चार अगस्त को चंडीगढ़ में मौसम खुशनुमा था। लेकिन आम आदमी पार्टी के नेताओं की पेशानी पर बार बार पसीना आ रहा था। हॉल में एयरकंडीशनर तो चल रहा था मगर आप के नेता और उनके समर्थक गर्मी महसूस कर रहे थे। नेताओं का तनाव देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था कि आप में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इस दिन आप आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपने 19 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने वाली थी। पार्टी के प्रदेश संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर नजर नहीं आ रहे थे। पूछताछ की तो पता चला कि वे रात में ही चंडीगढ़ से चले गए थे। क्यों? जब यह पता करने की कोशिश की तो पाया कि उनके समर्थकों को लिस्ट में जगह नहीं दी गई। यहां तक कि खुद उनका टिकट भी पक्का नहीं हुआ है। ऐसे में वे भला कैसे यह बात बर्दाश्त कर सकते थे। सो निकल लिए।

इतना ही नहीं उनके समर्थक हरदीप सिंह किंगरा ने तो इस्तीफा देकर विधानसभा चुनाव के लिए सबसे पहले उम्मीदवार घोषित करने का आप का रहा सहा उत्साह भी समाप्त कर दिया। राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके क्रिकेटर राजनेता नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर अभी आप में अंदरखाने खासा विरोध है। उम्मीदवार घोषित करते ही अंदर की यह लड़ाई अब सड़क पर आती नजर आ रही है। ऐसे में पहले उम्मीदवार घोषित करने का जो फायदा आप लेने की कोशिश कर रही थी, वह फिलहाल मिलता नजर नहीं आ रहा है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि करीब दो माह पहले तक आप का ग्राफ पंजाब में सबसे ऊपर चल रहा था। मगर मौजूदा समय में आप का ग्राफ थम सा गया है। यह अरविंद केजरीवाल के लिए खासी परेशानी वाली बात हो सकती है। इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंस स्टडी चंडीगढ़ के प्रोफेसर हरनाम सिंह कोचर का कहना है, ‘आप पंजाब में दिल्ली खोज रही है। यह उसकी बड़ी गलती है। पंजाब का मतदाता अलग राय और मिजाज रखता है। आप को उसके मिजाज को समझना होगा। तभी वे कामयाब हो सकते हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आप के लिए आने वाले समय में खासी दिक्कत आ सकती है।’ पार्टी को होने वाली दिक्कत की जब ओपिनियन पोस्ट ने पड़ताल की तो ये बातें निकल कर सामने आईं।

नाराज तो हूं मगर इस्तीफा नहीं दिया

आप के पंजाब संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर ने कहा कि उन्होंने पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है। लेकिन पहली सूची में तीन ऐसे उम्मीदवरों के नाम शामिल किए गए हैं जो टिकट के लायक नहीं हैं। पहले इस लिस्ट में 26 नाम थे। कुछ और नामों को लेकर उनका विरोध था इसलिए उन्हें काट कर 19 कर दिया गया है। मैं सारी बात पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के सामने रखूंगा। उसे मानना न मानना उनकी मर्जी है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यदि उनकी बात नहीं मानी जाती है तो भी वे पार्टी के आदेशानुसार काम करते रहेंगे।

विचारधारा का अभाव
आम आदमी पार्टी की एक दिक्कत यह है कि अभी तक उसने अपनी कोई स्पष्ट विचारधारा पेश नहीं की है जिसे आधार बना कर मतदाता को पार्टी के साथ जोड़ा जा सके। अभी तक आप का आधार अकाली दल व कांग्रेस के विरोध पर ही टिका हुआ है। एक समय तक तो यह रणनीति कामयाब रहती है। पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार आइपी सिंह का कहना है, ‘मतदाता अब यह समझने लगा है कि आप स्थापित पार्टियों से अलग नहीं है। जो लोग आप में वैकल्पिक राजनीति तलाश रहे थे उनकी उम्मीद टूटनी शुरू हो गई है। अभी तक वह ऐसा कुछ भी नहीं कर पाई है जो उसे दूसरी पार्टियों से अलग खड़ी करती हो। कहने को तो यह कहा जा सकता है कि पार्टी ने आम लोगों से उम्मीदवार चुने हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब पार्टी ही नई है तो जाहिर है उम्मीदवार भी नए ही होंगे। इसमें अलग क्या है? अलग तो यह होता कि उम्मीदवारों का चयन संबंधित क्षेत्र के लोगों की रायशुमारी से होता। आप में भी जो तय हो रहा है वह हाईकमान से ही हो रहा है। ऐसे में दूसरी पार्टियों से वह अलग कहां है? आप की लिस्ट भी दिल्ली से आई। जो पार्टी टिकट फाइनल करने में प्रदेश संयोजक तक की राय नहीं ले रही हो उसके लिए आम लोगों की राय क्या मायने रखती है।’

