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-राजीव थपलियाल

उत्तराखंड में बढ़ती ठंड के उलट बीजेपी के कार्यकर्ताओं का खून गर्म हुआ जा रहा है। पार्टी संगठन पर कब्जे को लेकर ‘महाभारत’ छिड़ा है। अपने-अपने आकाआंे के झंडे-डंडे संभाले कार्यकर्तां हर हाल मंे अपने ही बन्धु-बान्धवों को पराजित कर प्रदेश के मुखिया का सिंहासन हासिल करने को उतारू हंै। यहां भी अफसोस यही है कि पार्टी प्रदेश प्रभारी धृतराष्ट्र बनकर पार्टी की लाज बचाते नजर नहीं आए, और यदि उन्होंने कुुछ किया तो राज्य सरकार पर तीर चलाने वाले एकमात्र ‘अर्जुन’ की बलि ले ली।
 दरअसल, उत्तराखंड में मौजूदा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत का कार्यकाल समाप्त होने को है और 20 नवंबर से पहले पार्टी के नए अध्यक्ष का चयन होना है। इसके लिए पार्टी के सांगठनिक चुनाव की प्रक्रिया जारी हो चुकी है। इसी चुनाव के बहाने पार्टी की अंदुरूनी गुटबाजी का खुला प्रदर्शन पार्टी प्रदेश मुख्यालय पर देखने को मिल रहा है। पार्टी संगठन में मंडल अध्यक्ष पद पर सभी बड़े दिग्गज अपने-अपने चहेतों की ताजपोशी चाहते हैं, जिसके लिए ‘ उत्तरदायित्व, अनुशासन, निष्ठा’ से किसी को कोई सरोकार हो, ऐसा नजर नहीं आता। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में चार-पांच नाम गिने जा रहे हैं, लेकिन असली युद्ध पूर्व मुख्यमंत्री एवं मौजूदा सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और पूर्व मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के बीच ठना है।
निशंक-त्रिवेन्द्र की रार, कार्यकर्ताओं के जरिए वार
पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक उत्तराखंड में भाजपाई सियासत के मुख्य किरदार रहे हैं। इनमें से पूर्व कैबीनेट मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत हमेशा से ही कोश्यारी गुट के अगुवा रहे, जिस कारण त्रिवेन्द्र और निशंक के बीच स्वाभाविक सियासी बैर रहा है। इस बैर का प्रदर्शन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में लोगों को साफ देखने को मिलता भी रहा है। इसी बैर के चलते दोनों नेता एक-दूसरे की राह में रोड़े अटकाने से भी परहेज नहीं करते हैं। आरोप यहां तक लगते रहे हैं कि इनकी सियासी रंजिश के कारण ही वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज होते-होते रह गई थी।
खैर! ताजा घटनाक्रम में मंडल चुनाव के नतीजा अपने पक्ष में कराने के लिये पार्टी के दोनों वरिष्ठ नेताओं के समर्थकों ने पार्टी मुख्यालय पर खूब हंगामा मचाया। भारी संख्या में पहुंचे इन समर्थकों ने करीब चार घंटे से एक-दूसरे के सामने खडे़ होकर चीख-चीख कर नारे लगाए। आमतौर पर वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों से भरा-पूरा रहने वाला पार्टी मुख्यालय में सुबह से ही सन्नाटा पसरा था। शायद  बडे़ नेता अंदाजा लगा चुके थे कि पार्टी कार्यालय पर संगठन चुनाव का तमाशा होने वाला है। सैकड़ों की तादाद में उमडे कार्यकर्ताओं के नारों के बीच छिड़ी इस महाभारत को त्रिवेंद्र और निशंक समर्थक नेता अपने-अपने हिसाब से गाइड कर रहे थे। हालांकि इन गुटों की हरकत से दुखी आम भाजपाई आपसी बातचीत में सवाल उठा भी रहे थे कि इन कार्यकर्ताओं को लड़ाने के लिए छोड़ गए बड़े नेता आखिर खुद कहां गायब हैं?
