़ों का घोटाला, इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट रक्सौल के भू-अर्जन में घोटाला और मोतिहारी चीनी मिल की जमीन बेचने जैसे कई मामले तो केवल बानगी हैं. राजधानी पटना से लेकर सीमावर्ती शहर रक्सौल तक भू-माफियाओं का सिंडिकेट हावी है.

भू-माफिया, नेताओं और पुलिस के गठजोड़ का ही नतीजा है कि विभिन्न न्यायालयों में लंबित मामलों में से 60 फीसद मामले भूमि विवाद से संबंधित हैं. बिहार में भूमि विवाद को लेकर बढ़ रही वारदातों से सरकार चिंतित है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे मामलों के शीघ्र निपटारे पर जोर दे रहे हैं. भूमि विवाद से संबंधित वाद अंचल अधिकारी से लेकर राजस्व परिषद के अध्यक्ष तक के न्यायालय में चलता है. विभिन्न पदाधिकारियों के यहां भूमि विवाद से संबंधित करीब 43 हजार 670 वाद लंबित हैं. इनमें से 25050 वाद छह माह से ज्यादा समय से लंबित हैं. भू-माफिया का सिंडिकेट राजस्व कर्मचारी से लेकर उच्च पदाधिकारियों तक को अपने प्रभाव में रखता है. उनके संगठित अपराध के समक्ष पुलिस नतमस्तक है. हाल में मुजफ्फरपुर के मेयर समीर कुमार की हत्या, नवरुणा अपहरण-हत्याकांड, मोतिहारी के महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए भू-अर्जन में करोड़ों का घोटाला, इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट रक्सौल के भू-अर्जन में घोटाला और मोतिहारी चीनी मिल की जमीन बेचने जैसे कई मामले तो केवल बानगी हैं. राजधानी पटना से लेकर सीमावर्ती शहर रक्सौल तक भू-माफियाओं का सिंडिकेट हावी है.

बीते साल 23 सितंबर को मुजफ्फरपुर के लकड़ीढाही स्थित अग्निशमन कार्यालय के पास अपराधियों ने पूर्व मेयर समीर कुमार और उनके चालक पर एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग की. तीस से ज्यादा राउंड गोलियां चलाई गईं. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. समीर कुमार राजनेता के साथ-साथ बड़े कारोबारी भी थे. हत्या के पीछे दस क_ा जमीन का विवाद सामने आया है, जो नगर थाना क्षेत्र के कल्याणी चौक की मछली मंडी में स्थित है. इस हत्याकांड के पीछे भू-माफियाओं का हाथ बताया गया, जिन्हें एक बड़े राजनेता का संरक्षण हासिल है. मुजफ्फरपुर के ही चर्चित नवरुणा हत्याकांड भी जमीन हड़पने की साजिश का एक हिस्सा था. नवरुणा के पिता अतुल्य चक्रवर्ती ने उस समय मीडिया के सामने खुलेआम आरोप लगाया था, हर एजेंसी मामले को लटका रही है और साक्ष्य मिटाए जा रहे हैं. मेरी बच्ची के अपहरण की बजाय प्रशासन की दिलचस्पी परिवार की इस ज्वाइंट प्रॉपर्टी को नापने में थी. चक्रवर्ती का कहना था कि भाषायी अल्पसंख्यक होने के चलते वह मुजफ्फरपुर में भू-माफिया और पुलिस के गठजोड़ का आसान निशाना हैं. गौरतलब है कि नवरुणा कांड के बाद इसी जिले में रहने वाले एके भादुड़ी, एससी मुखर्जी, डीएन चटर्जी सहित कई बंगाली परिवारों के साथ आपराधिक घटनाएं हुईं. इन सभी के पास जिले की प्राइम लोकेशंस पर संपत्तियों का मालिकाना हक था. बंगाली समाज को नजदीक से जानने वाले और बिहार हेराल्ड के संपादक विद्युत पाल ने अपने एक बयान में कहा था, 1991 के बाद देशभर में भू-माफिया का उभार हुआ. बिहार में इन माफियाओं का सबसे आसान निशाना थे बंगाली. इसलिए भागलपुर, दरभंगा एवं मुजफ्फरपुर के कई बंगाली परिवार इनकी साजिश के शिकार बने. नवरुणा हत्याकांड भी एक ऐसा ही मामला है.

भू-माफियाओं के एक सिंडिकेट ने महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए बनकट गांव के भूमि अधिग्रहण में फर्जीवाड़ा करके करोड़ों का भुगतान ले लिया. मामला तब सामने आया, जब बनकट निवासी सुकदेव साह अपनी भूमि का मुआवजा लेने भू-अर्जन कार्यालय पहुंचे. विभाग द्वारा बताया गया कि उन्हें मिलने वाले मुआवजे के तौर पर तीन करोड़ पांच लाख 28 हजार रूपये का भुगतान हो चुका है. यह सुनकर सुकदेव के पैरों तले जमीन खिसक गई. विभाग द्वारा मांगे गए कागजात लेकर वह भू-अर्जन कार्यालय गए थे. मामला खुलने के बाद फर्जीवाड़े में शामिल अधिकारियों-कर्मचारियों के पसीने छूटने लगे. सुकदेव ने क्षेत्रीय विधायक एवं राज्य सरकार के पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार के पास गुहार लगाई. इस पर उन्होंने तुरंत मुख्यमंत्री को मामले से अवगत कराया और जिलाधिकारी को पत्र लिखकर भू-माफियाओं एवं संलिप्त अधिकारियों-कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा. जिलाधिकारी रमण कुमार ने एक जांच दल गठित किया.

भूमि का मुआवजा चूंकि उसके मालिक किसान के खाते में जाता है. जब जांच हुई, तो पता चला कि किसी फर्जी सुकदेव साह के देना बैंक स्थित खाते में उक्त रकम विभाग द्वारा भेजी गई थी, जिसमें से एक करोड़ तीस लाख रुपये जयकिशुन तिवारी के मोतिहारी देना बैंक स्थित खाते में और 70 लाख रुपये रक्सौल निवासी अरविंद सिंह के खाते में ट्रांसफर किए गए. उक्त तीनों खाते फ्रीज कराने के बाद आनन-फानन में तीनों पर नगर थाने में 25 नवंबर 2018 को प्राथमिकी दर्ज कराई गई. उसी दिन देर शाम हरसिद्धि के मटियरिया गांव के समीप एक कार ट्रैक्टर से टकरा गई. पुलिस ने उस कार में रखे बैग से एक करोड़ 31 लाख रुपये बरामद किए. जांच में यह बात सामने आई कि कार जयकिशुन तिवारी की है. पुलिस ने इस मामले में मोतिहारी सदर अंचल के राजस्व कर्मचारी उमेश सिंह और भू-अर्जन विभाग के प्रधान लिपिक शारदा नंद सिंह को भी गिरफ्तार किया है, उनसे पूछताछ जारी है. उधर कुर्की-जब्ती के बाद मुख्य आरोपी जयकिशुन ने न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस जांच में जुटी है कि इस फर्जीवाड़े में और कौन-कौन लोग संलिप्त हैं. फर्जी सुकदेव साह और अरविंद सिंह की तलाश जारी है.

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय और सुकदेव साह का मामला अभी थमा भी नहीं था कि रक्सौल में भारत-नेपाल सीमा पथ परियोजना में फर्जी भुगतान का मामला खुलने लगा. रक्सौल के नोनेया डीह निवासी स्वर्गीय जगदीश मिश्र के पुत्र प्रमोद मिश्र के नाम पर हुए भुगतान को लेकर सवाल उठ खड़े हुए. प्रमोद के बड़े भाई रत्नेश ने भुगतान को फर्जी करार देते हुए जिलाधिकारी एवं भू-अर्जन पदाधिकारी को लिखे गए अपने शिकायती पत्र में कहा है कि किसी ने उनके भाई के नाम पर फर्जी तरीके से भुगतान उठा लिया. इस बीच जयकिशन के खाते में प्रमोद मिश्र के खाते से हुए भुगतान की जानकारी मिलने के बाद अपर समाहर्ता कुमार मंगलम ने सीओ रक्सौल को इस नाम से जारी एलपीसी (भूमि स्वामित्व प्रमाण-पत्र) की जांच के निर्देश दिए हैं. इसके अलावा एक अन्य एलपीसी की भी जांच हो रही है. इस मामले के बाद यह बात साफ हो गई है कि सरकारी स्तर पर भूमि अधिग्रहण के बदले होने वाले भुगतान में फर्जीवाड़ा करने के लिए सिंडिकेट के लोग हर स्तर पर सक्रिय थे. वे ऐसे लोगों को निशाना बनाते थे, जो कम पढ़े-लिखे थे या फिर गांव से बाहर दूसरे राज्यों में काम कर रहे थे.

