इन दिनों हरियाणा के यमुनानगर जिले में सरस्वती नदी की खोज का अभियान जोरों पर चल रहा है। एक छोटी सी खोखर में पानी भी मिला। दावा ठोका गया कि यह पानी सरस्वती नदी का है। हालांकि इस दावे पर कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की जांच टीम ने सवाल उठाया। लेकिन विवादों से बचने के लिए जवाब दिया कि और जांच की जरूरत है। फंड उपलब्ध कराया जाए। टीम जानती थी, न फंड मिलेगा, न जांच होगी। इस तरह सच बोलने से बच भी जाएंगे। यानी सरकार भी खुश, आवाम भी। वैज्ञानिकों ने अपना काम भी कर दिया, पर पानी की जांच पर संशय है। वैज्ञानिकों ने पानी को लेकर जवाब गोलमोल दिया।

दरअसल, इस पूरी योजना पर ही संशय है। यही वजह है कि सरकार फूंक फूंक कर कदम रख रही है। खोज अभियान जारी रखा जाए, पर इसकी जिम्मेदारी न ली जाए। जिम्मेदारी लेंगे तो जवाब भी देना होगा। तभी तो सरस्वती नदी की खोज का काम मनरेगा के अंडर किया जा रहा है। मनरेगा के मजदूर दिन भर नदी की खुदाई करते है। कोई विशेषज्ञ नहीं। कोई जानकार नहीं। कोई ड्राइंग नहीं। कोई प्लानिंग नहीं। बस रट है, हम नदी खोज रहे।

जिले का गांव मुगलवाली, जहां खुदाई हो रही है, वहां छोटी नहर जितनी चौड़ाई और करीब पांच फीट गहराई तक खुदाई हो रही है। इसी तरह की खुदाई जिले के चालीस से अधिक गांवों में चल रही है। सरकार ने 50 करोड़ का बजट दिया है। खुद कुरुक्षेत्र के सांसद राजकुमार सैनी सरकार के इस प्रयास को सही नहीं मानते। उनका कहना है कि नदी मिले या न मिले,लेकिन पैसा जरूर बर्बाद हो जाएगा। हालांकि, सीएम मनोहर लाल खट्टर का दावा है कि यहां नदी थी। हम नदी को जमीन पर लाएंगे।

मनरेगा ही क्यों?

जवाब साफ है। मनरेगा में प्रावधान है, तालाब आदि की खुदाई का। इसी का फायदा उठाया जा रहा है। यदि किसी स्तर पर नदी की खुदाई पर सवाल उठा, तो कह देंगे वाटर हार्वेस्टिंग के लिए खुदाई हुई थी। यानी आप मनरेगा के फंड के दुरुपयोग से साफ बच जाएंगे। यहीं वजह है कि मनरेगा में नदी की खुदाई हो रही है। लेकिन जिस तरह से खुदाई हो रही है वह किसी पुरानी साइट की खुदाई जैसा नहीं है। यह तय नहीं किया जा रहा है कि किस तरह से खुदाई होगी। पुरातत्व विभाग का कोई विशेषज्ञ यहां मौजूद नहीं। विशेषज्ञ जानते हैं कि इस तरह की खुदाई जब भी होती है तो इसका डाटा जुटाया जाता है। परत दर परत रिकार्ड रखा जाता है। यह इसलिए जिससे साइट को प्रमाणित करने के लिए जरूरी डिटेल हो। यहां तो ऐसा कुछ हो ही नहीं रहा, क्योंकि सरकार भी जानती है, सरस्वती नदी के उनके सच के दावे में फिलहाल ज्यादा दम नहीं है। … बस लक बाई चांस का मामला है। सरकार की यह कोशिश ठीक वैसी है जिस तरह से पानी की जांच करने वाली कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक चतुराई से जवाब देते हुए हर तरह की जिम्मेदारी से बच गए।

कहां बहती थी, इस पर संशय

दिल्ली में सरकार बदले ही सरस्वती भी बदल जाती है। समर्थक कभी उसे कच्छ के रण की तरफ बहा ले जाते हैं, तो कभी इलाहाबाद के संगम की तरफ। कभी वो हिमालय से उतरती चली आती है तो कभी बरसाती नदी बनकर किसी और नदी में मिलते हुए पाकिस्तान चली जाती है। दो सौ साल के इतिहास में सरस्वती के होने या न होने को लेकर बहस चल रही है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सरस्वती के मिलने के दावे किए जाते रहे हैं। ऋग्वेद से लेकर पौराणिक कथाओं में सरस्वती तो है मगर ज़मीन पर कहां बहती रही होगी इसका सही सही दावा नहीं हो पाया है। सरस्वती विशालकाय नदी थी या कोई छोटी नदी रही होगी, इस पर भी बहस है। इस देश में जहां एक नदी के एक ही इलाके में बीस नाम होते हैं, उसी देश में सरस्वती नाम की कई नदियां पाई जाती रही हैं। यही नहीं सरस्वती नाम के भी अनेक मतलब मिलते हैं।

