टी. मनोज

हरियाणा सरकार में कुछ हो या न हो, एक काम बहुत ज्यादा हो रहा है और वह है अधिकारियों के तबादले। लगातार हो रहे तबादलों से अब ब्यूरोक्रेट्स भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें सजा दी जा रही है या फिर अच्छी जगह फिट किया जा रहा है। तबादले न सिर्फ ब्यूरोक्रेसी में हो रहे, बल्कि सीएम ने अपने दो ओएसडी भी हटा दिए। पहले जवाहर यादव को ओएसडी के पद से हटा कर उन्हें हाउसिंग बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया। इसके बाद ओएसडी विजय शर्मा को भी हटा कर उन्हें मूल काडर में रेलवे में रवाना कर दिया गया। सीएमओ के दो सीनियर ब्यूरोक्रेट्स संजीव कौशल व सुमिता मिश्रा को बदल दिया गया। दो बार डीजीपी बदल दिए गए। पहले एसएन वशिष्ठ को हटा कर वाईएस सिंघल को डीजीपी बनाया गया, लेकिन जाट आंदोलन में भड़की हिंसा के करीब सवा माह बाद उन्हें बदल दिया गया। इसी तरह से लगभग हर जिले के डीसी को बदल दिया गया। रेवेन्यू डिपार्टमेंट में भारी फेरबदल के बाद भी अभी तक मनोहर सरकार की प्रशासनिक चुस्ती नजर नहीं आ रही है। स्थिति यह है कि सरकार न तो आम जन में अपनी पकड़ बना पा रही है और न ही अच्छे कार्य का श्रेय ले पा रही है। पौने दो साल पुरानी सरकार में कम से कम अब तो प्रशासन पर मजबूत पकड़ हो ही जानी चाहिए थी। इतने समय में तो ब्यूरोक्रेसी सरकार को और सरकार ब्यूरोक्रेसी को समझने के लिए काफी है। इस कमी की वजह से सरकार से आम आदमी की जो अपेक्षाएं हैं, वे भी पूरी होती नजर नहीं आ रही हैं। इतना ही नहीं, इससे मनोहर सरकार की साख पर उंगली उठ रही है, तो यह भी संदेश जा रहा है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

अब ब्यूरोक्रेट्स भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें सजा दी जा रही है या फिर अच्छी जगह फिट किया जा रहा है।

सरकार में तालमेल का अभाव
प्रदेश की राजनीति के विशेषज्ञ डॉक्टर अर्शदीप सिंह मलिक ने बताया मनोहर सरकार पहले ही दिन से गुटों में बंटी नजर आती है। जैसे, अनिल विज की अपनी राय रहती है, कृषि मंत्री ओपी धनखड़ और वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की अलग राय रहती है। इसी तरह से शिक्षा मंत्री रामबिलास की अलग। कुल मिला कर यह नहीं लग रहा कि यह सरकार एक कड़ी है। ऐसे माहौल का फायदा ब्यूरोक्रेट्स बखूबी उठाते हैं, क्योंकि जब-जब पावर का सेंटर कमजोर होता है तो इसका लाभ अफसर उठाते हैं। इस सरकार में ऐसा ही हो रहा है। मलिक इसके लिए जाट आरक्षण का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि सरकार कभी जाट प्रतिनिधियों से बात करती है तो कभी उन्हें धमकी देने लगती है। उसी से स्थिति बिगड़ी। यही स्थिति टीचर के तबादले और जेबीटी भर्ती में हो रही है। शिक्षा मंत्री कोई भी बयान दे देते हैं, तो सरकार कुछ अलग कहती रहती है। इससे यही संदेश जाता है कि मंत्री और सीएम में कोई तालमेल नहीं है। इसे खत्म करने के लिए ही लगातार तबादले हो रहे हैं।

सरकार के पास विश्वासपात्र अफसरों की टीम ही नहीं है। पहले बिना सोचे-समझे आईएएस अधिकारी प्रदीप कासनी को गुड़गांव में तैनात कर दिया गया, फिर विवाद हुआ तो उनका तबादला कर दिया गया। उन्हें मेडिकल शिक्षा में लगाया गया, पर वहां भी विवाद हुआ और वहां से हटा दिए गए। इसके बाद उन्हें साइड लाइन कर दिया गया। इसी तरह से अशोक खेमका के साथ हुआ। प्रदीप कासनी तो इस सरकार के साथ तब से हो लिए थे, जब सीएम ने शपथ भी नहीं ली थी।

अफसर को कुछ समय तो मिले
डिपार्टमेंट आॅफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग के पूर्व सचिव रिटायर्ड आईएएस डॉक्टर राजीव शर्मा ने कहा कि अफसर को कुछ समय तो मिलना ही चाहिए। ऐसा नहीं कि आप आज आए और तीन माह बाद ही बदल दिए गए। यह ठीक नहीं है। वैसे भी एक ब्यूरोक्रेट को चीजों को समझने के लिए समय दिया जाना चाहिए। सरकार के ही एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने बताया कि एक तो यही समझ में नहीं आ रहा है कि इस सरकार की प्राथमिकता क्या है? बहुत कुछ स्पष्ट ही नहीं हो रहा है। निर्णय लेने में देरी हो रही है। इससे समस्या बजाय कम होने के, बढ़ ही रही है। मनोहर सरकार में सत्ता का कोई एक केंद्र नहीं है। इससे भी बड़ी बात यह है कि बाहरी लोगों की दखल बढ़ रही है। सीएमओ और मंत्रियों के बीच तालमेल की काफी कमी है। इस वजह से भी असमंजस की स्थिति बनी रहती है। इस पर दिक्कत यह है कि यह सरकार कुछ चीजों को लेकर जल्दबाजी में है, जिससे बात बजाय बनने के, बिगड़ रही है। इस सरकार की जल्दबाजी का ही नतीजा था कि सोनीपत की दो फाइटर सिस्टर्स जिन्होंने बस में कुछ मनचले युवकों को धुना था, पहले तो उन्हें सम्मानित करने की बात कही गई, फिर शाम होते-होते सरकार ने अपनी घोषणा को वापस ले लिया। इसी तरह से सुनेपड़ा गांव में एक दलित को दबंगों ने जला कर मार दिया। सरकार ने पहले दलित के पक्ष में जोरदार बयान दिए, बाद में सरकार अपने बयान से पलट गई। कुल मिला कर यह स्थिति ठीक नहीं है।

आखिर कमी है कहां?
जानकारों का कहना है कि सरकार के पास अफसरों की टीम ही नहीं है। पहले बिना सोचे-समझे आईएएस अधिकारी प्रदीप कासनी को गुड़गांव में तैनात कर दिया गया, फिर विवाद हुआ तो उनका तबादला कर दिया गया। उन्हें मेडिकल शिक्षा में लगाया गया, पर वहां भी विवाद हुआ और वहां से हटा दिए गए। इसके बाद उन्हें साइड लाइन कर दिया गया। इसी तरह से अशोक खेमका के साथ हुआ। प्रदीप कासनी तो इस सरकार के साथ तब से हो लिए थे, जब सीएम ने शपथ भी नहीं ली थी। ऐसे में हुआ यह कि इस सरकार के पास अपने विश्वासपात्र अफसर की टीम ही नहीं है, जो सरकार के लिए न सिर्फ संकटमोचक रहे बल्कि रणनीति भी बनाए। कांग्रेस सरकार में हुड्‌डा के पास एक कोर टीम थी। इसी तरह से चौटाला के समय में भी एक टीम होती थी, लेकिन खट्‌टर सरकार की समस्या यह है कि उनके पास ऐसी टीम ही नहीं है। इस वजह से ज्यादातर अधिकारी सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। उन्हें सरकार की छवि व कार्यप्रणाली की चिंता ही नहीं है। रही-सही कसर इस तरह की बातों से पूरी हो गई कि सरकार में कुछ अफसर बाहर से आ रहे हैं। वे आएंगे या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन इस तरह की बातों से भी अफसरों का मनोबल टूट रहा है और खट्‌टर की टीम ही नहीं बन पा रही है। यही हाल मंत्रियों का भी है। सरकार के कम से कम तीन मंत्री ऐसे हैं जो अपने विभाग में अधिकारियों से खुश नहीं हैं।

श्रेय भी नहीं ले पा रही सरकार
मनोहर सरकार ने हरियाणा में दो ऐसे निर्णय किए जो ऐतिहासिक कहे जा सकते हैं। एक तो यह है कि पुलिस में सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक को अब वीकआॅफ मिलेगा। यह अपने आप में बड़ा निर्णय है। उसका पुलिस में खासा स्वागत हुआ। इसी तरह से दूसरा निर्णय यह है कि अब विभाग में क्लर्क से एचसीएस की प्रमोशन एक परीक्षा और सिस्टम से होगी। अभी तक इस प्रमोशन का कोई सिस्टम नहीं था। पिछली सरकार में इस तरह की प्रमोशन पर काफी हो हल्ला हुआ था। इस सरकार ने यह कमी पूरी कर दी। पर इस बात को जनता के बीच नहीं ले जा पाए। इस वजह से अच्छे कामों का यह सरकार श्रेय नहीं ले पाई। यही बात पिछले साल गेहूं के सीजन में दिए गए मुआवजे पर भी लागू हो रही है। सबसे ज्यादा मुआवजा देने के बाद भी सरकार जनता को खुश नहीं कर पाई। वजह यही थी कि अपने इस अच्छे काम की सरकार ब्रांडिंग ही नहीं कर पाई। हरियाणा के जानेमाने राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर सज्जन सिंह ने बताया कि पिछली सरकार तो यदि कोई गलत काम भी करती थी तो उसकी ब्रांडिंग ऐसी होती थी मानो जनहित में बड़ा निर्णय किया गया हो। यह सरकार तो अच्छे का भी श्रेय लेने से चूक रही है। 