गुरदयाल सिंह को नामी गिरामी हस्तियों की श्रद्धांजलि

निशा शर्मा।

जानेमाने पंजाबी लेखक और उपन्यासकार गुरदयाल सिंह का गुरूवार को अंतिम संस्कार किया गया। गुरदयाल सिंह का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार को निधन हो गया था। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल समेत कई दिग्गजों ने सिंह की मौत पर शोक जताया है।

डोगरी की जानी- मानी लेखिका पद्ममा सचदेव ने गुरद्याल सिंह के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि गुरदयाल सिंह पंजाबी के ऐसे लेखक थे जिन्होने पंजाबी भाषा और पंजाब की समस्याओं को दुनिया के सामने रखा। गुरद्याल सिंह का जाना पंजाबी साहित्य की ऐसी हानि है जिसकी भरपाई कर पाना नामुमकिन है।

गुरद्याल सिंह शिक्षक थे और 1995 में पटियाला में पंजाबी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उसके बाद उन्होंने लिखना निरंतर जारी रखा।

पंजाब यूनिवर्सिटी के यूथ वेलफेयर के निदेशक निर्मल जौडा गुरदयाल सिंह को याद करते हुए कहते हैं कि वह राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय लेखक थे जिन्होंने पंजाबी भाषा में उपन्यास लिखने के प्रचलन को ही बदल दिया। गुरद्याल सिंह से पहले पंजाबी भाषा में रोमेंटिक उपन्यासों को लिखने का चलन था। पंजाब की अगर सही तस्वीर किसी ने उकेरी है तो वह है गुरदयाल सिंह ने। यही वजह है कि अमृता प्रीतम के बाद किसी को अगर ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया तो वह गुरदयाल सिंह थे। जितने अच्छे वह लेखक रहे हैं उतने ही अच्छा गुरदयाल सिंह का व्यक्तित्व था।

गुरदयाल सिंह के उपन्यास पर आधारित फिल्म ‘मढ़ी दा दीवा’ को 1989 में पंजाबी भाषा की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था। सिंह के उपन्यास ‘अन्ने घोड़े दा दान’ पर आधारित एक अन्य फिल्म को ऑस्कर पुरस्कारों के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के तौर पर चुना गया था।

गुरदयाल सिंह के दामाद और लेखक डॉ जलौर सिंह खिवा का कहना है कि गुरदयाल सिंह बड़े सीधे और सरल स्वभाव के इंसान थे। कभी किसी बहस या पार्टी बाजी का हिस्सा नहीं रहे । बस इतना था कि अपनी बात कहते थे कोई सुने या अनसुना करे लेकिन खुद को सही साबित करने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की।  पुरानी चीजों को नए कंटेक्सट में लिखना उनकी विशेषता रही। दलितों की पीड़ा को जितनी गहराई से गुरदयाल सिंह ने उकेरा उतना लिखने का साहस किसी ने नहीं किया।  सिंह साहब काफी दिनों से बीमार चल रहे थे अपने आखिरी दिनों में व्हील चेयर पर थे।

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