ओशो
यदि तुमने जीवन को ठीक से जिया है, यदि तुमने एक क्षण से दूसरे क्षण को उसकी पूर्णता में जिया है, यदि तुमने जीवन का सारा रस निचोड़ लिया है, तुम्हारी मृत्यु एक परम सुख होगी। मृत्यु जो सुख लाती है उसकी तुलना में संभोग का सुख कुछ भी नहीं है, परन्तु वह उसी व्यक्ति को मिलता है जिसे पूर्ण होने की कला आती है। मृत्यु जो सुख लाती है उसकी तुलना में संभोग का सुख फीका है।
सभी मृत्यु से भयभीत
सभी मृत्यु से भयभीत हैं, कारण बस इतना है कि हमने अभी जीवन का स्वाद नहीं लिया है। जो व्यक्ति यह जानता है कि जीवन क्या है, वह कभी मृत्यु से नहीं डरता। वह मृत्यु का स्वागत करता है। जब भी मृत्यु आती है वह मृत्यु को गले लगा लेता है। मृत्यु का अभिवादन करता है, वह मृत्यु को एक अथिति की तरह स्वीकार करता है, जिस व्यक्ति ने यह नहीं जाना कि जीवन क्या है, उसके लिए मृत्यु शत्रु है; और जो व्यक्ति जानता है कि जीवन क्या है, उसके लिए मृत्यु जीवन का परम उत्थान है। लेकिन सभी मृत्यु से भयभीत हैं; वह भी संक्रामक है। तुम्हारे माता-पिता मृत्यु से डरते हैं, तुम्हारे पड़ोसी मृत्यु से डरते हैं। अपने आस-पास इस सतत भय को देखकर छोटे बच्चे भी प्रभावित हो जाते हैं। सभी मृत्यु से डरते हैं। लोग मृत्यु के बारे में बात भी नहीं करना चाहते।
दुनिया में केवल दो निषेध रहे हैं: सेक्स और मृत्यु। यह बहुत विचित्र बात है कि क्यों ये दोनों ऐसी निषेधित बातें रहीं हैं जिनके बारे में कोई बात नहीं की जाए, जिन्हें टाल दिया जाए। वे गहराई से जुड़ी हुई हैं। सेक्स जीवन को दर्शाता है क्योंकि सभी कुछ सेक्स से आता है, और मृत्यु अंत को दर्शाती है। और दोनों ही निषेधित रहीं हैं- सेक्स के बारे में बात मत करो और मृत्यु के बारे में भी बात मत करो।
मृत्यु जैसे शब्द को कुरूप बना दिया
मृत्यु के बारे में कुछ भी कुरूप नहीं है; परंतु व्यक्ति ने भयवश मृत्यु जैसे शब्द को भी कुरूप बना दिया है, उसका बहिष्कार कर दिया है। लोग उसके बारे में बात नहीं करते। वह इस शब्द को सुनते तक नहीं।
इस भय के कारण हैं। यह भय इसलिए उठता है क्योंकि मृत्यु हमेशा दूसरे की होती है। तुम मृत्यु को हमेशा बाहर से ही देखते हो और मृत्यु तुम्हारा भीतरी अनुभव है। यह प्रेम को बस बाहर से देखने जैसा है। तुम प्रेम को वर्षों तक देखते रह सकते हो, परन्तु प्रेम क्या है तुम कभी न जान पाओगे। तुम प्रेम की अभिव्यक्तियों को तो जान पाओगे, परंतु स्वयं प्रेम को नहीं। यही हम मृत्यु के संबंध में जानते हैं। बस सतही अभिव्यक्तियां- श्वास रुक गई, हृदय-गति थम गई, वह व्यक्ति जो बात करता था, चलता-फिरता था, अब नहीं है: बस लाश पड़ी रह गई है बजाय एक जीवित शरीर के।
ये सब बाहरी लक्षण हैं। मृत्यु आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में हस्तांतरण है, या फिर कुछ संदर्भों में जब कोई व्यक्ति पूर्ण जाग्रत हो गया है तब एक शरीर से पूरे ब्रह्मांड के शरीर में पहुंच जाना है। यह एक महानतम यात्रा है, पर तुम इसे बाहर से नहीं जान सकते। बाहर से तो केवल लक्षण ही मिलते हैं; और इन लक्षणों ने लोगों को भयभीत कर दिया है। जिन लोगों ने भी मृत्यु को भीतर से जाना है उनका मृत्यु से सब भय छूट जाता है।
मृत्यु से अधिक असत्य कुछ भी नहीं
मृत्यु के संबंध में पहली बात आपसे यह कहना चाहूंगा कि मृत्यु से अधिक असत्य और कुछ भी नहीं है। लेकिन मृत्यु ही सत्य, बल्कि जीवन का केंद्रीय सत्य मालूम होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि सारा जीवन मृत्यु से घिरा हुआ है। और चाहे हम भूल जाते हों, भुला देते हों, लेकिन फिर भी मृत्यु चारों तरफ निकट ही खड़ी रहती है। अपनी छाया से भी ज्यादा अपने पास मृत्यु है।
जीवन का जो रूप हमने दिया है, वह भी मृत्यु के भय के कारण ही दिया है। मृत्यु के भय ने समाज बनाया है, राष्ट्र बनाए हैं, परिवार बनाए हैं, मित्र इकट्ठे किए हैं। मृत्यु के भय ने धन इकट्ठे करने की दौड़ दी है, मृत्यु के भय ने पदों की आकांक्षा दी है, और सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मृत्यु के भय ने ही हमारे भगवान और हमारे मंदिर भी खड़े कर दिए हैं। मृत्यु से भयभीत घुटने टेककर प्रार्थना करते हुए लोग हैं। मृत्यु से भयभीत आकाश की तरफ, परमात्मा की तरफ हाथ जोड़े हुए लोग हैं। और मृत्यु से ज्यादा असत्य कुछ भी नहीं है। इसीलिए मृत्यु को सत्य मानकर हमने जो भी जीवन की व्यवस्था की है, वह सब भी असत्य हो गई है।
लेकिन मृत्यु का असत्य हमें कैसे पता चले? यह हम कैसे जान पाएं कि मृत्यु नहीं है? और जब तक हम यह न जान पाएं, तब तक हमारा भय भी विलीन नहीं होगा। जब तक मृत्यु का भय है, तब तक जीवन सत्य नहीं हो सकता है। और जब तक मृत्यु से हम डरे हुए कंप रहे हैं, तब तक जीवन को जीने की क्षमता भी हम नहीं जुटा सकते। जीवन को केवल वही जी सकता है, जिसके सामने से मृत्यु की छाया विदा और विलीन हो गई है। कंपता हुआ मन कैसे जीएगा? डरा हुआ मन कैसे जीएगा? और मौत जब प्रतिपल आती हुई मालूम पड़ती हो तो हम कैसे जीएं? हम कैसे जी सकते हैं?