अॉस्ट्रेलिया के बाद अमेरिका में भी ‘नो एंट्री’

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनावी वादा निभाते हुए अमेरिकियों के रोजगार बढ़ाने वाली एच-1बी वीजा नीति में संशोधन के नियमों पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इसका मकसद अमेरिकी कंपनियों के लिए वहां के नागरिकों को नौकरियों में प्राथमिकता देने के लिए बाध्य करना है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि एच-1बी वीजा के दुरुपयोग को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। इससे भारतीय आईटी कंपनियों को तगड़ा झटका लगेगा। भारतीय आईटी पेशेवरों में इस वीजा की बेहद मांग है। इस आदेश से भविष्य में भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए अमेरिका में नौकरी करना मुश्किल हो जाएगा।

ट्रंप का कहना है कि एच-1बी वीजा के जरिए अमेरिकियों की नौकरियां छीनी जा रही थीं। उनका प्रशासन ‘हायर अमेरिकन’ नियमों को सख्ती से लागू करेगा जो अमेरिका में नौकरियों एवं वेतन को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए हैं। मेरे प्रशासन में हर किसी से उम्मीद की जाएगी कि वह अमेरिकी कर्मियों की ओर से ‘बाई अमेरिका’ के हर प्रावधान को लागू करें और हम इन प्रावधानों को कमजोर करने वाले हरेक व्यापार समझौते की जांच करेंगे।’ शासकीय आदेश के अनुसार विदेश मंत्री, अटॉर्नी जनरल, श्रम मंत्री और गृह सुरक्षा मंत्री यह सुनिश्चित करने के लिए सुधारों का सुझाव देंगे कि एच1बी वीजा सबसे कुशल एवं सर्वाधिक वेतन प्राप्त करने वाले प्रार्थी को दिया जाए।

इससे पहले एच-1बी वीजा देने में सख्ती बरतने का एेलान यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विस ने किया था। इस वीजा के जरिए अमेरिकी और भारतीय आईटी कंपनियों को अमेरिका में कम सैलरी पर कर्मचारी मिल जाते हैं। ऐसे में ये कंपनियां अमेरिकी कर्मचारियों को ज्यादा सैलरी देने की बजाय कम सैलरी में विदेशियों कर्मचारियों को रख लेती हैं। अमेरिका हर साल 85 हजार विदेशियों को एच-1बी वीजा जारी करता है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या भारतीय आईटी पेशेवरों की होती है। भारतीय आईटी इंडस्ट्री का कारोबार 150 अरब डॉलर का है। ऐसे में अगर अमेरिका में भारतीय कंपनियों को अमेरिकी कर्मचारियों को रखना पड़ेगा तो उनके मुनाफे में कटौती होगी।

ट्रंप के इस आदेश के बाद अब अमेरिकी संघीय एजेंसियों के लिए अमेरिकी कंपनियों से सामान खरीदना जरूरी होगा। इस आदेश का मकसद अमेरिका में निर्मित सामानों, उत्पादों और वस्तुओं के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की है। इसके लिए संघीय वित्तीय सहायता पुरस्कार और संघीय खरीद के नियमों और शर्तों के मुताबिक कानून का कठोरता से पालन करना होगा। यानी अमेरिकी कंपनियों के लिए सस्ते आयातित उत्पादों, खासकर स्टील का इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि कंपनियों को टैक्स में छूट दी जाएंगी लेकिन नियम का पालन नहीं करने पर उन्हें ट्रंप प्रशासन का कोपभाजन भी बनना होगा। सभी एजेंसी अमेरिकी खरीद के कानून पर गहरी नजर रखेंगी और इसे लागू करवाएंगी। कंपनियों की ओर से विभिन्न छूटों के इस्तेमाल में कटौती सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी एजेंसियों की होगी। वो इन छूटों के इस्तेमाल का इस नजरिए से भी आकलन करेंगे कि ये घरेलू नौकरियों और विनिर्माण पर क्या असर डाल रही हैं। इसके अलावा अमेरिकियों को नौकरी में प्राथमिकता देनी होगी।

हालांकि अमेरिकी और भारतीय आईटी कंपनियों का कहना है कि अमेरिका के लोग आईटी क्षेत्र में नौकरी करने के इच्छुक नहीं होते हैं। लिहाजा विदेशियों को इन नौकरियों में रखा जाता है। ट्रंप और उनके इस संरक्षणवादी नीति के समर्थकों का कहना है कि कंपनियों की यह दलील सच नहीं है। उनका कहना है कि इस आदेश का मकसद विदेशी प्रतिभाओं को अमेरिका में आने से रोकना नहीं है बल्कि इसके दुरुपयोग को रोकना है। साथ ही अमेरिकियों की नौकरियों को सुरक्षित करना है। ट्रंप के आदेश से कम कुशल कर्मचारी सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

क्या है एच-1बी वीजा
एच-1बी वीजा ऐसे विदेशी पेशेवरों के लिए जारी किया जाता है जो ऐसे ‘खास’ कामों के लिए स्किल्ड होते हैं। अमेरिकी सिटीजनशिप और इमिग्रेशन सर्विसेज के मुताबिक, इन ‘खास’ कामों में वैज्ञानिक, इंजीनियर और कंप्यूटर प्रोग्रामर शामिल हैं। आईटी कंपनियां इन प्रोफेशनल पर ज्यादा निर्भर होती है।

एच-2बी वीजा में कोई बदलाव नहीं
ट्रंप के इस नए आदेश का कृषि समेत अन्य क्षेत्र में काम करने वाले अमेरिकी सीजनल वर्कर वीजा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह वीजा कृषि के मौसम में विदेशियों को काम करने के लिए दिया जाता है जो एक निर्धारित समय के लिए होता है। इसके अलावा ट्रंप के आदेश में एच-1बी वीजाधारकों के जीवनसाथी को मिलने वाले एच-4 वीजा को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है।

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