प्रदीप सिंह/प्रधान संपादक/ओपिनियन पोस्ट
कभी देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल के रुतबे वाली कांग्रेस पार्टी को आगे की राह सूझ नहीं रही। सत्ता उसका साथ छोड़ चुकी है और विपक्ष की भूमिका निभाना उसने सीखा नहीं। कांग्रेस में गिरावट का दौर तो काफी पहले से शुरू हो गया था पर दस साल के यूपीए राज ने उसकी समस्या को असाध्य रोग बना दिया है। पार्टी ऐसी स्थिति में पहुंच गई है जहां लगता है कि उसकी निरोगी होने की इच्छा ही खत्म हो गई है। उसकी स्थिति एक ऐसे मरीज जैसी हो गई है जो सतत एक अदद चमत्कार के इंतजार में रहता है। कांग्रेस को भी एक चमत्कार का इंतजार है। उसके किसी नेता से पार्टी की हालत के बारे में पूछिए उसके पास एक तैयार जवाब होता है कि 2004 में भी लोग हमें इसी तरह खारिज कर रहे थे। लंबे समय तक सक्रिय राजनेताओं को राजभवन भेजकर फिर उन्हें बिना किसी अपराध भाव के सक्रिय राजनीति में वापस लाने की कांग्रेस की परंपरा रही है। उसे, इसमें कभी कुछ गलत नजर नहीं आया। शायद उसका मानना था कि संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति हो या चुनावी राजनीति में सक्रिय, कांग्रेसी तो कांग्रेसी ही रहेगा। पार्टी की सोच में अब भी कोई अंतर नहीं आया है। वरना क्या कारण है कि प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद से बहुत से कांग्रेसियों की बाछें खिली हुई हैं। कहा जा रहा है कि अब कांग्रेस का जीर्णोद्धार हो जाएगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने तो एक अंग्रेजी दैनिक में ‘वेलकम होम प्रणब दा’ शीर्षक से इसी आशय का बाकायदा लेख लिख दिया।
मणिशंकर अय्यर के ही शब्दों में कांग्रेस पार्टी इस समय अधोबिंदु पर है जो पतन की पराकाष्ठा पर पहुंच सकती है। उनकी सलाह ही पार्टी को बचा सकती है। अय्यर को अपनी पार्टी की ही तरह एक और चमत्कार की उम्मीद है कि शायद प्रणव मुखर्जी किसी दिन प्रधानमंत्री बन जाएं। उन्होंने इसके लिए सी राजगोपालाचारी का उदाहरण दिया है जो गवर्नर जनरल से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल फिर केंद्रीय मंत्री और आखिर में मद्रास के मुख्यमंत्री बने। यह बात प्रणव मुखर्जी के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसी है। जब प्रधानमंत्री बनाने का मौका था तो बनाया नहीं। अब वानप्रस्थी होने पर राज्याभिषेक की बात कर रहे हैं। अय्यर को लगता है कि मुखर्जी सलाह देंगे तो कांग्रेस के दिन लौट आएंगे। यह मानना तो दूर कहने के लिए भी व्यक्ति को आशावादिता की सारी हदें पार करनी पड़ेंगी। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को सलाह दी थी कि संसद बहस, विरोध और फैसला करने का मंच है, व्यवधान का नहीं। उसे तो किसी ने सुना नहीं। अय्यर गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं। सबको पता है कि प्रणव मुखर्जी कभी गांधी परिवार के विश्वासपात्रों में नहीं रहे। सोनिया गांधी की चली होती तो वे राष्ट्रपति भी नहीं बन पाते। खुद मुखर्जी ने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के समय ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि सोनिया गांधी को उन्हें उम्मीदवार बनाना पड़ा। यह बताने का मकसद गड़े मुर्दे उखाड़ना नहीं बल्कि यह समझाने की कोशिश है कि कांग्रेस और कांग्रेसी किस मनोदशा से गुजर रहे हैं। क्योंकि ऐसा सोचने वाले केवल मणिशंकर अय्यर ही नहीं हैं। वैसे ये वही मणिशंकर अय्यर हैं जिन्होंने एक पाकिस्तानी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि भारत पाक के बीच तनाव खत्म करने का एक ही तरीका है कि उन्हें (भाजपा को) हटाइए और हमें (कांग्रेस को) वापस लाइए। अब ऐसे चमत्कार का सपना तो अय्यर साहब ही देख सकते हैं।
कांग्रेस की एक समस्या यह भी है कि अब पार्टी में नेता नहीं बल्कि नेताओं की पार्टी हो गई है। पार्टी के वकील नेताओं को इस समय पार्टी से ज्यादा चिंता अपनी वकालत की है। देश का कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां कांग्रेस दावे के साथ कह सके वह सत्ता में है तो बनी रहेगी या लौट सकेगी। इस साल के आखिर में नरेन्द्र मोदी की अनुपस्थिति में गुजरात विधानसभा का पहला चुनाव होगा। पर चुनाव से कुछ महीने पहले ही पार्टी के सबसे कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी छोड़ दी। हिमाचल में कांग्रेस की वापसी के कोई आसार नजर नहीं आते। दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे से जो बात अरविंद केजरीवाल को समझ में आ गई वह बात अभी तक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की समझ में नहीं आई। वह यह कि रोज सुबह उठ के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कुछ गालियां देने से पार्टी का कोई भला नहीं होने वाला। पर राहुल गांधी भारतीय राजनीति के शायद अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने तय कर लिया है कि उन्हें गलतियों से कोई सबक नहीं लेना है। पुरानी कहावत है कि करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। राहुल गांधी ने तय कर लिया है कि वे इस कहावत को गलत साबित करके रहेंगे। सत्तर के दशक में एक फिल्म आई थी अमर प्रेम। उसके गाने का मुखड़ा है- मंझधार में नैया डोले तो मांझी पार लगाए, मांझी जब नाव डुबोए उसे कौन बचाए। कांग्रेस को डुबोने के लिए किसी बाहरी की जरूरत नहीं है, कांग्रेसी ही काफी हैं।