सेलेब्रिटी का ब्रांड एम्बेसडर अवतार

प्रो. प्रशांत सल्वान ।  इधर पिछले कुछ हफ्तों से किसी प्रोडक्ट या कंपनियों के ब्रांड से जुड़े फिल्म और खेल की दुनिया के कई बड़े सितारे विवादों से भी जुड़े रहे। हकीकत यह है कि फिल्मी सितारे जितना फिल्मों से कमाते हैं उससे कहीं अधिक कमाई वे ब्रांड एंडोर्समेंट के जरिए करते हैं। शाहरुख खान जैसे सितारे ने 2008 में जितनी कमाई ‘रब ने बना दी जोड़ी’ से की थी उससे चार गुना ज्यादा उन्होंने विज्ञापनों और ब्रांड एंडोर्समेंट के जरिए कमाया। खेल की दुनिया में महेंद्र सिंह धोनी की बात करें तो 2009 में उन्होंने जितना अपनी क्रिकेट की फीस और आईपीएल से कमाया था उसका आठ गुना ब्रांड एंडोर्समेंट और एडवर्टिजमेंट के जरिये कमाया।

भारत में न तो किसी सेलेब्रिटी का ब्रांड एंडोर्समेंट करना नई बात है और न ही उनको व उस ब्रांड को लेकर होने वाले विवाद नए हैं। ब्रांड एम्बेसडर को कोई कंपनी या संस्थान अपने किसी ब्रांड को सकारात्मक रूप में लोगों के बीच ले जाने के लिए हायर करता है। इससे लोगों के बीच ब्रांड के प्रचार और उसकी बिक्री बढ़ाने में मदद मिलती है। ब्रांड एम्बेसडर को अपने तौर तरीकों, मूल्यों और नैतिकता को तवज्जो देते हुए एक कॉरपोरेट अवतार में ढलना पड़ता है। यह उनके काम का हिस्सा है।

सेलेब्रिटी लोगों के गुस्से का भी निशाना बनते हैं। एक ज्वैलरी के विज्ञापन को लोगों ने नस्लवादी करार दिया था। उसकी भयंकर आलोचना की गई। पब्लिक रिएक्शन इतना जबरदस्त था कि उस कंपनी को एक नोट भेजना पड़ा कि वह अपने विज्ञापन से वह फोटो हटा रही है।

कुछ साल पहले गोरा करने का दावा करने वाली एक क्रीम को लेकर शाहरुख खान को भी ऐसी ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। ‘डार्क एंड ब्यूटिफुल’ नाम से एक आॅनलाइन कैम्पेन चलाया गया था जिसमें फिल्म स्टार और उस ब्रांड से गोरा करने का दावा करने वाली क्रीमों को बढ़ावा देना बंद करने को कहा गया था। और 2013 में तो हमारे महानायक अमिताभ बच्चन ही एक कैंडी के विज्ञापन को लेकर दिक्कत में फंस गए थे जिसमें वह आम के पेड़ पर पत्थर फेंकते दिखाई दिए थे। विज्ञापन के खिलाफ शिकायत मिलने पर एडवर्टिजमेंट स्टैंडर्ड काउंसिल आॅफ इंडिया ने शिकायत को सही पाया। काउंसिल ने टिप्पणी की कि बच्चे बिग बी को आम के पेड़ को पत्थर मारते देखकर वैसी ही नकल कर सकते हैं जिसके खराब परिणाम हो सकते हैं। बाद में वह विज्ञापन हटा लिया गया।

इसी तरह जयपुर में जब एक छात्रा ने अमिताभ बच्चन से कोला के एड को लेकर सवाल किया कि तो उन्होंने कहा कि वह उस कंपनी के साथ अपना करार तोड़ रहे हैं। अमिताभ बच्चन ने खुद इस बात को बताया कि लड़की ने उनसे सवाल किया था कि आप ऐसे सॉफ्ट ड्रिंक को प्रमोट क्यों करते हैं जिनको उसकी टीचर जहर बताती है।

