कुलदीप राठौर के प्रदेशाध्यक्ष बनने से आनंद शर्मा के हाथ में गई कमान

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पहाड़ पर कांग्रेस में बदले निजाम के मायने

राठौर विशुद्ध रूप से आनंद शर्मा के आदमी हैं और ये भी कड़वी सच्चाई है कि केंद्र में ताकतवर रहते हुए भी आनंद शर्मा वीरभद्र सिंह के दौर में राज्य में प्रभावी नहीं रहे. अब पूरे प्रदेश में आनंद शर्मा खेमे को नई ऊर्जा मिलेगी और इसका असर अब हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी नए चेहरों के रूप में दिखेगा.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में कांग्रेस ने निजाम बदला है. सुखविंद्र सिंह सुक्खू को हटाकर कुलदीप राठौर को प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत किया गया है. इसका एक स्पष्ट अर्थ ये है कि राज्य की राजनीति में अरसे से हाशिये पर रहे आनंद शर्मा के हाथ में अब कमान है. वह भले ही वर्तमान में राज्यसभा में उपनेता और कांग्रेस हाईकमान में अहम हों, लेकिन अब जब चाहें कुलदीप राठौर के माध्यम से राज्य की राजनीति में हस्तक्षेप कर सकते हैं. राठौर विशुद्ध रूप से आनंद शर्मा के आदमी हैं और ये भी कड़वी सच्चाई है कि केंद्र में ताकतवर रहते हुए भी आनंद शर्मा वीरभद्र सिंह के दौर में राज्य में प्रभावी नहीं रहे. अब पूरे प्रदेश में आनंद शर्मा खेमे को नई ऊर्जा मिलेगी और इसका असर अब हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी नए चेहरों के रूप में दिखेगा.

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चार लोकसभा सीटों वाले इस छोटे प्रदेश में राहुल गांधी ने इस बदलाव से कई निशाने एक साथ साधे हैं. एक तो सुखविंद्र सुक्खू का सार्वजनिक विरोध कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को खुश किया गया. दूसरा वीरभद्र विरोधी धड़े को ये संतुष्टि दी कि कम से कम वीरभद्र खेमे से अध्यक्ष नहीं बनाया. तीसरा भौगोलिक संतुलन कायम करते हुए भी कांग्रेस ने सेब बेल्ट को एक संदेश दिया है. राज्य में कांग्रेस की राजनीति सेब बेल्ट आधारित रही है. वीरभद्र सिंह, विद्या स्टोक्स, ठाकुर रामलाल और जेबीएल खाची जैसे बड़े नाम इस क्षेत्र से रहे हंै. सुक्खू के रहते प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्रिहोत्री हमीरपुर संसदीय सीट से ही थे. और ये सीट भी करीब तीन दशक से कांग्रेस की झोली से बाहर है.

2017 में विधानसभा हारने के बाद जब वीरभद्र सिंह को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया तो अंदेशा था कि वीरभद्र के साथ प्रदेश अध्यक्ष पद से सुखविंद्र सुक्खू भी हटेंगे, लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हुआ. अब एक साल बाद पार्टी ने ये फैसला लिया है. ये बात अलग है कि एआईसीसी के महासचिव अशोक गहलोत की ओर से जारी अधिसूचना में राहुल गांधी ने सुखविंद्र सुक्खू के योगदान की तारीफ की है.

अब अध्यक्ष शिमला के कुमारसैन से और नेता प्रतिपक्ष ऊना यानी हमीरपुर सीट से हो गए. राज्य में कांग्रेस चुनावों से पहले प्रदेश अध्यक्ष को लेकर कई बार बदलाव कर चुकी है. 2007 के विधानसभा चुनावों में कौल सिंह को हटाकर अचानक वीरभद्र सिंह को अध्यक्ष बना दिया गया था. इसी तरह अब लोकसभा चुनाव से पहले सुक्खू को हटाकर कुलदीप राठौर को जिम्मेदारी दी गई है. हालांकि राठौर को खुद चुनावी राजनीति का अनुभव नहीं है. ये अलग बात है कि वह बतौर पार्टी महासचिव करीब 15 साल का अनुभव रखते हैं और इससे पहले एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. लेकिन उनके लिए ये बात संतोष करने वाली है कि प्रदेश अध्यक्ष के लिए उनके नाम का समर्थन वीरभद्र खेमे ने भी किया है. पार्टी हाईकमान को ये कदम शायद इसलिए भी लेना पड़ा, क्योंकि एक ओर वीरभद्र सिंह सुक्खू को हटाने की जिद पर अड़ गए थे, दूसरी ओर सुक्खू का कार्यकाल भी छह साल का हो गया था. इस अवधि में विधानसभा चुनाव, उपचुनाव, शिमला नगर निगम चुनाव से लेकर हर चुनाव कांगे्रस ने हारा. 2017 में विधानसभा हारने के बाद जब वीरभद्र सिंह को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया तो अंदेशा था कि वीरभद्र के साथ प्रदेश अध्यक्ष पद से सुखविंद्र सुक्खू भी हटेंगे, लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हुआ. अब एक साल बाद पार्टी ने ये फैसला लिया है. ये बात अलग है कि एआईसीसी के महासचिव अशोक गहलोत की ओर से जारी अधिसूचना में राहुल गांधी ने सुखविंद्र सुक्खू के योगदान की तारीफ की है.

