भूमि की तलाश में भाजपा

गुलाम चिश्ती।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को सामाजिक अभियांत्रिकी का माहिर माना जाता है। उनके इस गुण का ही कमाल है कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में जीत का इतिहास रचा और सपा-बसपा जैसी बड़ी पार्टियों को हाशिये पर ला खड़ा किया। उनकी सोशल इंजीनियरिंग बिहार को छोड़कर उत्तर भारत के कई राज्यों में अपना रंग दिखा चुकी है। बिहार में उनकी सोशल इंजीनियरिंग इसलिए नहीं चली क्योंकि नीतीश और लालू को इसका मास्टर माना जाता है। पूर्वोत्तर भारत के असम और मणिपुर में भाजपा की जीत में भी उनकी रणनीति कारगर सिद्ध हुई थी, परंतु त्रिपुरा जैसे राज्य में भी उनकी रणनीति को रफ्ता-रफ्ता कामयाबी मिलेगी, इसकी संभावना कम थी। पिछले मई महीने में शाह त्रिपुरा के दौरे पर थे। उनकी यह यात्रा राजनीतिक दृष्टि से काफी सफल रही। देश के सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री माने जाने वाले माणिक सरकार के सामने विपक्ष पिछले दो दशकों से बौना रहा है। मुख्यमंत्री सरकार की कामयाबी का कारण सिर्फ उनकी ईमानदारी ही नहीं, बल्कि राज्य के चहुंमुखी विकास में उठाए गए उनके सार्थक कदम भी हंैं। उनके कार्य से राज्य के अधिकांश लोग खुश हैं। उन पर और उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं हैं। ऐसे में उनको हार का मजा चखाना आसान नहीं है। फिर भी भाजपा वहां धीरे-धीरे अपना जनाधार बढ़ाने में कामयाब हो रही है। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस के छह विधायकों की ओर से पार्टी के निर्देश की अवहेलना करते हुए भाजपा के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को वोट देने की घोषणा करते हुए टीएमसी से इस्तीफा दे दिया है। साथ ही वे अपने लाखों समर्थकों के साथ भाजपा में जाएंगे। टीएमसी विधायक दल के नेता टीसी रेंगख्वाल ने पार्टी के जिला स्तर के नेताओं के साथ बैठक करने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया और इसकी जानकारी विधानसभा अध्यक्ष को दे दी।
बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में टीएमसी को एक भी सीट नहीं मिली थी,परंतु वर्ष 2016 में असम विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद कांग्रेस के छह विधायकों ने टीएमसी का दामन थाम लिया था। ऐसे में कांग्रेस के पास एकमात्र विधायक रह गया था, परंतु कहा जा रहा है कि कांग्रेस का एकमात्र विधायक भी भाजपा में जाने की तैयारी में है। याद रहे कि पिछली 6 मई को अपनी त्रिपुरा यात्रा के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य में वाम मोर्चा सरकार को सत्ताच्युत करने के लिए अन्य विपक्षी दलों के नेताओं को भाजपा में आने का आह्वान किया था। वास्तव में तृणमूल और कांग्रेस के विधायक को भाजपा में लाने की प्रक्रिया उसी समय शुरू हो गई थी और अब राष्ट्रपति चुनाव के समय पूरी हो रही है। तृणमूल कांग्रेस के विधायकों का कहना है कि हम उस उम्मीदवार का कैसे समर्थन कर सकते हैं, जिसका समर्थन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) कर रही है। भाजपा की रणनीति है कि त्रिपुरा चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों को भी शामिल किया जाएगा और उनकी जिम्मेदारी राज्य के लोगों को केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं के बारे में शिक्षित करना और राज्य सरकार द्वारा उनके क्रियान्वयन में खामियां बताना होगा। त्रिपुरा में पिछले 24 सालों से वाम मोर्चा (लेफ्ट फ्रंट) का शासन रहा है। ऐसे में भाजपा को यहां कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर ओपिनियन पोस्ट को बताया कि बीजेपी राज्य संगठन में सुधार करने की भी कोशिश में है। त्रिपुरा में सत्ता विरोधी लहर और अपनी स्वीकार्यता बढ़ते हुए देखकर भाजपा इसे एक बेहतर अवसर मान रही है। हाल ही में संपन्न हुए निकाय चुनावों में भाजपा कई स्थानों पर दूसरे स्थान पर रही थी। बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता देने संबंधी संशोधन बिल के मद्देनजर राज्य का एक तबका यहां भाजपा को मजबूत करने में लगा हुआ है। भाजपा कार्यकर्ता शांतनु सरकार का दावा है कि राज्य में बीजेपी का जनाधार बढ़ रहा है, जिसका अंदाजा पार्टी की सदस्यता से लगाया जा सकता है। साल 2014 में यह 15,000 से बढ़कर इस साल 2 लाख से अधिक हो गई है। भाजपा की रणनीति है कि त्रिपुरा चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों को भी शामिल किया जाएगा और उनकी जिम्मेदारी राज्य के लोगों को केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं के बारे में शिक्षित करना और राज्य सरकार की ओर से उनके क्रियान्वयन में खामियां बताना होगा। त्रिपुरा में पिछले 24 सालों से वाम मोर्चा (लेफ्ट फ्रंट) का शासन चल रहा है। ऐसे में भाजपा को यहां कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बीजेपी राज्य संगठन में सुधार करने की भी कोशिश में है। त्रिपुरा में सत्ता विरोधी लहर और अपनी स्वीकार्यता बढ़ते हुए देखकर भाजपा इसे एक बेहतर अवसर मान रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भरोसा है कि उनकी पार्टी त्रिपुरा में अगली सरकार बनाएगी। साथ ही कहा कि पार्टी पूर्वोत्तर राज्य में लंबे मार्क्सवादी कुशासन की एकमात्र विकल्प है। पिछले 25 साल से त्रिपुरा भ्रष्टाचार का माहौल महसूस कर रहा है, जहां कानून व्यवस्था की स्थिति वस्तुत: ध्वस्त हो गई है और महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। उन्होेंने अन्य गैर वाम राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन की संभावना से इनकार नहीं किया, लेकिन कहा कि पार्टी अपना आधार मजबूत करने पर विशेष जोर दे रही है। भाजपाइयों की मानें तो राज्य की आबादी 37 लाख है और 65 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रह रहे हैं, वहीं 25 प्रतिशत लोगों को स्वच्छ पेयजल तक उपलब्ध नहीं है। उनका कहना है कि मार्क्सवादी हिंसा और प्रतिशोध की भावना राज्य में भाजपा के उदय को नहीं रोक सकती। अपने त्रिपुरा यात्रा के दौरान भाजपा अध्यक्ष शाह ने लोगों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास यात्रा का हिस्सा बनने की अपील की थी और उम्मीद जताई थी कि भाजपा त्रिपुरा में अगली सरकार बनाएगी और लड़ाई कठिन नहीं होगी। कारण कि कम्युनिस्ट पूरी दुनिया में कमजोर हो गए हैं। वहीं कांग्रेस एक छोटी पार्टी बन कर रह गई है। शाह ने कहा था कि अगर 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में आई तो नई सरकार राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करेगी। यह पूछे जाने पर कि पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कितनी सीटों पर जीत की उम्मीद कर रही है, शाह ने कहा था कि वह इसका उत्तर नवंबर में देंगे, जब वह लौट कर आएंगे।

बता दें कि बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता देने संबंधी संशोधन बिल के मद्देनजर राज्य का एक तबका यहां भाजपा को मजबूत करने में लगा हुआ है। उल्लेखनीय है कि शाह की बातें सुनकर स्थानीय भाजपाई गदगद हैं। भाजपा कार्यकर्ता सुनील विश्वास का कहना है कि पहले की अपेक्षा राज्य में भाजपा काफी मजबूत हुई है। लोगों में पार्टी के प्रति विश्वास बढ़ा है। खासतौर शाह ने जिस तरह से हमारा उत्साहवर्द्धन किया है, उनसे काफी उम्मीदें जगी हैं। मजे की बात है कि जहां एक ओर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी अपनी माटी और मानुष की बातें कहती हैं, वहीं त्रिपुरा में उनकी पार्टी दोहरी भूमिका निभाने से बाज नहीं आती। इस राज्य में कभी कांग्रेस सत्ताधारी पार्टी हुआ करती थी, परंतु पिछले ढाई दशक से पार्टी सत्ता से बाहर हो गई है और आगे स्थिति और बदतर दिख रही है। त्रिपुरा कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सभी साठ सीटों पर उम्मीदवार तक मिलने की उम्मीद नहीं है। जहां एक ओर अगले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां चुनावी तैयारी में लग गई हैं, वहीं कांग्रेस में इसको लेकर कोई तैयारी नहीं है। सांगठनिक चुनाव के लिए जो सदस्यता अभियान पार्टी की ओर से देशभर में चलाया जा रहा है, उसके प्रति लोगों में बिल्कुल ही उत्साह नहीं है। बूथ समिति, ब्लाक और जिला समितियां बिल्कुल ठप पड़ गई हैं। ऐसे में पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में एक भी चुनाव जीत पाएगी, इसमें शक नहीं है। अंत में यहां राज्य की सत्ताधारी माकपा का भी जिक्र करना जरूरी है। कारण कि मुख्यमंत्री मानिक सरकार देश के सबसे ईमानदार और सफल मुख्यमंत्री माने जाते हैं। पिछले वर्ष हुए दो सीटों पर हुए उपचुनावों और हाल ही में हुए स्थानीय स्तर के चुनावों में माकपा एक फिर जीत दर्ज करने में कामयाब रही है। ऐसे में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में माकपा भाजपा की आंधी में लुप्त हो जाएगी, ऐसी भविष्यवाणी ठीक नहीं है। फिर भी, भाजपा ने जिस तरह असम और मणिपुर में शून्य से शिखर तक का रास्ता तय अपनी अजमत दिखा चुकी है। ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा त्रिपुरा में भी कमल खिलाने में कामयाब हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *