असम विधानसभा चुनाव का पहले चरण का मतदान खत्म हो चुका है। पहले चरण में कुल 126 सीटों में से 65 सीटों पर करीब 70 फीसदी मतदान हुआ है। सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोक दी है। मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अंजन दत्त का दावा है कि राज्य में कांग्रेस लगातार चौथी बार सरकार बनाएगी। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सवार्नंद सोनोवाल, असम गण परिषद के अध्यक्ष अतुल बोरा और बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) प्रमुख हग्रामा महिलारी ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस बार दिसपुर की सूबेदारी भाजपा-अगप-बीपीएफ गठबंधन के पास होगी। महिलारी का तो यहां तक दावा है कि बीपीएफ जिसके साथ होती है, सरकार उसकी ही बनती है।

उधर, अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक गठबंधन (एआईयूडीएफ) सुप्रीमो मौलाना बदरुद्दीन अजमल का कहना है कि राज्य में भाजपा गठबंधन को सरकार बनाने से रोकने के लिए उनका गठबंधन (एआईयूडीएफ-जदयू-राजद) पूरी तरह सक्षम है। बावजूद इसके यदि गठबंधन में कांग्रेस शामिल होती तो भाजपा नीत सांप्रदायिक शक्तियों को हराने में काफी मदद मिलती। ऐसे में यदि भाजपा गठबंधन सत्ता में आ जाती है तो इसके लिए कांग्रेस जिम्मेवार होगी। उन्होंने कहा कि हमने भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन कांग्रेस ने हमारी बातों पर तवोज्ज नहीं दिया। कांग्रेस को लगता है कि वह अपने दम पर सरकार बना लेगी लेकिन राज्य में कोई भी धर्मनिरपेक्ष गठबंधन हमारे बिना सरकार नहीं बना सकती।

नेताओं के इन दावों पर पूर्वोत्तर के सबसे पुराने और सबसे बड़े हिंदी दैनिक पूर्वांचल प्रहरी के संपादक जीएल अग्रवाल का कहना है कि भाले ही राज्य की सभी प्रमुख पार्टियां अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं लेकिन जीत उसी पार्टी या गठबंधन की होगी जो कार्यकर्ताओं के आक्रोश, बगावत और भितरघात को रोकने में सक्षम होगी। उल्लेखनीय है कि टिकट बंटवारे के बाद राज्य की सभी प्रमुख पार्टियों (कांग्रेस, भाजपा, एआईयूडीएफ व अगप) के कार्यकर्ताओं में काफी आक्रोश है। सत्ताधारी कांग्रेस के उम्मीदवारों की पहली सूची में दुलियाजान की विधायक अमिया गोगोई, महमरा के विधायक शरद सैकिया और हैलाकांदी के विधायक व वरिष्ठ अधिवक्ता मुहिम मजूमदार के नाम नहीं हैं। साथ ही पार्टी के ऐसे कई विधायक हैं जिनकी जगह उनके करीबी रिश्तेदारों को टिकट दिया गया। इनमें जीवनतारा घटोवार के पति व पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन सिंह घटोवार, पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष मोहन देव की पत्नी बीथिका देव, गौतम राय व मदिरा राय के पुत्र राहुल राय, असम प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष अंजन दत्त की पुत्री अंकिता दत्त, मेंबर गोगोई की बहू पल्लवी सैकिया, ए. तिर्की की बेटी रोसेलिना तिर्की, गोविंद्र चंद्र लांग्थासा के पुत्र निर्मल लांग्थासा और रामेश्वर धनोवार के पुत्र गौतम धनोवार शामिल हैं। बताते चलें कि अगप से कांग्रेस में शामिल दुर्गा दास बोडो को पानेरी और  एआईयूडीएफ से कांग्रेस में शामिल मौलाना अताउर रहमान माजरभूइया को काटीगोड़ा से टिकट दिया गया। ऐसे में दुलियाजान और महमरा के निवर्तमान विधायक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े होने की तैयारी में हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ने उन्हें ऐसा नहीं करने का आग्रह किया है।

जिन-जिन सीटों से वर्तमान विधायकों के सगे-संबंधियों को टिकट मिला है, वहां के स्थानीय नेता और कार्यकर्तओं में गहरा रोष है। उनका कहना है कि पार्टी में खानदानी राज की परंपरा खत्म होनी चाहिए। असम-नगालैंड सीमा पर स्थित सरूपथार विधानसभा क्षेत्र के वयोवृद्ध विधायक ए. तिर्की ऐसे विधायक हैं जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में विधानसभा की कार्यवाही में सबसे कम भाग लिया। सेहत ठीक नहीं होने से वह विधानसभा नहीं जा पाते। वे अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ भी सही इंसाफ नहीं कर सके। ऐसे में स्थानीय कांग्रेस के नेताओं व कार्यकतार्ओं ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में ब्रजेन कुमार हैंडिक को टिकट देने की मांग की थी परंतु उनकी नहीं सुनी गई और उनकी बेटी रोसेलिना तिर्की को टिकट दे दिया गया। सरूपथार विधानसभा क्षेत्र में आहोम समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है परंतु यहां से सभी प्रमुख पार्टियां चाय समुदाय के लोगों को टिकट देती आ रही है। दूसरी ओर बोकाखात ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां चाय समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है परंतु यहां हमेशा गैर चाय समुदाय के लोगों को टिकट मिलता रहा है।

