ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

आज जब कंप्यूटर हर काम के लिए जरूरी हो गया है तो सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियां, इंजीनियर, भाषाविद और इस क्षेत्र से जुड़े तमाम लोग इसके इस्तेमाल को और आसान बनाने के लिए हर भाषाओं तक इसकी पहुंच बनाने में जुटे हैं। इसी के तहत अब उत्तराखंड की भाषा गढ़वाली और बिहार की अंगिका भाषा में भी कंप्यूटर काम कर सके इसकी शुरुआत हो चुकी है।

पिछले हफ्ते दिल्ली में आयोजित लिब्रेअॉफिस के पहले भारतीय चैप्टर की बैठक में गढ़वाली भाषा में कंप्यूटर बनाने की आधारशिला रखी गई। इस दौरान कुछ बुनियादी सूचनाओं के साथ एक लोकेल फाइल का निर्माण किया। लोकेल फाइल ही वह सूत्र होता है जिसके आधार पर कोई कंप्यूटर किसी भाषा के वजूद को पहचान पाता है कि अमुक भाषा हिंदी है या फ्रेंच या फिर चीनी। इस दौरान अंगिका में लिब्रेऑफिस की भी शुरुआत हुई। मालूम हो कि लिब्रेऑफिस ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का जाना-माना ऑफिस सूइट है जो बेहद लोकप्रिय और निःशुल्क उपलब्ध है।

इस मीटअप का आयोजन लिब्रेऑफिस भारतीय समुदाय की ओर से किया गया।इस अवसर पर जाने-माने भाषाविद और भारतीय जनसंचार संस्थापन के प्रोफेसर हेमंत जोशी ने उम्मीद जताई कि इन भाषाओं की डिजिटल मौजूदगी इन्हें मजबूती प्रदान करेगी। ऐसे कार्यों के दूरगामी महत्व हैं। उन्होंने कुमाऊंनी भाषा के लिए लोकलाइजेशन की भी इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि भाषा की मजबूती के लिए जरूरी नहीं कि कोई भाषाविद ही योगदान दे। हर किसी का योगदान महत्वपूर्ण हो सकता है। इस क्षेत्र में लगातार काम किए जाने की जरूरत है।

कार्यक्रम की शुरुआत रेडहैट के सॉफ्टवेयर इंजीनियर चंदन कुमार की प्रस्तुति से हुई जिसमें उन्होंने लिब्रेऑफिस के एंड्रॉयड संस्करण और कोलेब्रा के सहयोग से तैयार लिब्रेऑफिस ऑनलाइन की चर्चा की। मेरिटनेशन के सॉफ्टवेयर इंजीनियर त्रिशूल गोयल ने तकनीकी क्षेत्र में लिब्रेऑफिस में योगदान किए जाने के बारे में बताया। सॉफ्टवेयर इंजीनियर और फ्यूल प्रोजेक्ट के लिए स्वैच्छिक रूप से काम कर रहे निशांत और नेहा ने भाषाई संसाधन के संसार से सबसे बड़े खुले संग्रह फ्यूल प्रोजेक्ट की नई वेबसाइट को दिखाया। चंदन ने बाद में तकनीकी अनुवाद टूल पूटल के उपयोग के बारे में लोगों को समझाया। कार्यक्रम के अंत में लिब्रेऑफिस कम्युनिटी के राजेश रंजन ने कहा कि समुदाय कोशिश करेगी कि साल भर ऐसे कार्यक्रम होते रहें ताकि लिब्रेऑफिस के बारे में लोगों को पता चले।

गौरतलब है कि अंगिका के कंप्यूटरीकरण की शुरुआत कम साधन-संपन्न भाषाओं के लिए काम करने वाली स्वैच्छिक संस्था भाषा घर के अंदर हो चुकी है। फायरफॉक्स ब्राउजर पर इसके लिए काम शुरू किया जा चुका है। अंगिका और गढ़वाली भाषा संकट में हैं। इसे बोलने वाले महज चंद लाख लोग हैं। यूनेस्को के भाषा एटलस के आधार पर गढ़वाली को जहाँ करीब मात्र पौने तीन लाख लोग बोलते हैं वहीं अंगिका को करीब साढ़े सात लाख। भारत की 197 भाषाएं मरणासन्न हैं जिनमें ये दो भाषाएं भी हैं।