नई दिल्‍ली।

वैसे तो गर्मी शुरू होते ही आग लगने के मामले सामने आने लगते हैं, लेकिन हम जिस आग की बात करने वाले हैं, वह कहीं अधिक चिंताजनक है। दरअसल, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक ऐसी तस्वीर जारी की है जिस पर चर्चा का बाजार गर्म है, क्‍योंकि तस्वीर में भारत के कई हिस्सों उत्तर प्रदेश,  मध्य प्रदेश,  महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में आग ही आग नजर आ रही है। नासा के कैमरे ने जिस आग को कैद किया है, वह गेहूं की पराली जलाने की तस्‍वीर है।

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किसान गेहूं की फसल को हार्सेस्टर से काटने के बाद खेतों में बची पराली को जला देते हैं। उससे खेतों की उर्वरा शक्ति तो प्रभावित होती ही है, उससे पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचता है। गेहूं का डंठल जलाने से वातावरण और गरम हो रहा है। सड़कों पर चलने वाले यात्री धुआं व गर्मी से परेशान हो जाते हैं।

पराली को जलाने वाले किसानों पर कार्रवाई भी हो रही है। दिल्ली और एनजीटी से हुई छीछा-लेदर के बाद हरियाणा का पर्यावरण मंत्रालय हाई अलर्ट पर है। विभाग ने धड़ाधड़ कार्रवाई करते हुए पूरे प्रदेश में खेतों में फसल का अवशेष जलाने वाले 35 लोगों के चालान काटे हैं। गुरुग्राम में भी एक मामला पकड़ा गया है। विभाग ने अवशेष जलाने वालों पर 27 हजार का जुर्माना लगाया है।

दिल्ली में पर्यावरण को लेकर काफी हल्ला हुआ था। इस पर एनजीटी, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी हरियाणा सरकार को निर्देश दिए थे। निर्देशों के बाद ही हरियाणा का जलवायु एवं परिवर्तन विभाग हरकत में आया है। सूबे के पर्यावरण मंत्री विपुल गोयल ने अधिकारियों को पर्यावरण नियंत्रित रखने का आदेश जारी किया है।

नासा द्वारा जारी तस्वीर को जंगल का बताया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि गर्मी की वजह से वहां आग लगी होगी, लेकिन नासा के एक रिसर्च साइंटिस्ट ने कहा है कि तस्वीर में नजर आने वाली आग जंगल की नहीं, फसल जलाने की वजह से नजर आ रही है। रिसर्च साइंटिस्ट हिरेन जेठवा के मुताबिक मध्य भारत में आग के ऐसे निशान दिखने की वजह जंगलों की आग नहीं है क्योंकि जब वहां आग लगती है तो बेकाबू होती है और ज्यादा धुआं और धुंध पैदा होती है। यह आग फसल के अवशेष जलाने की है।

पहले फसलों के अवशेष जलाने के ज्यादातर मामले हरियाणा और पंजाब के होते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं। वजह फसलों की कटाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल बढ़ना है। फसलों के बचे अवशेष को खेत से निकालना मुश्किल होता है। ऐसे में इसे खेत में जलाना किसानों के लिए अधिक सुविधाजनक होता है।