व्यक्ति विशेष का ही बोलबाला
राजनीतिक विश्लेषक मानविंद्र सिंह माली का मानना है, ‘आप भी एक व्यक्ति अरविंद केजरीवाल पर ही केंद्रित है। पंजाब के मुद्दों पर कोई बात ही नहीं कर रहा है जबकि यहां मुद्दों की भरमार है। जब बात ही नहीं हो रही है तो उनका हल क्या खाक होगा? महाराष्ट्र के बाद पंजाब में किसान सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं। आप उनके लिए क्या कर रही है? नदियों के पानी का मामला हो या फिर पंजाब की आर्थिक स्थिति का, आप इस बारे में कोई स्पष्ट राय नहीं रख रही है। ऐसा लग रहा है कि दिल्ली में केजरीवाल के साथ जो हो रहा है उसका बदला पंजाब के मतदाता भाजपा-अकाली गठबंधन सरकार से लें।’

मालवा को तवज्जो 27 फीसदी दलित

आम आदमी पार्टी ने 19 घोषित उम्मीदवरों में मालवा की 67 सीटों को ध्यान में रखा है। अभी तक जो उम्मीदवार आप ने घोषित किए हैं उनमें 27 फीसदी दलित हैं। इस सूची में सिर्फ एक महिला उम्मीदवार रूपिंदर कौर को शामिल किया गया है। 28 वर्षीय रूपिंदर बठिंडा देहात से चुनाव लड़ेंगी। पहली सूची में युवाओं और वरिष्ठों का तालमेल बनाने की कोशिश की गई है। इनमें से ज्यादातर उम्मीदवार मालवा से हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि आप पंजाब में मालवा पर सबसे ज्यादा फोकस करना चाह रही है।

विपक्षी विद्रोहियों पर अकाली नजर
पिछले विधानसभा चुनाव में अकाली दल की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। कांग्रेस तो लगभग यह मान कर चल रही थी कि उसकी जीत पक्की है। नतीजे आए तो न सिर्फ कांग्रेस बल्कि पंजाब की सियासत पर नजर रखने वालों के लिए भी यह झटका था कि अकाली सत्ता में आ गए। इसके पीछे ज्यादा कुछ नहीं था। अकाली दल की रणनीति यह रही कि विरोध के मत को बांट दिया जाए। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से विद्रोह कर जो प्रत्याशी चुनाव में खड़े हुए थे अकाली दल ने उनका समर्थन किया। ऐसा इस बार भी हो सकता है। आप के विद्रोहियों पर अकाली दल की नजर हो सकती है। बागी तेवर वाले आप समर्थकों को चुनाव में खड़ा करने की कोशिश इस बार भी हो सकती है।
डर रहे किसान
पंजाब में इन दिनों एक नई बात चल रही है। जिस तरह से दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का केंद्र के साथ टकराव है उसका सीधा असर पंजाब में पड़ता नजर आ रहा है। पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। यहां की उपज केंद्र ही खरीदता है। अब किसानों को डर सता रहा है कि यदि आप पंजाब में आई तो उन्हें आनाज बेचने में दिक्कत आ सकती है। पंजाब केंद्रीय पूल में 120 लाख टन गेहूं और 135 लाख टन धान देता है। इतना अनाज राज्य सरकार खुद खरीदने की स्थिति में नहीं होती। ऐसे में यदि केंद्र ने अनाज नहीं खरीदा तो पंजाब की तो खेती ही बर्बाद हो जाएगी। यह बात पंजाब के किसानों के बीच तेजी से फैलाई जा रही है। इसका जवाब फिलहाल आप के पास नहीं है। 