सुखविंद्र सुक्खू ने पार्टी अध्यक्ष के पद पर 6 साल काम किया. वह विधानसभा चुनाव हारने के बाद जनवरी 2013 में अध्यक्ष बन गए थे, लेकिन वीरभद्र सिंह चुनाव से अध्यक्ष का चुनाव करवाने पर अड़े रहे. विधानसभा चुनाव तक सुक्खू भी डटे रहे और संगठन में अपनी एक टीम तैयार की. पार्टी तो चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गई, पर सुक्खू नादौन से जीतकर विधायक बन गए. इसके बाद राज्य कांगे्रस की नई प्रभारी रजनी पाटिल के प्रदेश के दौरों में हुए सम्मेलनों में सुक्खू पर वीरभद्र खेमे के हमले होते रहे और उन्हें अब जाना पड़ा.

नए अध्यक्ष कुलदीप राठौर के सामने चुनौतियां

कुलदीप राठौर छात्रकाल से कांग्रेस के साथ जुड़े रहे हैं. 29 अगस्त 1960 को गांव छेबरी तहसील कुमारसैन में पैदा हुए कुलदीप राठौर ने 1978 में एनएसयूआई ज्वाइन की और 1981 से लेकर 1987 तक छह साल एनएसयूआई के अध्यक्ष रहे. इसके बाद वह लगभग 15 साल तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव और बाद में मुख्य प्रवक्ता भी रहे. वह हिमाचल कांग्रेस मीडिया विंग के चेयरमैन भी रहे हैं. लेकिन उन्हें चुनाव लडऩे का अनुभव नहीं है. अब तक एक भी चुनाव किसी भी स्तर पर कुलदीप राठौर ने लड़ा नहीं है. अब लोकसभा चुनाव के लिए उनके पास करीब 45 दिन का समय है. कांग्रेस यहां भाजपा के मुकाबले प्रचार में पहले ही लेट है. लेकिन अब उम्मीद है कि वीरभद्र सिंह और आनंद शर्मा दोनों का साथ उन्हें चुनावी दौर में मिलेगा. कांग्रेस हाईकमान ने प्रचार में वीरभद्र सिंह को अहमियत देने के भी संकेत दिये हैं.

लोकसभा चुनाव के लिए बदलेगी दावेदारों की तस्वीर

कुलदीप राठौर की नियुक्ति से लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के दावेदारों की तस्वीर भी बदलेगी. सुक्खू ने अध्यक्ष रहते कुछ चुनिंदा लोगों को जनसंपर्क में उतारा हुआ था. लेकिन अब माहौल बदलेगा. कांग्रेस को शिमला और कांगड़ा सीटों पर जीत की उम्मीद अभी से दिख रही है. इसकी वजह भी है. शिमला संसदीय सीट से वर्तमान भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल में उतनी अहमियत नहीं है, जितनी पहले धूमल सरकार में हुआ करती थी. कांगड़ा सीट पर वर्तमान सांसद शांता कुमार के दौरे बहुत कम रहे हैं. वह जयराम सरकार बनने के बाद अब आखिरी साल में सक्रिय हुए हैं. मंडी सीट पर मुकाबला पार्टी प्रत्याशी के बजाये सीधे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से होगा और हमीरपुर में धूमल और उनके सांसद पुत्र अनुराग ठाकुर अभी से सक्रिय हैं.

 

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