प्रियदर्शी रंजन

बिहार की महागठबंधन सरकार के सबसे बड़े घटक राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और उनके उपमुख्यमंत्री और मंत्री पुत्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए बड़ी परेशानी का सबब बने हुए हैं। बीते चार सप्ताह में करीब चार बड़ा मौका आया जब लालू और उनके परिवार की वजह से महागठबंधन सरकार की फजीहत हुई। मिट्टी घोटाला और कंपनी बनाकर फर्जी तरीके से जमीन हड़पने के साथ नौकरी और टिकट के बदले भी अकूत संपत्ति अर्जित करने का मामला लालू और उनके परिवार पर चस्पा हुआ। ताजा मामला लालू प्रसाद यादव का है। जेल में बंद पाकिस्तान के आईएसआई से सांठगांठ में आरोपित सीवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन से फोन पर हुई लालू की बातचीत का एक निजी टीवी चैनल ने खुलासा किया है। खबरिया चैनल रिपब्लिक टीवी ने अपने उद्घाटन के दिन ही ऐसा खुलासा किया जो बिहार सरकार खासकर नीतीश कुमार के गले की हड्डी बन गया है। चारा घोटाला के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लालू यादव के खिलाफ आपराधिक साजिश और विभिन्न धाराओं के तहत फिर से सुनवाई का आदेश देकर लालू की मुश्किलें और चौड़ी कर दी है।

हालांकि लालू की तात्कालिक और सबसे बड़ी मुश्किल वह आॅडियो टेप ही है, जिसे एक चैनल की ओर से जारी किया गया है। टीवी चैनल की ओर जारी कथित आॅडियो में लालू और शहाबुद्दीन की आवाज कैद है। चैनल के दावे के मुताबिक यह आॅडियों तब की है जब शहाबुद्दीन जेल में रहा। आॅडियों में शहाबुद्दीन जेल के भीतर से ही लालू को सीवान के एसपी को हटाने का निर्देश देता है। बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा इसे लालू की संविधानेत्तर सत्ता का उपयोग और अपराधियों के साथ सांठ-गांठ का आरोप लगा कर राजद सुप्रीमो पर हमला तो बोल ही दिया है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी विपक्ष के निशाने पर हैं। भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने इस आॅडियों टेप के जारी होने के तुरंत बाद ही ट्वीट कर कहा कि लालू माफिया डॉन से नेता बने शहाबुद्दीन से निर्देश ले रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कार्रवाई करेंगे? इस ट्वीट के बाद लालू से कहीं अधिक हमला नीतीश कुमार पर हुआ। बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि यही आरोप जदयू के किसी मंत्री पर लगा होता तो मुख्यमंत्री तुरंत इस्तीफा मांग लेते। लेकिन लालू और उनके बेटों पर अभी तक उन्होंने चुप्पी नहीं तोड़ी है। उनकी चुप्पी ने विरोधियों को लालू की बजाय उन पर तलवार चमकाने का मौका दिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओपिनियन पोस्ट के सवाल के जबाब में कहते हैं कि जांच की आड़ में मुख्यमंत्री ने लालू और उनके परिवार को बच निकलने का मौका दिया। नीतीश कुमार ने लालू एंड कंपनी के लिए कमान ढीली कर दी है। जबकि अपने दल के लोगों के लिए उनका मापदंड दूसरा है।

दरअसल, एक के बाद एक अनेक घोटालों में घिरने से लालू और उनके परिवार की फजीहत तो हुई ही, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नैतिकता, यूएसपी सुशासन और साख पर भी बट्टा लगा है। लोजपा के महासचिव उपेंद्र यादव नीतीश कुमार की नैतिकतावादी और सुशासन बाबू वाली साख पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि जिस तरह उन्होंने नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक मानते हुए भाजपा से 17 साल पुराना रिश्ता खत्म कर लिया था, उसी तर्ज पर राजद से जदयू को अलग कर लेना चाहिए। बकौल उपेंद्र, ‘पहला मौका है जब कोई सरकार एक माफिया के इशारे पर काम कर रही है। शहाबुद्दीन जेल से ही एसपी को लालू से निर्देशित करवाता है। लालू को भी पुलिस कप्तान को निर्देशित करने का कहां अधिकार है। यह पूरा प्रकरण पहले से ही दागदार लालू की छवि और धूमिल करता ही है, नीतीश कुमार की साख पर भी दाग लग गया है।’ सक्रिय समाजसेवी और पटना कॉलेज के प्रोफेसर प्रभाकर प्रसाद सिंह विपक्ष की ओर से नीतीश की साख पर उठाए जा रहे सवाल पर कहते हैं कि राजनीति में साख बड़ा महत्व है। पार्टी भले ही बड़ी न हो अगर आपकी साख बड़ी है तो राजनीति में बडे पैमाने पर स्वीकार्यता रहेगी। लोहिया पांच-आठ सांसदों के बूते ही कांग्रेस विरोध के आजीवन धुरी बने रहे। लोहिया के कांग्रेस विरोध की राजनीति में उनकी साख का बड़ा महत्व था। नीतीश की पार्टी के सांसदों की संख्या महज दो भले हो, उनकी स्वाकार्यता इससे कहीं अधिक बड़ी है। पिछले कुछ सालों में नीतीश कुमार भाजपा विरोधी दलों की उम्मीद बन कर उभरे हैं तो इसमें उनकी साख का बड़ा योगदान है। लालू के साथ रहने से नीतीश की साख पर विपक्ष की तलवार हमेशा लटकती रहेगी।

