संध्या द्विवेदी

इस्लामिक स्टेट के खिलाफ औरतों की पहली सेना कुर्द सेना थी। इराक के मोसुल में इन जांबाज लड़कियों ने जब हाथ में अतिआधुनिक हथियार उठाए तो यह खबर दुनिया भर में छा गई। खूंखार आतंकियों को खुलेआम चुनौती देती इन लड़कियों के वीडियो भी वायरल हुए। हालांकि अजीब यह भी था कि इनकी वीरता से ज्यादा चर्चा इनकी खूबसूरती की हुई। हालांकि यह कितनी वीर थीं, इसका अंदाजा रेहाना कुर्द सैनिक की हत्या से हुआ।

रेहाना ने सौ से ज्यादा आईएसआई आतंकियों के सिर कलम किए थे। इन वीरांगनाओं के बाद अब उत्तरी अफगानिस्तान में भी औरतों ने हथियार थाम लिए हैं। फर्क बस इतना है कि कुर्द लड़कियां सेना में थीं और यह उत्तरी अफगानी औरतों का अपना सशस्त्र संगठन है। यह सारी वह औरतें हैं, जिनके परिवार के लोगों को आतंकी बेरहमी से मार चुके हैं। करीब 150 औरतों के इस संगठन की टक्कर तालिबानी आतंकियों और इस्लामिक स्टेट के आतंकियों से है।

औरतों आतंकवाद विरोधी सशस्त्र सेना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें बीस साल से लेकर पिचहत्तर साल तक की औरतें हैं। करीब पिचहत्तर साल की गुल बीवी तो कभी सोच नहीं सकतीं थी, कि वह इस उम्र में हथियार थामेंगी! गुल बीवी ने बताया ‘अब उनके परिवार में कोई नहीं बचा है। चार बेटे और पांच भतीजे मार दिए गए हैं। अगर एक आतंकी भी मार पाई तो सोचूंगी बच्चों की रुह को आराम पहुंचाया।’ सेना कमांडर ममलाकत ने कहतीं हैं- ‘इन आतंकियों ने मेरे तीन बेटे मार डाले। हमारा बचपन छीन लिया। अब अफगान औरतों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है।’ एक दूसरी अफगान औरत कहतीं है, मेरे दो भाई मार दिए गए। मेरे पिता की क्रूरता के साथ हत्या कर दी गई। अब घर में बैठने का वक्त चला गया है।