दरअसल यह हंगामा डोईवाला ग्रामीण मंडल का चुनाव नतीजे को लेकर मचा। पार्टी मुख्यालय से पहले राजेन्द्र सिंह तडि़याल के मंडल अध्यक्ष चुनाव जाने की घोषणा हो गई थी। तडि़याल को निशंक का समर्थक माना जाता है। पार्टी का दूसरा गुट तडियाल को चुने जाने के खिलाफ उतर आया। मंडल अध्यक्ष पद के चार दावेदारों में से तीन एक ओर हो गए और उन्होंने राजेन्द्र मनवाल को अध्यक्ष पद का दावेदार बना दिया। मनवाल पूर्व मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के समर्थकों में से हैं। लिहाजा मंडल अध्यक्ष पद की लड़ाई अब दावेदारों के बजाय दो ताकतवर ध्रुवोें के बीच सिमट गई। त्रिवेंद्र समर्थकों का आरोप था कि निशंक खेमे ने रसूख के जरिये तडि़याल के नाम की घोषणा करा दी, जबकि 70 फीसदी से ज्यादा वोटर मनवाल के समर्थन में थे। उनका यह भी कहना है कि प्रदेश चुनाव प्रभारी केदार जोशी तक स्वीकार चुके हैं कि उन पर तडि़याल के नाम की घोषणा कराने का दबाव था। हालांकि जवाब में निशंक समर्थक भी कह रहे हैं कि यदि दबाव में तडि़याल निर्वाचित हुये तो इस पर रोक लगाने के पीछे भी तो दबाव की ही राजनीति है। बहरहाल इन आरोपों में सच्चाई जो भी हो, लेकिन निशंक-त्रिवेन्द्र की जंग का यह मामला आने वाले दिनों में पार्टी के लिए नुकसानदेह होगा, इसमें कोई संदेह की गुजांइश नहीं रह जाती है।
प्रदेश प्रवक्ता भी हुए शहीद-
त्रिवेन्द्र और निशंक समर्थकों के इस महाभारत से कुछ दिन पूर्व धर्मपुर विधानसभा सीट के मंडलों को लेकर भी ऐसा ही हंगामा हुआ। धर्मपुर ग्रामीण मंडल के कार्यकर्ताओं ने एकमत होकर गणेश उनियाल को अध्यक्ष बनाने की बात कही। प्रदेश प्रवक्ता प्रकाश सुमन ध्यानी के समर्थक गणेश पर रायशुमारी की जानकारी मिलने पर ध्यानी के सियासी प्रतिद्वंद्वी व्यापारी नेता उमेश अग्रवाल ने नीटू काम्बोज को विरोध में उतार दिया, जबकि इससे पूर्व गणेश उनियाल के अध्यक्ष और नीटू काम्बोज के महामंत्री पद की सहमति बनी थी। दो दावेदार होने पर चुनाव कराया गया, जिसमें 80 फीसदी वोट उनियाल के पक्ष में आए, इसके बावजूद काम्बोज को विजेता घोषित कर दिया गया। इसके विरोध में शाम छह बजे गणेश के समर्थन में कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यालय को घेर लिया और न्याय की मांग करते हुए संगठन महामंत्री से जबाव मांगा। कार्यकर्ताओं ने संगठन महामंत्री संजय कुमार को कटघरे में खड़ा करते हुए चुनाव अधिकारी के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया। दो घंटे तक कार्यकर्ताओं के बुलाने के बावजूद जब संजय कुमार बाहर नहीं निकले तो ध्यानी ने अंदर कमरे मेें जाकर बैठक की और उन्हें बाहर लेकर आए। विवाद होने पर मुख्य चुनाव अधिकारी केदार जोशी ने काम्बोज के चुनाव को निरस्त कर दिया। इसके बाद के घटनाक्रम में उमेश अग्रवाल ने ध्यानी के खिलाफ पार्टी कार्यालय पर धरना देते हुए समर्थकों के साथ उनका पुतला फूका। बाद में अचानक ध्यानी को एकतरफा दंडित करते हुए प्रदेश प्रवक्ता पद से हटा दिया गया।
