वास्तविक जिंदगी में मैं गुस्सैल नहीं हूं- स्वरा भास्कर

स्वरा भास्कर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अब किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। वह उन उभरते सितारों में से हैं जिनका किसी फिल्मी घराने से ताल्लुक नहीं है। जो जिन्दगी को बिंदास तरीके से जीने में विश्वास करती हैं, जिसने अदाकारी ही नहीं अपनी बेबाकी से भी दर्शकों को प्रभावित किया है। अपने बलबूते पर इंडस्ट्री में मुकाम बनाने वाली स्वरा के नाम ‘तनु वेडस मनु’, ‘रांझणा’, ‘निल बट्टे सन्नाटा’ जैसी फिल्मों की सफलता का श्रेय है। उनकी चर्चित फिल्म ‘अनारकली आॅफ आरा’ 24 मार्च को रिलीज हो रही है। इस फिल्म में उनके किरदार और उनके फिल्मी करियर के बारे में निशा शर्मा ने उनसे बात की:

अनारकली आॅफ आरा के निर्देशक अविनाश दास का कहना है कि अगर आप नहीं होती तो यह फिल्म नहीं बनती, ऐसा क्यों?
यह उनका बड़प्पन है कि उन्होंने ऐसा कहा। हालांकि किसी भी एक्टर की वजह से फिल्म नहीं रूकती है। हां, ऐसा जरूर है कि जितना कोई एक्टर फिल्म से जुड़ता है मैं उससे ज्यादा फिल्म में इनवॉल्व रही हूं। उन्होंने मुझे फिल्म की स्क्रीप्ट तब पढ़ने दी थी जब कोई दूसरी अभिनेत्री उस फिल्म को करने जा रही थी। मैंने सबसे पहले इस फिल्म की कहानी एक पाठक की तरह पढ़ी थी। उन्होंने मुझसे इसकी स्क्रीप्ट पर कमेंट मांगे थे और मैंने एक पाठक के तौर पर कमेंट दिए थे। पहली बार जब हमारी बात हुई तो करीब चार घंटे हमने फिल्म की कहानी पर बात की थी। मुझे स्क्रीप्ट बहुत पसंद आई थी। मैंने इसका हर ड्राफ्ट पढ़ा था। यह चार-पांच साल पुरानी बात है। इस बीच रांझणा भी आ गई। रांझणा की रिलीज के बाद मुझे अनारकली का रोल आॅफर किया गया।

इस फिल्म में आपका किरदार बोल्ड है। कई बार ऐसा होता है कि निर्देशक जो चाहता है उससे आप सहमत नहीं होते, बोल्डनेस को लेकर कभी अनबन?
यह सही है कि फिल्म एक बोल्ड किरदार को लेकर है लेकिन अविनाश दास के बारे में यह जरूर कहना चाहूंगी कि वह अपनी फिल्म करते हुए यह नहीं सोचते कि दूसरा आपकी फिल्म में घुस रहा है। वह खुले दिमाग के हैं, सुझाव भी लेते हैं और उन पर अमल भी करते हैं। कभी ऐसा मौका नहीं आया कि निर्देशक या मैं एक दूसरे से असहमत हुए हों। और अगर हुए भी तो हमने एक दूसरे की बात का सम्मान किया।

जिस लड़की ने अंतरंग दृश्य करने से मना किया हो वह इतनी बोल्ड फिल्म कैसे कर रही है?
देखिए, यह फिल्म बोल्ड जरूर है पर इसमें भद्दापन नहीं है। मैंने जब फिल्म के लिए हां की थी तो मैंने फिल्म के निर्माता और निर्देशक के साथ बैठकर चर्चा की थी। हमने इस बात पर भी चर्चा की थी कि फिल्म का विषय गंभीर है। अगर फिल्म बनाने में, किरदारों के फिल्मांकन में थोड़ा भी उन्नीस-बीस हुआ तो फिल्म में छिछलापन आ सकता है। हमारा उद्देश्य फिल्म के विषय की वास्तविकता बनाए रखना था। फिल्म एक सम्मानित तरीके से बने यह मेरा सुझाव था जिस पर निर्माता और निर्देशक दोनों ने हामी भरी।

