नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्यपाल जेपी राजखोवा के कदमों को असंवैधानिक करार देते हुए अरुणाचल प्रदेश में नबाम तुकी की सरकार बहाल तो कर दी मगर अब लाख टके का सवाल यह है कि क्या यह सरकार टिक पाएगी। या फिर से कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ेगी क्योंकि यह अल्पमत सरकार होगी और नबाम टुकी को विधानसभा में बहुमत साबित करना पड़ेगा। इसके लिए टुकी को बागियों में से कुछ को अपने पाले में करना होगा मगर क्या ऐसा होना संभव है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मामला घूम फिर कर वहीं आ जाएगा। यानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संविधान और लोकतंत्र की रक्षा तो हो जाएगी मगर व्यवहारिक तौर पर कांग्रेस का संकट बरकरार रहेगा।

कोर्ट के जरिये कांग्रेस को सत्ता तो मिल गई मगर आंकड़ों के आधार पर उसे फिर से सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है। हां, इस फैसले से केंद्र सरकार को यह सबक जरूर मिलेगी कि जनता की चुनी हुई सरकारों को असंवैधानिक तरीके से हटाने का जो दांव उसने चला था वह उलटा पड़ा क्योंकि उत्तराखंड के मामले में भी केंद्र की किरकिरी पहले ही हो चुकी है।

60 सदस्यीय अरुणाचल विधानसभा में फिलहाल 58 सदस्य हैं। ऐसे में तुकी को बहुमत साबित करने के लिए 30 विधायकों की जरूरत होगी। मौजूदा स्थिति में कांग्रेस के पास 22 विधायक हैं। 20 बागी विधायक कलिखो पुल के खेमे में हैं। कलिखो पुल ने इन बागियों, भाजपा  के 11 और दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन से ही सरकार बनाई थी। मगर मुख्यमंत्री बनने के बाद जब उन्होंने विधानसभा में विश्वास मत हासिल किया था तो उन्हें विधानसभा अध्यक्ष को छोड़कर कुल 40 विधायकों ने समर्थन दिया था। यानी बागियों के अलावा भी उन्हें कुछ और विधायकों का समर्थन मिला था। तुकी को अब बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष सहित 8 और विधायकों की जरूरत होगी। ऐसे में कांग्रेस के बागी टुकी का खेल बना या बिगाड़ सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कलिखो पुल का यह कहना कि सरकार आंकड़ों से चलती है, कोर्ट सरकार नहीं चला सकती, यह समझने के लिए काफी है कि बागी फिर से तुकी को झटका दे सकते हैं। अब नबाम टुकी सरकार के खिलाफ भाजपा अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है। इसके अलावा राज्यपाल उन्हें बहुमत साबित करने के लिए कह सकते हैं। या टुकी खुद ही बहुमत साबित करने की इजाजत मांग सकते हैं। तीनों ही स्थिति में सबसे अहम होंगे 20 बागी।