ऐसे में काफी दिनों से कांग्रेस नेतृत्व से मांग की जा रही थी कि सरूपथार से आहोम और बोकाखात से चाय समुदाय के नेता को टिकट मिले परंतु इसमें बदलाव नहीं किया गया। इस बार बोकाखात से चाय समुदाय के बड़े नेता व प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष भागीरथ कर्ण को टिकट देने की मांग की जा रही थी परंतु कांग्रेस ने एक बार फिर गैर चाय समुदाय के नेता व वर्तमान विधायक अरुण फूकन को टिकट दिया। उनका मुकाबला अगप अध्यक्ष अतुल बोरा से है। ऐसे में कांग्रेस पर यह सीट गंवाने का खतरा बढ़ गया है जबकि कर्ण के खड़े होने से अगप अध्यक्ष को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ता। पार्टी सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि पार्टी की जीत की स्थिति में खुद को मंत्री बनने के लिए कुछ बड़े नेता अपने-अपने जिले में पार्टी के अन्य उम्मीदवारों को अप्रत्यक्ष रूप से हराने में लगे हैं ताकि यदि कांग्रेस को सरकार बनाने का फिर मौके मिले तो उनके जिले से कोई अन्य मंत्री पद के दावेदार के रूप में सामने नहीं आ सकें।

अप्रैल-मई में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें केंद्र में सत्तासीन भाजपा को सर्वाधिक उम्मीद असम से है। बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की 14 में से सात सीटों पर कब्जा किया था। यदि लोकसभा चुनाव में अगप के साथ भाजपा का गठबंधन होता तो बरपेटा में एआईयूडीएफ सुप्रीमो मौलाना बदरूद्दीन अजमल के छोटे भाई मौलाना सिराजुद्दीन अजमल और कलियाबर से मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई चुनाव नहीं जीत पाते। इन सीटों पर अगप उम्मीदवार के बड़ी संख्या में वोट काट लेने से भाजपा के उम्मीदवार हार गए। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विरोधी मत न बंट सके इसे ध्यान में रखकर भाजपा ने अगप और बीपीएफ के साथ चुनावी गठबंधन किया। मगर गठबंधन होने के बाद राज्य की करीब 30 सीटों पर भाजपा-अगप-बीपीएफ गठबंधन को अपने ही दल के बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ रहा है।

गोगोई मंत्रिमंडल के पूर्व वरिष्ठ मंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा और उनके समर्थक नौ कांग्रेसी विधायकों के भाजपा में शामिल होने को पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता और नेता पचा नहीं पा रहे हैं। खासतौर पर भाजपा महासचिव राममाधव की ओर से डॉ. शर्मा को विशेष महत्व देने और कांग्रेस से पार्टी में आए सात विधायकों को टिकट देने से काफी बवाल मचा हुआ है। भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि हिमंत ने भाजपा को हाईजैक कर लिया है। जिन लोगों ने अपने खून-पसीने से पार्टी को सींचा आज वे हाशिए पर हैं। सूबे में मौजूदा समय में भाजपा का नेतृत्व कर रहे लोगों का भाजपा की नीति, नियमों और आदर्श से कुछ भी लेना देना नहीं है। सोनोवाल अगप से आए हैं तो हिमंत कांग्रेस से। आज वे अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर पार्टी को नेतृत्व दे रहे हैं। पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं का कोई महत्व नहीं रह गया है।

भाजपा की वर्तमान स्थिति पर मुख्यमंत्री तरुण गोगोई चुटकी लेते हुए कहते हैं, वर्तमान में प्रदेश भाजपा भाड़े के नेताओं से चल रही है। अगप और कांग्रेस से गए नेता पार्टी चला रहे हैं। वे ही मुख्यमंत्री या मंत्री पदों के दावेदार बताए जा रहे है। यहां तक कि संवाददाता सम्मेलनों की अग्रिम पंक्ति में भी भाजपा के पुराने नेताओं को जगह नहीं मिलती। जानकार बताते हैं कि मुख्यमंत्री के इस बयान का आम भाजपाइयों पर असर पड़ रहा है। साथ ही कई स्थानों पर भाजपा के कार्यकर्ता  अपनी ही पार्टी के उम्मीदवारों को हराने की तैयारी में हैं। अगप से गठबंधन की घोषणा और टिकट बंटवारे के बाद जिस तरह का विरोध भाजपा में दिखा, अन्य पार्टियों में इससे कम है।

वैसे घमासान एआईयूडीएफ में भी मचा है। पार्टी ने इस बार पांच विधायकों को टिकट नहीं दिया। दो पहले ही कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। जिन-जिन विधायकों को टिकट नहीं मिला, उनके समर्थकों ने जगह-जगह तांडव मचाया और पार्टी के दफ्तरों में तोड़-फोड़ की। ये पांच विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं मगर कांग्रेस सभी को टिकट देने के पक्ष में नहीं है। इन पांचों को टिकट नहीं देने के बारे में एआईयूडीएफ सुप्रीमो अजमल का कहना है कि उनके विधानसभा क्षेत्रों में इनके खिलाफ हवा बह रही है। उन पर क्षेत्रवासियों की उपेक्षा का आरोप है। ऐसे में उन्हें टिकट देने से उनकी हार निश्चित थी। इसलिए पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। यानी राज्य की सभी प्रमुख पार्टियां बगावत और भितरघात की शिकार हैं। ऐसे में सत्ता तक वही गठबंधन या पार्टी पहुंचेगी जो व्यक्तिगत स्तर पर नहीं बल्कि पार्टी स्तर पर मतदाताओं को वोट देने को तैयार कर सके।