नीतीश की चुप्पी के मायने
हालांकि विरोधी और भाजपा समर्थित राजनीतिक जानकारों की जो भी राय हो, मुख्यमंत्री विपक्ष और मीडिया के दबाव के बाद भी अपने चिर-परिचित अंदाज में चुप्पी साधे हुए हंै। पटना में एक कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों द्वारा इस मसले पर लागातार सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ज्यादा बोलने से गला खराब हो जाता है। माना जा रहा है कि उनके निशाने पर सुशील कुमार मोदी थे जो आए दिन लालू परिवार पर एक नया आरोप लगा रहे हैं। साथ ही राजनीतिक तबके में उनकी इस चुप्पी को राजद सुप्रीमो के समर्थन के तौर पर देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो सरकार के मंत्रियों पर लग रहे आरोप से नीतीश कुमार की छवि पर थोड़ा-बहुत नुकसान पहुंचता है तो वे समझौता करेंगे। सुरेंद्र किशोर की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के सिद्धांतों पर चलने वाले नेताओं में शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकूर का मानना था कि गरीबों के लिए काम करने वाली सरकार को सत्ता के लिए छोटे-मोटे समझौते करने ही पड़ते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक लालू परिवार पर लग रहे आरोप को लेकर नीतीश कुमार की चुप्पी के पीछे राजनीतिक नफा-नुकसान का गणित देख रहे हैं। राजनीतिक जानकार और पटना लाइव के संपादक के. भारद्वाज के मुताबिक, मुख्यमंत्री को इस संकेत से हम समझ सकते हैं कि लालू के साथ बने रहने में फिलहाल उन्हें कोई परेशानी नहीं है। लालू प्रसाद का इन मामलों में उलझे रहना नीतीश कुमार के लिए अपने हिसाब से सरकार चलाने में मददगार ही साबित हो सकता है। राजनीतिक जानकारों के इस मत पर सुशील मोदी मुहर लगाते दिखते हैं। मोदी के मुताबिक, नीतीश कुमार मुकदमों और विवादों में फंसे उनके कमजोर लालू परिवार के साथ रहना पसंद करेंगे। लालू कमजोर होगें तो नीतीश कुमार को सरकार चलाना आसान होगा। इससे लालू का सरकार पर दखल कम होगा। लालू के बेटे घुटने टेक कर नीतीश के सामने रहेंगे।

राज्य की राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्ठ प़त्रकार अशोक प्रियदर्शी कहते हैं कि नीतीश कुमार 2019 के चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ एक मुख्य विपक्षी पार्टी के संयुक्त मोर्चा का गठन करना चाहते हैं। राजद की भूमिका इसमें अहम होगी। इसलिए वे मुख्य साझेदार की भूमिका निर्वाह करने की क्षमता रखने पर राजद को किनारे नहीं कर सकते। नीतीश कुमार जब तक भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर मजबूत रहेंगे वे लालू का साथ नहीं छोड़ सकते। लालू परिवार के खिलाफ सख्त कदम उठाना नीतीश के लिए अपने राष्ट्रीय स्तर पर होने की संभावनाओं को खतरे में डालना होगा।

