अजय विद्युत

यूपी में ठंडे मौसम में चुनावी गर्मी असर डाल रही है। मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की एक दूसरे की तारीफ अब गठबंधन में बदलने जा रही है। दोनों कई बार एक दूसरे को ‘गुड ब्वॉय’ बताते रहे हैं। अखिलेश की सांसद पत्नी डिंपल और प्रियंका गांधी के बीच चर्चा का निर्णायक दौर चल रहा है। कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित ने अपना नाम वापस लेने की औपचारिक घोषणा कर दी है जिससे साफ है कि कांग्रेस-सपा गठबंधन की घोषणा की औपचारिता ही शेष है। लेकिन महीनों से कांग्रेसी चिंघाड़ चिंघाड़ कर ‘सत्ताइस साल यूपी बेहाल’ का जो भजन करते रहे हैं… वह आज उन्हें मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है। यह नारा न केवल यूपी की दीवारों पर कांग्रेस के पोस्टरों पर चस्पा है बल्कि राहुल गांधी अपनी सभी रैलियों में इसे लगाते रहे हैं।

Qamar Waheed Naqviवरिष्ठ पत्रकार कमर वहीद नकवी कहते हैं, ‘हमारे देश की राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है कि लोग जिसके विरुद्ध बहुत कसकर प्रचार कर रहे हों और जिसे अपना प्रतिद्वंद्वी मान रहे हों उसी के साथ हाथ मिला लें। ‘सत्ताइस साल यूपी बेहाल’ का नारा राहुल गांधी ने दिया था और कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में अब तक का पूरा प्रचार उसी पर आधारित था। अब यह जरूर है कि अगर वह समाजवादी पार्टी से हाथ मिला लेंगे तो यह नारा उनके लिए बड़ा असुविधाजनक होगा। लेकिन ऐसी असुविधाजनक स्थितियां हमारे यहां आती रही हैं और मतदाता उनको हजम भी करता रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘बहुत ही ताजा उदाहरण बिहार का है जहां नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव का गठबंधन हुआ और उनकी वहां सरकार बनी। जो नीतीश कुमार लालू यादव के ‘जंगलराज’ के खिलाफ खड़े हुए थे और उसी मुद्दे पर चुनाव लड़े, उसी मुद्दे पर सरकार चलाते रहे। अगली बार उसी लालू यादव के उन्होंने गठबंधन किया और चुनाव जीता।’

मौजूदा राजनीतिक संरचना पर नकवी थोड़ी नाखुशी भी जताते हैं, ‘हमारे यहां जो लोकतंत्र है उसमें नेताओं का भी चरित्र अवसरवादी है और जनता का चरित्र भी एक प्रकार से ऐसा ही है। बहुत सारी चीजों पर लोग ध्यान नहीं देते और तमाम दूसरे समीकरणों के आधार पर वोट करते हैं। अगर जनता वाकई मुद्दों पर ध्यान देकर वोट करती होती और इन चीजों पर ध्यान देती कि किस तरह से कौन राजनीतिक दल अपनी बोली बदल रहा है तो हमारे यहां राजनीतिक दुर्दशा ऐसी नहीं होती। देश में पार्टियों और नेताओं का जो चरित्र आज हम देख रहे हैं उसके पीछे यही बात है कि लोग मुद्दों पर नहीं सोचते हैं।’

उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में उन्होंने कहा, ‘इस तरह के गठबंधन उत्तर प्रदेश में पहले भी हुए। मायावती और मुलायम सिंह का गठबंधन था। मायावती की बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन हुए। एक चुनाव में तो मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह को भी साथ लेने की कोशिश की थी, हालांकि उसका उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा यह अलग बात है। लेकिन हमारे यहां की राजनीति असंभव संभावनाओं की राजनीति है।’

यानी राहुल गांधी मौजूदा उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज की प्रशंसा करेंगे अब? इस सवाल के जवाब में नकवी कहते हैं, ‘जाहिर सी बात है कि अगर वह गठबंधन में रहेंगे तो वह समाजवादी पार्टी सरकार के कामकाज की प्रशंसा करेंगे। और वैसे तो राहुल गांधी पिछले कुछ समय से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लगातार प्रशंसा करते आ रहे हैं। और अखिलेश यादव भी लगातार राहुल गांधी की प्रशंसा करते आ रहे हैं। तो जिस गठबंधन के सिरे चढ़ने की बात आज हो रही है इसकी भूमिका पिछले पांच छह महीने से बांधी जा रही थी। उसमें यह था कि अगर गठबंधन नहीं होता तो यूपी सत्ताइस साल से बेहाल रह गया होता। गठबंधन हो जाएगा तो यूपी में अखिलेश यादव विकास पुरुष कहलाए जाएंगे।’

ऐसे में पिछली सरकार के जंगलराज और गुंडागर्दी के मुद्दे- जिन्हें कांग्रेस और राहुल ने उठाया और जनता भी उनसे त्रस्त रही, यह गठबंधन उससे कैसे मुक्त हो पाएगा? कमर वहीद नकवी ने बताया, ‘हां जंगलराज और गुंडागर्दी को लेकर यह तर्क है कांग्रेस के पास भी और अखिलेश के पास भी कि जंगलराज और गुंडागर्दी जो लोग लाने जा रहे थे उन्हीं का विरोध किया और इतना बड़ा जोखिम लिया। हमने अपने घर में परिवार से रिश्ते खराब किए, पिता से टकराव किया तो हम जंगलराज के विरोधी हैं और इस जंगलराज का खात्मा करेंगे। तो एक तरह से उनके पास यह एक मजबूत तर्क है जंगलराज के खिलाफ, इसमें कोई दो राय नहीं है। वे कहेंगे कि हमने तमाम लोगों का विरोध किया। मुख्तार अंसारी के सपा में आने का विरोध किया। इसके पहले डीपी यादव का विरोध किया। गलत तत्वों का विरोध करने के मुद्दे पर ही पार्टी में इतना विवाद हुआ।’

क्या कांग्रेस के वोट समाजवादी पार्टी को ट्रांसफर होंगे… यह सवाल तमाम लोगों के दिमाग में कौंध रहा है। इस पर नकवी कहते हैं, ‘कांग्रेस के पास वोट ही कितना है। शायद आठ नौ परसेंट वोट हैं। कहीं अगर गठबंधन की दूसरी पार्टी का कोई ऐसा उम्मीदवार हो जो चुभता हो आंखों को या कह लें कि बहुत ही अस्वीकार्य हो तो वहां शायद कुछ दिक्कत हो सकती है। जहां ऐसी स्थिति नहीं होगी वहां वोट ट्रांसफर होंगे। क्योंकि दोनों पार्टियों के सोचने समझने के तरीके में उस प्रकार से कोई बहुत अंतर नहीं है।’