संगठन महामंत्री की भूमिका पर सवाल-
भाजपा संगठन महामंत्री संजय कुमार की भूमिका पर भाजपाई लगातार सवाल उठाते आए हैं। शुरू से ही संगठन महामंत्री को लेकर पार्टी मुख्यालय में चटखारेदार किस्से सुनाई देते रहे थे। ‘लिंग विशेष’ से अनुराग रखने वाले संजय कुमार के कार्यकाल में पार्टी की तरक्की पर वित्तीय मार पड़ी है। धर्मपुर प्रकरण में संजय कुमार का चुनाव कार्य में हस्तक्षेप चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है, ऐसा पार्टी के तमाम नेता मान रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता सवाल उठाते हैं कि संगठन मंत्री का बर्ताव देखकर लगता है कि उन्हें पार्टी संविधान की जानकारी है भी कि नहीं।
जाजू पर भी सवाल-
सांगठनिक चुनाव में विवाद और जिला संगठन के चुनाव के लिये भावी रणनीति पर मार्गदर्शन देने पार्टी प्रभारी श्याम जाजू  को पहले 23 अक्टूबर को देहरादून आना था। लेकिन ऐन वक्त पर उनका कार्यक्रम बदल दिया गया। देहरादून में विवाद को देखते हुये पार्टी संगठन की ओर से बैठक हरिद्वार में कर दी गई। इस बैठक के बाद मीडिया को विज्ञप्ति जारी कर न्याय की मांग करने वाले प्रकाश सुमन ध्यानी को हटाने की जानकारी दे गई, जबकि धरना प्रदर्शन करने वाले उमेश अग्रवाल को पाकसाफ मान लिया गया। ध्यानी एकमात्र ऐसे प्रवक्ता थे, जो कांग्रेस सरकार के खिलाफ बिगुल बजाए रखते थे। मीडिया के पसंदीदा ध्यानी के बाद बीजेपी में कोई प्रखर वक्ता नहीं बचा है, जिसकी तारीफ विपक्षी पार्टी के भी करते हों। बताया जा रहा है कि ध्यानी भी प्रदेश अध्यक्ष की दौड में थे, साथ ही धर्मपुर से विधायकी के दावेदार। इसलिए उनको ‘निपटा दिया गया । जबकि दूसरी ओर डोईवाला ग्रामीण मंडल के हंगामे को शह देने वाले नेताओं के खिलाफ भी कोइ कार्यवाहीं नहीं गई, सिवाय मामला ग्रीवांस कमेटी के सुपुर्द करने के।
प्रदेश भर में है कब्जे की जंग-
बीजेपी मुख्यालय में बैठे कार्यकर्ताओं के मुताबिक हमाम में सब नंगे हैं। पार्टी के सभी बड़े नेता पार्टी पर बर्चस्व बनाए रखने के लिए गुटबाजी को शह दे रहे हैं। बीजेपी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता की टिप्पणी थी कि पार्टी में हर जगह पदाधिकारियों के रूप में पार्टी संविधान के उलट नियुक्तियां की जा रही हैं। कहीं तीसरी बार मंडल अध्यक्ष बनाया जा रहा है, जबकि संविधान में दो बार का ही प्रावधान है, कहीं पर बगैर प्राथमिक सदस्यता के ही पदाधिकारी बनाने की तैयारी चल रही है। जिसके हक में जितने पदाधिकारी होंगे प्रदेश अध्यक्ष की दावेदारी उतनी मजबूत होगी। पार्टी मुख्यालय में निशंक-त्रिवेन्द्र को कोसने के साथ ही पार्टी प्रभारी से नाराजगी जताते हुए प्रदेश अध्यक्ष तीरथ रावत के लिजलिजेपन और संगठन मंत्री की एकपक्षीय आदत को लेकर चिंता जताते कार्यकर्ता के चेहरे पर हरीश रावत के बढ़ते कदमों का खौफ साफ दिखाई देने लगा है।