ओपिनियन पोस्ट
नई दिल्ली । मोबाइल रेडिएशन को लेकर क्या कंपनियां झूठ बोलती हैं? क्या लोगों का ध्यान भटकाने के लिए रिसर्च में जानबूझकर ऐसा बताया जा रहा है कि मोबाइल से रेडिएशन नहीं होता? क्या वाकई मोबाइल हमें बीमार कर रहा है? ऐसे कई सवालों के जवाब देश के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान में से एक एम्स की स्टडी से आपको मिल जाएंगे।
एम्स ने मोबाइल रेडिएशन पर रिसर्च करने वाली अलग-अलग रिपोर्ट का अध्ययन कर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। और रिपोर्ट का सार समझें तो यही लगता है कि कंपनियां अपने फायदे के लिए गलत आंकड़े पेश करती हैं।
बता दें कि दुनियाभर में 48,452 लोगों पर हुए ऐसे 22 अध्ययनों पर ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ साइंसेस यानि एम्स विश्लेषण करते हुए कहा है कि मोबाइल रेडिएशन से ब्रेन ट्यूमर का खतरा 33 फीसदी तक बढ़ जाता है। वहीं सरकारी फंडेड रिसर्च ने भी मोबाइल से ब्रेन ट्यूमर का खतरा बताया है।
जबकि इंडस्ट्री फंडेड रिसर्च के मुताबिक मोबाइल से ब्रेन ट्यूमर के प्रमाण नहीं मिलते है। लेकिन अभी भी कंपनियां ये मानने को तैयार नहीं है कि मोबाइल रेडिएशन को लेकर वो कुछ छुपाती हैं।
मोबाइल रेडिएशन पर कई रिसर्च पेपर तैयार कर चुके आईआईटी बॉम्बे में इलेक्ट्रिकल इंजिनियर प्रो. गिरीश कुमार का भी कहना है कि मोबाइल रेडिएशन से तमाम दिक्कतें हो सकती हैं, जिनमें प्रमुख हैं सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान महसूस करना, चक्कर आना, डिप्रेशन, नींद न आना, आंखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान न लगना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचन में गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द आदि।
क्या कुछ और खतरे भी हो सकते हैं मोबाइल रेडिएशन से?
स्टडी कहती है कि मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। दरअसल, हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है। यहां तक कि बीते साल आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल से कैंसर तक होने की आशंका हो सकती है। इंटरफोन स्टडी में कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है।
रेडिएशन कितनी तरह का होता है?
माइक्रोवेव रेडिएशन उन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के कारण होता है, जिनकी फ्रीक्वेंसी 1000 से 3000 मेगाहर्ट्ज होती है। माइक्रोवेव अवन, एसी, वायरलेस कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन और दूसरे वायरलेस डिवाइस भी रेडिएशन पैदा करते हैं। लेकिन लगातार बढ़ते इस्तेमाल, शरीर से नजदीकी और बढ़ती संख्या की वजह से मोबाइल रेडिएशन सबसे खतरनाक साबित हो सकता है। मोबाइल रेडिएशन दो तरह से होता है, मोबाइल टावर और मोबाइल फोन से।
रेडिएशन से किसे ज्यादा नुकसान होता है?
मैक्स हेल्थकेयर में कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पुनीत अग्रवाल के मुताबिक मोबाइल रेडिएशन सभी के लिए नुकसानदेह है लेकिन बच्चे, महिलाएं, बुजुर्गों और मरीजों को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स ऐडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि बच्चों और किशोरों को मोबाइल पर ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहिए और स्पीकर फोन या हैंडसेट का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि सिर और मोबाइल के बीच दूरी बनी रहे। बच्चों और और प्रेगनेंट महिलाओं को भी मोबाइल फोन के ज्यादा यूज से बचना चाहिए।
मोबाइल रेडिएशन से ब्रेन ट्यूमर का खतरा

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