पक्ष में दावे

धारा के निशान के नीचे चट्टानों के कण की एक पतली पेटी दिखाई दी। इससे पता चलता है कि यहां नदी बहती थी। स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर की रिपोर्ट का हवाला सरकार देती है। इसमें जमीन के नीचे मौजूद पेलियो चैनल (प्राचीन जल मार्ग) को खोजा गया। यह रिपोर्ट वर्ष 2013 में तत्कालीन प्रदेश सरकार को सौंपी गई। दावा है कि वैज्ञानिकों ने माइक्रोवेव सैटेलाइट के माध्यम से इन चैनलों का पता लगाया था। सैटेलाइट में लगे सेंसर की मदद से जमीन के नीचे काफी गहराई में होने के बावजूद इन पेलियो चैनल को तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है। ये पेलियो चैनल उत्तरी हरियाणा में बहुतायत में हैं। यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र और कैथल में ये चैनल काफी संख्या में हैं। वहीं दक्षिण हरियाणा में हिसार, जींद और सिरसा जिले में हैं। ये चैनल सरस्वती की सहायक नदियों के हैं। इन दावों के आधार पर कहा जा रहा है कि हजारों वर्ष पूर्व सरस्वती और उसकी सहायक नदियां जमीन के नीचे काफी गहराई में चली गईं। ये चैनल इतने विशाल हैं कि इनमें अथाह पानी स्टोर हो सकता है।

गौरतलब है कि सरस्वती नदी की जलधारा के साथ-साथ पत्थर व मिट्टी के बर्तनों के अवशेष भी निकल रहे हैं। कई भू-विज्ञानी मानते हैं और ऋग्वेद में भी कहा गया है कि हज़ारों साल पहले सतलुज (जो सिन्धु नदी की सहायक नदी है) और यमुना (जो गंगा की सहायक नदी है) के बीच एक विशाल नदी थी जो हिमालय से लेकर अरब सागर तक बहती थी।

आज ये भूगर्भीय बदलाव के कारण सूख गयीं है। ऋग्वेद में, वैदिक काल में इस नदी सरस्वती को ‘नदीतमा’ की उपाधि दी गयीं है। उस सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी, गंगा नहीं। सरस्वती नदी हरियाणा, पंजाब व राजस्थान से होकर बहती थी और कच्छ के रण में जाकर अरब सागर में मिलती थी।

न होने के पक्ष में दावे

कौन सी सरस्वती को सच माना जाए। अभी तक सरस्वती नदी के कोई वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। सिर्फ आस्था व विश्वास के दम पर ही नदी के होने का दावा किया जा रहा है। यमुनानगर में आदि-बद्री में यदि सरस्वती थी तो इसका उद्गम स्थल क्या है? सोम नदी और सरस्वती नदी साथ साथ कैसे बह सकती है। एक मत यह भी है कि घग्गर नदी को सरस्वती नदी माना जाता रहा है। हिसार के राखी गढ़ी में अभी हाल की खुदाई में एक नगर के अवशेष मिले हैं। इसलिए यह बात पुख्ता होती है कि घग्गर ही सरस्वती हो सकती है। जो भी रिसर्च आए उनका वैज्ञानिक आधार नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार कम से कम नदी को खोद कर तो जमीन पर नहीं लाया जा सकता। जहां से पानी मिला, जिसे सरस्वती नदी का पानी बताया जा रहा है, यह इस पानी का जलस्तर बढ़ा नहीं है। जबकि यदि यह धारा होती और यह नदी का पानी होता तो जलस्तर में बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि यमुनानगर में कई नदियां है, इस तरह से पानी तो कहीं भी निकल आता है।

नदी निकलेगी कहां से

जहां नदी का रास्ता माना जाता है, वहां तो खेत है। ऐसे में क्या सरकार उनकी जमीन अधिग्रहण करेगी। अभी बहुत ही गुपचुप तरीके से नदी की खुदाई का काम शुरू हो रहा है।

पानी कहां से आएगा

यह तो संभव नहीं कि भूजल से पानी खुद ब खुद जमीन पर आ जाए। अब एक विकल्प है। पानी को लिफ्ट किया जाए। इसके लिए कितनी बिजली चाहिए। कितने नलकूप लगेंगे। वह भी तब जबकि भूजलस्तर नीचे जा रहा है। ऐसे में नलकूप कितने लंबे समय तक चल पाएंगे। दूसरा तर्क दिया जा रहा है कि पानी सोम नदी से उठाया जाए। लेकिन यह नदी तो खुद बरसाती नदी है। ऐसे में बरसात में तो पानी मिल जाएगा, लेकिन बाकी दिन क्या होगा? नदी का दूसरा छोर कहां होगा। इस बारे में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है। इस बाबत सरकार भी खुद कहने की स्थिति में नहीं है।

नदी होने का कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं : रामकुमार

इतिहासकार डाक्टर रामकुमार ने बताया कि आस्थाओं की बात अलग है, लेकिन हकीकत यह है कि यमुनानगर के आदि बद्री नदी के कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है। यह क्षेत्र बौद्ध धर्म का केंद्र रहा है, इस बात के साक्ष्य यहां जगह जगह हैं। सरकार यदि यहां पर्यटन को बढ़ाना चाहती है ताे बौद्ध स्थल को विकसित करे। सुघ, चनेटी, आदि बद्री में कई स्तुप है जो विकसित किए जा सकते हैं।

नदी हमारी प्राथमिकता : खट्टर

हरियाणा के सीएम  मनोहर लाल खट्टर ने बताया कि सरस्वती नदी उनकी प्राथमिकता में हैं। इसके लिए लगातार काम चल रहा है। सरकार ने हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के गठित किया है। इसे कैबिनेट ने अपनी मंजूरी भी दे दी है। बोर्ड के संचालन के लिए 10 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया जाएगा।

 

Haryana Chief Minister , Manohar Lal Khattar addressing to media persons at Haryana Niwas, Chandigarh on Monday. Tribune Photo Pradeep Tewari