असम

पूर्वोत्तर भारत के इस राज्य में भाजपा ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान सेंध लगाना शुरू कर दिया था. पूर्वोत्तर में साल 2014 के पहले भाजपा का कोई बड़ा आधार नहीं था, लेकिन उसने धीरे-धीरे यहां अपना प्रभाव स्थापित करना शुरू किया और 2014 के लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया. इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की जीत हुई और पहली बार असम में भाजपा की सरकार बनी. असम की भाजपा सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी काफी पहले कर ली थी. राज्य में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू करने की कवायद शुरू की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश से आए घुसपैठियों की पहचान करके उन्हें मतदान आदि जैसे नागरिकों अधिकारों से वंचित करना था. इसका असर दिखा और भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव से ज्यादा सीटें मिलीं, लेकिन मोदी लहर पर सवार भाजपा को असम से जितनी सीटों की उम्मीद थी, उतनी नहीं मिल पाईं. एनआरसी के मुद्दे पर भाजपा सरकार के साथ खड़ी रहने वाली सहयोगी पार्टी असम गण परिषद ने नागरिकता विधेयक पर विरोध किया और गठबंधन से बाहर चली गई. नागरिकता विधेयक पारित न हो पाने के बाद अगप ने फिर से भाजपा का साथ देना स्वीकार कर लिया, लेकिन इसके कारण जो आंदोलन चले, उसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा. भाजपा ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में असम की 14 संसदीय सीटों में से 07 पर जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार केवल दो सीटों का इजाफा हो पाया. भाजपा को 09 सीटें मिलीं, जबकि देश के अन्य हिस्सों से पूरी तरह हार रही कांग्रेस ने 03 सीटों पर जीत दर्ज की. कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लडऩे वाली एआईयूडीएफ को एक सीट पर जीत हासिल हुई. राज्य में एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार भी जीता. सबसे बड़ी बात यह है कि इतने प्रयास करने के बाद भी सत्तारूढ़ पार्टी का वोट शेयर कांग्रेस से थोड़ा ही ज्यादा रहा. असम में कांग्रेस के लिए यह अच्छा संकेत है. भाजपा को जहां 36.1 प्रतिशत वोट मिले, वहीं कांग्रेस को 35.4 प्रतिशत है.