और अभी हाल में भारी जन असंतोष के बीच महेंद्र सिंह धोनी ने रियल एस्टेट कंपनी आम्रपाली ग्रुप के साथ ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर अपना कांट्रैक्ट खत्म कर दिया। दरअसल हम सभी के लिए घर बहुत महत्वपूर्ण है। अपनी खून पसीने की कमाई को हम ‘अपना घर’ का सपना साकार करने में खर्च कर देते हैं। घर खरीदने वालों को वादा किए गए समय पर अगर घर न मिले तो इससे बड़ा विश्वासघात उनके साथ और कुछ नहीं हो सकता। आप पूरा पैसा अदा कर दें और इसके बाद भी आपको मकान का कब्जा न मिले तो इससे कितनी तकलीफ होती है इसका अंदाजा हममें से हर कोई लगा सकता है। इसीलिए धोनी ने जब लोगों की प्रतिक्रिया देखी तो उन्होंने अपना नाम आम्रपाली ग्रुप से वापस ले लिया।

लेकिन यहीं पर यह सवाल भी उठता है कि सेलेब्रिटीज कोई कदम केवल तभी क्यों उठाते हैं जब वह ब्रांड लोगों के साथ कुछ गलत करता है और जन असंतोष इतना बढ़ जाता है कि लोग उसके खिलाफ व्यापक व तीखी प्रतिक्रिया देने को मजबूर हो जाते हैं। अगर आप किसी प्रोडक्ट के ब्रांड एम्बेसडर हैं तो उस ब्रांड के अच्छे-बुरे से आपका प्रभावित होना तय है। सेलेब्रिटीज जिस ब्रांड को एंडोर्स कर रहे हैं उसके चुनाव में सावधानी बरतना और पूरी जानकारी रखना उनके लिए निहायत जरूरी है।

प्रबंधन के सिद्धांत के अनुसार ब्रांड एम्बेसडर वे लोग हैं जो बड़ी संख्या में पोटेंशियल कस्टमर्स (जिसमें उनके मित्र और परिवार के लोग भी शामिल हैं) के सामने उस कंपनी के सकारात्मक सरोकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्हें उसके बारे में बताते हैं। यह उनका प्राथमिक कार्य है। चूंकि सेलेब्रिटी का व्यापक प्रभाव होता है इसलिए कंपनी को कई लॉयल कस्टमर्स मिल जाते हैं।

अब हम धोनी के मामले को देखते हैं। किसी रियल्टी कंपनी का ब्रांड एम्बेसडर बनना कोई बुरी बात नहीं है। एक ब्रांड एम्बेसडर के लिए जरूरी है कि वह उस प्रोडक्ट के लोगों के जीवन पर पड़ने वाले कानूनी और व्यावयहारिक प्रभावों की पूरी और सटीक जानकारी रखे। धोनी को आम्रपाली के काम की समय समय पर समीक्षा करते रहना चाहिए था। उन्हें यह देखना था कि फ्लैट्स कस्टमर को तय समयसीमा के भीतर दिए जा रहे हैं या नहीं। इसका एक आईटी टूल भी उपलब्ध है जिसके जरिए धोनी प्रॉमिस्ड डेट और डिलीवरी डेट देख सकते थे। अगर वह ऐसा करते तो इससे न केवल धोनी की अपनी ब्रांड वैल्यू बढ़ती बल्कि कस्टमर भी उस ग्रुप से जुड़कर गौरव का अनुभव करते। वास्तविकता तो यह है कि इस छोटी सी चीज को कर आम्रपाली ग्रुप अत्यंत विशाल ब्रांड वैल्यू अर्जित कर सकता था।

सरकार ऐसा कानून बनाने पर विचार कर रही है जिसमें अगर कोई कंपनी या प्रोडक्ट कस्टमर्स के साथ धोखा करता है तो ब्रांड सेलेब्रिटीज की भी उसकी जिम्मेदार मानी जाएगी। अगर ऐसा कानून बनता है तो फिर सेलेब्रिटीज अपने एंडोर्स किए गए ब्रांडों को फिर से देखने परखने और अपने कारोबारी रिश्तों पर नए सिरे से सोचने को मजबूर हो सकते हैं।

फिलहाल के लिए मेरा मशविरा है कि खेलों और फिल्मों में जुड़ी हस्तियों को केवल उन्हीं ब्रांड को एंडोर्स करना चाहिए जिसके अच्छे ट्रैक रिकार्ड, बढ़िया गुणवत्ता और नैतिकता के बारे में उन्हें अच्छे से जानकारी हो। इससे भी ज्यादा जरूरी उन्हें यह देखना चाहिए कि क्या वह ब्रांड अपने कर्मचारियों, पर्यावरण, प्रचलित कानून और कस्टमर्स के प्रति पारदर्शी है या नहीं।

(लेखक आईआईएम इंदौर में स्ट्रेटजी एंड इंटरनेशनल बिजनेस पढ़ाते हैं)

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