अपने किरदारों के लिए आप कितनी मेहनत करती हैं, कोई ट्रेनिंग भी लेती हैं?
मैं अपने किरदार के लिए जितनी हो सके उतनी मेहनत करती हूं ताकि उस किरदार को हूबहू पर्दे पर उतार पाऊं। मैं अपने किरदारों पर रिसर्च करती हूं, कोई शख़्स ढूंढती हूं जो मुझे मेरे किरदार के नजदीक मिले या उसके बारे में विस्तार से बताने वाला मिले। जैसे फिल्म निल बट्टे सन्नाटा के लिए मैं आगरा गई थी, वहां औरतों से बात की। उनका रहन सहन देखा। अनारकली आॅफ आरा के लिए भी मैंने रिसर्च किया। फिल्म में जो मेरा किरदार है वैसा किरदार मैंने जिंदगी में नहीं देखा। हालांकि मेरी मां का परिवार बिहार से है लेकिन मैंने अपनी जिंदगी में कभी उस तरह की स्टेज परफॉरमेंस नहीं देखी थी जैसी मैंने फिल्म में की है। यह दुनिया मेरे लिए बिल्कुल अलग थी क्योंकि कभी मैं ऐसी जगहों पर नहीं रही। मैं दो बार आरा गई। वहां मैं ऐसी औरतों से मिली जो इस तरह के स्टेज परफॉरमेंस करती हैं। मैंने उनके गाने सुने, उनसे बात की, उनकी भाषा समझने की कोशिश की। वो औरतें किस हाव-भाव में बात करती हैं उसे जाना और उस बॉडी लैंग्वेज को मैंने फिल्म में उतारने की पूरी कोशिश भी की है। यही नहीं मैं मथुरा से आगे कोसी कलान एक जगह है वहां भी अपने किरदार की खोज में गई। जहां ऐसी नौटंकी की मंडलियां हैं, मैंने उनकी परफॉरमेंस देखी। उन परफॉरमेंस से बहुत कुछ अपने किरदार के लिए लिया ताकि किरदार के साथ न्याय कर सकूं। विजय कुमार एक थियेटर कलाकार हैं जो एक्टिंग सिखाते हैं। उनके साथ भी फिल्म के लिए कई वर्कशॉप की।

वास्तविक और काल्पनिक कहानियों में से किस तरह की फिल्में करना आपको मुश्किल लगता है?
दोनों का अपना मजा है। प्रेम रतन धन पायो एक काल्पनिक कहानी थी लेकिन उस फिल्म से मैंने बहुत कुछ सीखा। यह हमारी सोच है कि पेड़ों के इर्द-गिर्द नाचना आसान है लेकिन ऐसा है नहीं। बॉलीवुड डांसिग सबसे मुश्किल काम है। वहीं रियलिस्टिक फिल्में करना भी एक चैलेंज है क्योंकि आपको उस किरदार के परिवेश से लेकर उसको अंदर तक समझना होता है।

आप खुद अच्छी डांसर हैं। क्या कभी जहन में आया कि आइटम नंबर किया जाए या कोई ऐसा चांस मिला हो जहां डांस का मौका भरपूर हो?
जी, मुझे डांस बहुत पसंद है, मेरा मतलब आइटम नंबर से ही नहीं है बल्कि मेरी बहुत ख्वाहिश रही है कि मैं ऐसी फिल्म करूं जिसमें डंस के लिए संभावना हो। अनारकली आॅफ आरा में मेरी यह इच्छा पूरी हुई। इस फिल्म में मैंने बहुत डांस किया है। लोग आइटम नंबर को हल्के में लेते हैं, लेकिन आप मानेंगे कि उस तरह के डांस में भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है। अब तो आइटम नंबर करने वाले कलाकारों के लिए मेरी इज्जत और बढ़ गई है।

वास्तविक जीवन में भी स्वरा उतनी ही मजबूत है जितनी फिल्मों में नजर आती है?
देखिए, हम कुछ चीजों से जुड़े होते हैं जिसमें हमारे जीवन मूल्य और आदर्श होते हैं जो हमें माता-पिता ने दिए हैं। मुझे भी नैतिक मूल्य विरासत में मिले हैं। मुझे लगता है कि अगर आपके सामने किसी के साथ गलत हो रहा है तो आपको उसके लिए खड़ा होना चाहिए। अगर मेरे सामने ऐसा होता है तो मैं जरूर खड़ी होती हूं। मेरा मानना है कि चुप्पी किसी चीज पर हामी भरना ही है। खुदा का शुक्र है कि अभी तक निजी जिंदगी में मेरे साथ ऐसी कोई घटना नहीं घटी है जिसके लिए मैं खड़ी होऊं। लेकिन वक्त का कोई कुछ नहीं कह सकता कि कब कौन-सी परिस्थितियां आपके सामने हों। मैं अपनी मजबूती इस बात को लेकर भी मानती हूं कि अगर कोई अच्छी कहानी हो और नया निर्देशक या निर्माता फिल्म की पेशकश करता है तो मैं उसे मना नहीं करती।

आप ऐसा क्यों कहती हैं कि बड़े निर्देशक आपको फिल्म नहीं देते हैं?
(हंसते हुए) मैं नए निर्माताओं और निर्देशकों की रानी हूं। बॉलीवुड में एक्टर को लेकर राजनीति होती है। इसलिए यह जरूरी नहीं है कि बड़ी फिल्में और बड़े निर्देशकों की पसंद आप हों। दूसरा हर कहानी की अपनी मांग होती है, मजबूरियां होती हैं। बड़े फिल्म निर्देशकों की फिल्में खुद तक लाना मेरा काम नहीं है और न ही यह सब मेरे कंट्रोल में है तो क्यों मैं अपना खून जलाऊं यह सब सोचकर। बस इतना कह सकती हूं कि जो मिल रहा है उसे ईमानदारी से करने की कोशिश करती हूं।

कई बार ऐसा होता है कि किरदार आपके अंदर तक समा जाता है और आपकी निजी जिंदगी को प्रभावित करता है, ऐसे में किरदार से निकलने के लिए क्या करती हैं?
अनारकली आॅफ आरा करने के बाद मुझमें गुस्सा बढ़ गया था जिसे चाहकर भी मैं अपने अंदर से निकाल नहीं पाई। उस किरदार का गुस्सा मुझमें कब समा गया मुझे समझ ही नहीं आया क्योंकि वास्तविक जिंदगी में मैं गुस्सैल नहीं हूं। जैसे फिल्म की शूटिंग के दौरान स्पॉट ब्वॉय पर किसी ने चाय फेंक दी और उस पर मेरा जो रिएक्शन आ था उसे लेकर सेट पर मेरा झगड़ा हुआ। यह सब अनरकली के किरदार का मेरे अंदर तक होने की वजह से भी हुआ। ऐसी दो तीन घटनाएं हुई सेट पर जिसने मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि यह तो मेरा स्वभाव नहीं है तो क्यों ऐसा हो रहा है। अभी भी मुझे लगता है कि थोड़ा बहुत गुस्सा मुझमें बचा हुआ है। मुझे कई महीने लग गए इससे निकलने में। जब मेरे साथ कोई किरदार लंबे समय तक रहता है तो मैं ब्रेक ले लेती हूं। अपने माता-पिता के घर दिल्ली चली जाती हूं। मैं हीलिंग, मेडिटेशन जैसे उपाय अपनाती हूं क्योंकि एक किरदार के बाद आपको अगले किरदार के लिए मानसिक तौर पर तैयार होना होता है।

खाली समय में क्या करती हैं?
जब मैं फिल्में नहीं करती हूं तब भी बहुत से काम करती रहती हूं। जैसे दूरदर्शन पर रंगोली होस्ट करती हूं जिसकी शूटिंग हर महीने होती है। पढ़ती हूं, घूमने निकल जाती हूं। नई जगहों पर जाना मुझे बहुत पसंद है। मेरे घर में तीन बिल्लियां हैं, उनके साथ वक्त बिताती हूं। एक स्क्रीप्ट लिखी है, उस पर काम करती रहती हूं।

एक अभिनेत्री के तौर पर कोई तमन्ना?
एक अभिनेत्री के तौर पर मेरी बहुत तम्मनाएं हैं। मेरी तम्मना है कि मैं फिल्म मुगले आजम की अनारकली के किरदार जैसा ऐतिहासिक किरदार करूं। फिल्म आयरन लेडी में मार्कल थ्रेचर के किरदार जैसी कोई फिल्म करूं। मुझे‘पा’ जैसी कोई फिल्म करनी है जिसमें मेरा किरदार अभिताभ बच्चन के किरदार ओरो जैसा हो जिसमें मुझको अपनी फिजिकल लुक बिल्कुल बदलनी पड़े।

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