कश्मीर- तबाही के लिए नफरत ही काफी है

तबाही के लिए नफरत ही काफी है। यह बात सच साबित होती दिखती है कश्मीर मुद्दे पर। पिछले कुछ दिनों से कश्मीर सुलग रहा है। 23 लोगों की मौत हो चुकी है 400 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है हालांकि यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है। क्या सच है सुलगती घाटी का जानने के किए ओपिनियन पोस्ट ने बातचीत की कश्मीर पर बोलने लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार आशा खोसा से-

जारी हिंसा ने कश्मीर को इतना सुलगा दिया क्या कारण हो सकते हैं आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोगों के सड़कों पर बाहर आने के ? प्रश्न के जवाब में आशा कहती हैं कि बुरहान की छवि लोगों के बीच सांप्रदायिक बना दी गई थी। उसके बारे में सुरमा के तौर पर मीडिया में कई कहानियां गढ़ी गई थी। वह पोस्टर ब्‍वॉय बन गया था। सबको इस बात का अंदेशा भी था कि जब भी वह मारा जाएगा ऐसा ही हजूम निकलेगा। लेकिन प्रशासन ने अंदेशा होने के बावजूद कोई कोताही नहीं बरती, सही निर्णय नहीं लिया। बुरहान का जनाजा निकालने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए थी। लेकिन इजाजत दी गई जिसकी वजह से यह हालात पैदा हुए।

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कश्मीर अंदरूनी तौर पर सुलग रहा है कश्मीर की इस स्थिति से क्या अंदाजा लगाया जाना चाहिए कि कश्मीर किस राह पर है? कश्मीर के अंदरूनी हालात को बयां करते हुए आशा कहती हैं कि कश्मीर में जो दिखता है वही पूरी सच्चाई नहीं है। ऐसा नहीं है कि सभी इसी राह पर हैं। चुनाव का दौर याद कीजिए लाखों लोगों ने वोट किया था। ऐसे में तो सभी लोकतंत्र के पक्षधर हुए। सच्चाई यह है कि लोगों के दिमाग पर क्या मुद्दा छाया हुआ है यह महत्व रखता है।’

कश्मीर के हालात की सच्चाई क्या है? आशा खोसा बताती हैं कि  दरअसल सच्चाई यह है कि पाकिस्तान बंटवारे का बदला लेना चाहता है। कश्मीर का मुद्दा जिंदा रखना चाहता है। वह एक बार में तो देश को अलग-थलग कर नहीं सकता ऐसे में वह ‘डेथ बॉय थाउजेंट कट’ की नीति अपनाता है। अफगानिस्तान में पाकिस्तान ने यही नीति अपनाई थी। खुद के बलबूते पाकिस्तान लड़ नहीं सकता तो उसने कश्मीर के लोगों को बहला फूसलाकर खड़ा कर दिया है और उनके कंधे पर बंदूक रखकर चला रहा है। कुछ लोग इस बात से वाकिफ हैं कि वह पाकिस्तान के लिए काम कर रहे हैं लेकिन ज्यादातर को इसका अंदाजा नहीं है कि उनका इस्लेमाल किया जा रहा है। जब तक ऐसा होता रहेगा कश्मीर में ऐसी चिंगारियां उठती रहेंगी और कश्मीर भभकता रहेगा।

(ओपिनियन पोस्ट संवाददाता निशा शर्मा के साथ बातचीत पर आधारित)

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