एक स्थानीय अखबार में छपा-चार नाम, भुगतान एक को. इस मामले में चौंकाने वाला तथ्य यह है कि रक्सौल के नोनेया थाना नंबर 85 में कुल 15 एकड़ भूमि का अधिग्रहण भारत-नेपाल सीमा पथ परियोजना के लिए किया जाना था. इसके लिए 28 सितंबर 2016 को अखबारों में इस आशय का विज्ञापन छपा. नोनेया के कुल 103 लोगों की भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी करने के बाद छपे इस विज्ञापन की क्रम संख्या 98 पर नोनेया निवासी जगदीश मिश्र के पुत्र रत्नेश मिश्र, प्रमोद मिश्र, अवधेश मिश्र व विपिन मिश्र के नाम के आगे 94.5 डिसमिल भूमि का अधिग्रहण करने की बात कही गई है, लेकिन भुगतान प्रमोद मिश्र के नाम से हुआ है. अब सवाल यह है कि जब चारों भाइयों में मेल है और बड़े ने एलपीसी के लिए 15 जून 2018 को रक्सौल अंचल में आवेदन दिया, तो फिर इससे पहले ही फरवरी में कैसे प्रमोद के नाम जारी एलपीसी के आधार पर भुगतान हो गया. उस समय प्रमोद दिल्ली में थे, तो मोतिहारी में बैंक खाता कैसे खुल गया और भुगतान भी हो गया? जब इस भुगतान के बारे में प्रमोद मिश्र से दूरभाष पर बात की गई, तो उन्होंने बताया, मुझे तो यह भी ठीक से पता नहीं है कि मेरी जमीन का अधिग्रहण हो गया है. मैं जब पिछले डेढ़ साल से गांव गया ही नहीं, तो फिर मेरे नाम से खाता कैसे खुल गया और जमीन का भुगतान कैसे हो गया? हमारे साथ फर्जीवाड़ा किया गया है. बड़े भाई रत्नेश मिश्र ने बताया कि उन्होंने अपनी भूमि के अधिग्रहण होने का विज्ञापन पढऩे के बाद एलपीसी के लिए आवेदन आरटीपीएस संख्या 050211021011800386 से दाखिल किया. जब एलपीसी के लिए दौड़ लगाने लगे, तो तत्कालीन सीओ ने जमीन को बकास बताया और कहा कि दस हजार रुपये प्रति डिसमिल के हिसाब से लेंगे. इससे इंकार करने पर वह टालने लगे और मामला अब तक लंबित है. इस बीच प्रमोद मिश्र के नाम पर राशि उठान की जानकारी हुई. इस मामले में भू-अर्जन कार्यालय के दो कर्मचारियों पर कार्रवाई हो चुकी है और कई लोग संदेह के घेरे में हैं.

भू-माफियाओं के एक सिंडिकेट ने महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए बनकट गांव के भूमि अधिग्रहण में फर्जीवाड़ा करके करोड़ों का भुगतान ले लिया. मामला तब सामने आया, जब बनकट निवासी सुकदेव साह अपनी भूमि का मुआवजा लेने भू-अर्जन कार्यालय पहुंचे. विभाग द्वारा बताया गया कि उन्हें मिलने वाले मुआवजे के तौर पर तीन करोड़ पांच लाख 28 हजार रूपये का भुगतान हो चुका है. यह सुनकर सुकदेव के पैरों तले जमीन खिसक गई.

यूं होता है फर्जीवाड़ा

भू-माफियाओं का सिंडिकेट कमजोर, कम पढ़े-लिखे या ऐसे लोगों को अपने निशाने पर लेता है, जिनकी भूमि प्राईम लोकेशन पर होती है. फिर उस भूमि के खाता-खसरा की जांच कर वे फर्जी कागजात तैयार कराते हैं. ऐसे कई लोग हैं, जो पुराने स्टांप और कागजों पर नया फर्जी दस्तावेज बनाते हैं. जितना पुराना कागज, उतना ज्यादा पैसा इसकी एवज में लिया जाता है. ऐसे ही दस्तावेजों के आधार पर जमीन पर कब्जा करने की कवायद शुरू हो जाती है. मामला अगर अदालत में गया, तो जमीन की मल्कियत फंस जाती है और बाद में सुलह के नाम पर जमीन का एक बड़ा हिस्सा सिंडिकेट के पास आ जाता है. इसी दौरान कभी-कभी मजबूत भू-स्वामी या दूसरे सिंडिकेट के सक्रिय होने पर हत्या की राजनीति शुरू हो जाती है. ऐसे मामलों की एक लंबी फेहरिस्त है. केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए भू-अधिग्रहण में ऐसे ही फर्जी भू- स्वामित्व प्रमाण-पत्र और दस्तावेज को आधार बनाया गया था. फर्जी वोटर कार्ड के आधार पर फर्जी आधार कार्ड बना और उसी आधार कार्ड के माध्यम से बैंक में एकाउंट खोला गया था. लेकिन एक ही गांव के कई लोगों को भुगतान हुआ, तो कोई उस फर्जी आदमी को पहचान क्यों नहीं सका? इतनी बड़ी धनराशि के भुगतान के समय संबंधित आदमी की पहचान क्यों नहीं कराई गई? राजस्व कर्मचारी इलाके के लगभग सभी लोगों को पहचानते हैं, तब फर्जी आदमी को एलपीसी कैसे मुहैया करा दी गई? ऐसे कई सवाल सिंडिकेट की पकड़ और पहुंच की ओर इशारा करते हैं. गौरतलब है कि बिहार में साल 1914-17 के बाद कोई भूमि सर्वे नहीं हुआ. वहीं सरकारी दस्तावेजों को भी चूहों का निवाला बना दिया गया या मनमानी करने के लिए बर्बाद कर दिया गया. इसी बात का फायदा भू-माफियाओं को मिलता है और फर्जी दस्तावेज उनके लिए जालसाजी का रास्ता आसानी से तैयार कर देते हैं.