मोहन सिंह

नोटबंदी के अंतिम दौर में इस फैसले के राजनीतिक नफा-नुकसान को लेकर चर्चा शुरू हो चुकी है। खास बात यह है कि आम आदमी विपक्ष के तमाम आरोपों को खारिज कर रहा है। उन आरोपों को भी जो इस फैसले में बड़ा घोटाला होने का अंदेशा जता रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक ऐसे राजनेता के रूप में स्थापित हो रही है जो हर चीज पर बारीक नजर रखता है। उसकी नजर से कोई नहीं बच सकता। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस के सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र के गहरपुर गांव के महेंद्र विश्वकर्मा कहते हैं, ‘वाह, मोदी ने सबकी बुद्धि को फेल कर दिया। उनके चश्मे में दूरबीन लगा है। सब कुछ देख लेते हैं।’

देशभर में बड़े पैमाने पर जो कालाधन पकड़ा जा रहा है उससे आम लोगों में खुशी है। नोटबंदी के दौरान हो रही परेशानी के लिए लोग सरकार को कम और बैंक कर्मचारियों को ज्यादा जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका मानना है कि कुछ बैंक कर्मचारी देशहित में लिए गए मोदी के फैसले को फेल करने में लगे हैं। आम जन की सुविधाओं की फिक्र किए बिना वे बड़े लोगों के नोट बदल रहे हैं और उनका कालाधन सफेद कर रहे हैं। ऐक्सिस जैसे निजी बैंकों की भूमिका इस मामले में सबसे ज्यादा संदिग्ध है। उनकी नजर में अकेले मोदी क्या-क्या करेंगे। तमाम परेशानियों के बावजूद आम लोग इस उम्मीद में धैर्य का परिचय दे रहे हैं कि उनके जीवन में कुछ बड़ा बदलाव होने वाला है।

30 दिसंबर के बाद उनके जीवन में यह बदलाव किस तरह से आएगा, यह देखना अभी बाकी है। जेएम फाइनेंशियल के लिए बनारस में सर्वे करने आए अरशद परवेज बताते हैं, ‘आम लोगों का यही कहना है कि उनके जीवन में पहले कौन सा ताजमहल था जो नोटबंदी के बाद हाथ से निकल गया। वे इसलिए खुश हैं कि बड़े लोगों और कालाधन वालों की तिजोरी खाली हो रही है।’ ग्लोबल रेटिंग एजेंसी क्रेडिट सुईस की ग्लोबल वेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 25 करोड़ सबसे गरीब लोग भारत में रहते हैं। यह एजेंसी हर साल यह रिपोर्ट जारी करती है। वर्ष 2016 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की एक फीसदी आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 58.4 फीसदी हिस्सा है। इस लिहाज से यह दुनिया का दूसरा ऐसा मुल्क है जहां संपत्ति के मामले में इतनी गैर बराबरी है। पहले नंबर पर रूस है जहां के एक फीसदी धनकुबेरों के पास वहां की कुल संपत्ति का 74.5 फीसदी हिस्सा है।

एक अरसे बाद किसी राजनेता के फैसले का लोग धैर्य के साथ इंतजार कर रहे हैं। हिंदी के मशहूर साहित्यकार काशीनाथ सिंह के प्रसिद्ध उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ के एक मुख्य पात्र एडवोकेट वीरेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं, ‘बड़ा अजीब देश है यह। पूरा देश पैसे के लिए लाइन में खड़ा है फिर भी मोदी-मोदी कर रहा है।’ बता दें कि वीरेंद्र श्रीवास्तव राजनीतिक टिप्पणियों के लिए बनारस की प्रसिद्ध पप्पू की चाय दुकान के प्रमुख अखाड़ची तो हैं ही, पुराने लोहियावादी और अब बनारस के पूर्व सांसद राजेश मिश्र के समर्थक हैं। यह पूछने पर कि क्या राजेश मिश्र चुनाव लड़ेंगे, उन्होंने कहा, ‘मैंने तो उन्हें चुनाव न लड़ने की सलाह दी है मगर आलाकमान का आदेश होगा तो मानना ही पड़ेगा।’ राजेश मिश्र उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं और बीएचयू छात्रसंघ के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। वीरेंद्र श्रीवास्तव की इस टिप्पणी से राजनीतिक रुझान का कुछ अंदाजा तो लग ही जाता है।

विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सपा और भाजपा में योजनाओं के शिलान्यास की होड़ मच गई है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लखनऊ से उसी दिन 201 करोड़ रुपये की लागत से तैयार वरुणा कॉरीडोर के तटीय विकास कार्यों का लोकार्पण कर रहे थे जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस में 21 अरब रुपये की लागत वाली योजनाओं की आधारशिला रख रहे थे। बनारस और इसके आस-पास रेल और सड़क का काम तेजी से चल रहा है। शायद इसलिए कि भाजपा बनारस को विकास के मॉडल के रूप में विधानसभा चुनाव में पेश करना चाह रही है। बिजली के जर्जर तार और खंभों को हटाकर अंडरग्राउंड तार बिछाए जा रहे हैं। नए लैम्प पोस्ट लग रहे हैं। बनारस की कबीर नगर कॉलोनी को मॉडल कॉलोनी के रूप में विकसित किया जा रहा है। मंडुवाडीह और कैंट रेलवे स्टेशन पर हर महीने कुछ न कुछ नया होता दिख रहा है। चौखंडी स्टेशन के पास रेलवे का नया यार्ड बनाने की भी चर्चा है। लोहता से जंघई के बीच रेल ट्रैक के दोहरीकरण और विद्युतीकरण का काम लगभग अंतिम दौर में है।

रेलवे के अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 2009 में घोषित योजना, कमीशन के चक्कर में ठप पड़ी थी। इसकी सीबीआई जांच भी चल रही है। इस योजना में गति मोदी सरकार के आने के बाद ही आई है। इन विकास कार्यों को देखकर गहरपुर गांव के किसान पप्पू पटेल कहते हैं, ‘हाल तक मैं सपाई था। अब सपा को वोट नहीं दूंगा। इस बार मोदी को सपोर्ट करेंगे। रेल और सड़क का मोदी सरकार का काम दिख रहा है। अखिलेश सरकार में लूट मची है।’ पप्पू नकदी फसल उगाते हैं। अभी उनके खेत में मटर तैयार है। नोटबंदी से पहले तक मटर 40 रुपये किलो बिक रही थी। अब 25-30 रुपये किलो तक आ गई है। इस बार मटर की अच्छी पैदावार हुई है। धीरे-धीरे इसका भाव और कम होगा। नोटबंदी को लेकर हो रही परेशानियों का जिक्र करते हुए गांव के अन्य किसानों का यही कहना है कि बैंक कर्मचारी मनमानी कर रहे हैं। पैसा देने में आनाकानी करते हैं। उनके मुताबिक, छोटे दुकानदारों पर नोटबंदी का असर तो पड़ा है मगर उस रूप में नहीं जिसका जिक्र शहरी लोग कर रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में लेनदेन की परंपरागत पद्धति चलती रही है जो किसी संकट का अपने हिसाब से सामना करने में सक्षम है।

सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र के बड़ौरा तिराहे पर मिठाई-चाय-पकौड़ी की दुकान चलाने वाले गणेश साहू बताते हैं, ‘बैंकों से पैसा नहीं मिल रहा लेकिन हमारे जैसे दुकानदारों पर इसका क्या असर होगा। हमें उधार में मैदा, चीनी, घी और खोया मिल जाता है। सामान बेचकर हम उधारी चुकाते हैं।’ उनकी इस टिप्पणी का यही मतलब निकलता है कि नोटबंदी से भले ही दिक्कत हुई हो मगर लोगों के पास इससे निपटने के स्थानीय उपाय मौजूद हैं। नोटबंदी ने लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर भी डाला है। लहरतारा में मोटर पार्ट्स की दुकान चलाने वाले आलोक बताते हैं, ‘इसका असर यह हुआ है कि ज्यादातर लोग महसूस कर रहे हैं कि कम नकदी में भी जिंदगी गुजारी जा सकती है। लोगों में इस तरह की मानसिकता विकसित होने से उपभोक्ता सामानों की बिक्री पर भविष्य में असर पड़ सकता है।’

उनकी इस बात का समर्थन मैग्मा फाइनेंस के अधिकारी विनय पांडेय भी करते हैं। पांडेय कहते हैं, दीपावली के समय ट्रैक्टर और जेसीबी की अच्छी बिक्री हुई थी। लोन की रिकवरी भी ठीक रही पर अभी बाजार मंदा है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) में ट्रैक्टर की बिक्री और लोन की रिकवरी दोनों फिर से अच्छी हो जाएगी।’ बता दें कि पूर्वांचल में तहसील स्तर पर मैग्मा फाइनेंस कार्यरत है। इस कंपनी की तरह आम आदमी को भी यही उम्मीद है कि नए साल में नरेंद्र मोदी किसानों और गरीबों के लिए कुछ खास तोहफे का इंतजार जरूर करेंगे।