नीतीश कुमार की राजनीति पर नजर रखने वाले कई जानकरों की राय है कि 2015 में सत्ता संभालने के बाद उनके सामने यह चुनौती रही है कि राजद को काबू में रखकर सरकार अपने ढंग से कैसे चलाई जाए। इसके साथ ही केंद्र की राजनीति में विपक्षी दलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने का मौका भी हाथ से न जाने दिया जाए। जानकारों के मुताबिक इन दोनों मोर्चों को एक साथ साधने की कोशिश में नीतीश कुमार की छवि एक ऐसे नेता के रूप में बन रही है, जिसके बारे में कुछ भी अनुमान लगाना मुश्किल है।
इस बात की पुष्टि पिछले एक साल के दौरान उनकी ओर से उठाए गए कदमों से होती है। इनमें नोटबंदी पर मोदी सरकार का समर्थन करना और पटना के प्रकाशोत्सव पर्व के मौके पर नरेंद्र मोदी का समर्थन करना शामिल है। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के शताब्दी जन्मोत्सव के लिए गठित राष्ट्रीय समिति में नीतीश कुमार के शामिल होने को भाजपा से उनकी बढ़ती निकटता को संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।

भाजपा के लिए अंगूर खट्टे हैं
बिहार में महागठबंधन भाजपा के लिए हमेशा आंखों का किरकिरी बना रहा है। भाजपा को पता है कि अगर महागठबंधन चुनाव तक अस्तिव में रहा तो भाजपा के लिए वही करिश्मा दुहरा पाना मुश्किल होगा, जो पिछले लोकसभा चुनाव में किया था। यही कारण है कि नीतीश कुमार को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा गाहे-बगाहे जाल डालती रहती है। हालांकि नीतीश कुमार और उनके दल की ओर से कभी कोई संकेत नहीं आया कि वे भाजपा के जाल में हों। राजनीतिक जानकार देवांशु मिश्रा की मानें तो कई मौकों पर लगा कि लालू और नीतीश की राहें जुदा हो सकती हैं। सीवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन ने जेल से छूटने के बाद नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री कहा और उन्हें अपना नेता मानने से इंकार कर दिया तो दोनों पार्टियों के रिश्ते तल्ख हुए। लेकिन न तो लालू यादव और न ही नीतीश कुमार ने इस आग को हवा दी। भाजपा ने जरूर गठबंधन पर हमला किया। अलबत्ता सुशासन की दुहाई दी और नीतीश पर कार्रवाई का दबाव बनाया। मुख्यमंत्री की ओर से कार्रवाई की भी गई। मामला सुप्रीम कोर्ट गया और सीवान के पर्व सांसद को जेल जाना पड़ा। लेकिन महागठबंधन को काई नुकसान नहीं पहुंचा।

इस साल की शुरुआत में जब राजधानी पटना में प्रकाश पर्व का आयोजन हुआ तो सियासत भी खूब गर्म हुई। सीएम नीतीश का पीएम के साथ बैठना और लालू को मंच पर जगह न मिलने के मायने भी ढूंढे गए। मसलन महागठबंधन अंतर्विरोध का गठबंधन है, परिस्थितियों का गठबंधन है। और न जाने क्या-क्या। कई बार मामला गंभीर भी हुआ है। जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार बयानबाजी से नाराज भी हुए। लेकिन न तो कभी लालू प्रसाद यादव और न ही कभी नीतीश कुमार ने खुलकर एक-दूसरे से सवाल पूछा। बिहार के उपमुख्यमंत्री और लालू यादव के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव ऐसी परिस्थितियों में सरकार के बचाव में ही उतरते हैं।

भाजपा इशारों-इशारों में लालू यादव के साथ गठबंधन तोड़ने की स्थिति में नीतीश कुमार को समर्थन देने की बात करती रही है। बिहार भाजपा के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री मानते हैं कि नीतीश कुमार हमारे साथ 17 सालों तक रहे हैं और राजनीति में कुछ भी हो सकता है। यानी भाजपा नीतीश कुमार पर डोरे डालने का कोई मौका जाया नहीं होने देना चाहती।

दूसरी ओर बिहार की राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले नीतीश कुमार के नजरिये से देखें, तो सुपंी्रम कोर्ट के ताजा फैसले से गठबंधन में उनकी स्थिति मजबूत हुई है। लालू यादव जब-जब कमाजोर होंगे, तब-तब राजद खेमे से नीतीश के नेतृत्व पर उठने वाले सवाल की धार भी कुंद होगी। मुख्यमंत्री दरबार से जुड़े एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि लालू का न विरोध करना और न समर्थन करना राजद को काबू में रखने के लिए नीतीश कुमार की खास नीति का हिस्सा है, जिसके जरिये वे लालू के साथ विकल्प के रूप में भाजपा को हमेशा अपने पास रखना चाहते हैं। चारा घोटाले की फिर से सुनवाई और लालू परिवार पर घोटाले के आरोप नीतीश कुमार के लिए मन मांगी मुराद की तरह हैं। नीतीश कुमार को लालू को साधने और सरकार अपनी पकड़ मजबूत करने का मिल गया है।