संध्या द्विवेदी।

गैर बराबरी हमारे शरिया लॉ में नहीं बल्कि उसकी व्याख्या करने वाले लोगों के नजरिए और मंसूबों में है। इसलिए मुस्लिमों में महिलाओं को बराबर का अधिकार मिले इसके लिए हमें किसी समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं बल्कि हमारे ही लॉ में कुछ सुधार और गलत व्याख्या करने वालों पर कार्रवाई करने की जरूरत है। मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर स्पष्ट तौर पर कहती हैं, ‘हम समान नागरिक संहिता कुबूल नहीं करेंगे। दारुल कजा हमारे यहां न्यायिक संस्था है, जहां हम अपनी समस्या लेकर जा सकते हैं। अगर हमारे साथ कुछ नइंसाफी हुई है तो उसे कह सकते हैं। कुरान की रोशनी में यहां फैसले होते हैं। अगर यहां पर भी हमें लगता है कि न्याय नहीं मिला तो फिर कोर्ट के दरवाजे तो खुले ही हैं। समान नागरिक संहिता कुछ और नहीं बल्कि हमारी पहचान मिटाने और हमारे पर्सनल लॉ को खत्म करने का एक तरीका है।’

समान नागरिक संहिता को लेकर शाइस्ता अंबर में कितना गुस्सा भरा है, वह इसी से जाहिर होता है, ‘हमने भारतीय दंड संहिता कुबूल कर ली, संपत्ति हस्तांतरण कानून भी पूरे देश में एक सा है, कम से कम कुछ मसले तो हमारे लिए छोड़ दें। अगर कुछ कर सकते हैं तो मदरसों में पढ़ाई जाने वाली कुरान को कंठस्थ कराने की जगह उसका अर्थ बताना अनिवार्य करें। मुट्ठीभर लोग कुरान का अर्थ जानकर अनर्थ करते हैं।’ हालांकि शाइस्ता अंबर की नाराजगी इस बात से भी है कि उन्हें विधि आयोग ने चर्चा के लिए नहीं बुलाया जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बुलाया गया है। वह पूछती हैं, ‘प्रचारित किया जा रहा है कि समान नागरिक संहिता से महिलाओं को न्याय मिलेगा, गैर बराबरी खत्म होगी। लेकिन यहां तो पहला ही कदम भेदभाव भरा है। सबसे ज्यादा अन्याय तो औरतों के साथ होता है लेकिन चर्चा करने के लिए पुरुषों को न्योता भेजा गया है। संविधान ने हमें धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है, इसे कैसे कोई सरकार छीन सकती है?’

जब उनसे पूछा गया कि समान नागरिक संहिता इसीलिए है ताकि तलाक और बहुविवाह जैसे मसलों से निपटा जा सके। तो उनका जवाब था, ‘तीन तलाक को कुरान में मान्यता नहीं दी गई है, और बहुविवाह के लिए कड़ी शर्ते हैं। इन शर्तों को पार करना सबके बस की बात नहीं है। हमारी कुरान में महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा हक मिले हैं। इसलिए मैं फिर कहती हूं हमारे शरिया लॉ को कोडिफाई करना चाहिए, कुछ सुधार किए जा सकते हैं।’ 