NDA mahagathbandhan

राज्य की 14 लोकसभा सीटों के लिए चुनावी बिसात बिछ चुकी है. एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है. लगभग सभी सीटों पर वोटकटवा उम्मीदवार भी मैदान में हैं. कुछ सीटों पर त्रिकोणात्मक संघर्ष जरूर है, लेकिन अधिकांश सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधी लड़ाई तय संघर्ष है.

भाजपा के सामने 2014 का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है, तो महागठबंधन के सामने अपनी साख मजबूत करने की. भाजपा के लिए 14 में से 12 सीटें निकाल पाना इस बार आसान नहीं दिख रहा है. महागठबंधन की ओर से कांग्रेस ने अपने कोटे की हजारीबाग सीट पर उम्मीदवार की घोषणा सबसे अंत में की. हजारी बाग में भाजपा की ओर से जयंत सिन्हा और भाकपा की ओर से भुवनेश्वर मेहता के नाम पहले ही घोषित किए जा चुके थे. भुवनेश्वर मेहता भी हजारीबाग से सांसद रह चुके हैं. कांग्रेस ने गोपाल साहू को अपना उम्मीदवार बनाया है. वह पिछले छह साल से झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष हैं. उनके बड़े भाई शिव प्रसाद साहू रांची से सांसद रह चुके हैं और दूसरे भाई धीरज साहू राज्यसभा सदस्य हैं. उनके परिवार को झारखंड के जाने-माने व्यवसायी घरानों में शुमार किया जाता है. साल 2005 में गोपाल साहू रांची विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव लड़ चुके हैं. हजारीबाग में कांग्रेस, भाजपा और भाकपा के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष होना तय है. यहां आगामी पांच मई को मतदान होगा.

बागी चौधरी बने निर्दलीय उम्मीदवार

पांच मई को हजारी बाग के अलावा रांची, कोडरमा एवं खूंटी, 12 मई को धनबाद, गिरिडीह, जमशेदपुर एवं सिंहभूम और 19 मई को राजमहल, दुमका एवं गोड्डा सीटों के लिए मतदान होगा. चतरा, लोहरदगा एवं पलामू यानी तीन सीटों के लिए मतदान संपन्न हो चुका है. रांची लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय को मैदान में उतारा है, जबकि भाजपा ने संजय सेठ को. भाजपा के बागी राम टहल चौधरी भी बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा ने चौधरी का टिकट अधिक उम्र होने के कारण काट दिया. नाराज चौधरी पार्टी से इस्तीफा देकर बतौर निर्दलीय मैदान में उतर गए. उनके पुत्र रणधीर चौधरी ने भी भाजपा छोड़ दी है. यहां त्रिकोणीय संघर्ष तय है. चौधरी के मैदान में होने से भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है, जबकि कांग्रेस को इसका लाभ मिल सकता है. कोडरमा सीट पर भी भाजपा ने अपने सांसद रवींद्र कुमार राय का टिकट काट दिया है. यहां महागठबंधन की ओर से झाविमो प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी मैदान में हैं, जबकि भाजपा ने राजद की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी को अपना उम्मीदवार बनाया है, रवींद्र राय का टिकट उन्हीं के लिए काटा गया. भाकपा (माले) की ओर से राज कुमार यादव मैदान में हैं. 2014 के चुनाव में राज कुमार दूसरे स्थान पर रहे थे. महागठबंधन में शामिल होने के लिए माले की एकमात्र शर्त कोडरमा सीट देने की थी, लेकिन बात बनी नहीं. अब इस सीट पर त्रिकोणात्मक संघर्ष होना तय है. बाबू लाल मरांडी कोडरमा से सांसद रह चुके हैं, 2014 में वह तीसरे स्थान पर रहे थे.

राय और पांडेय को शाह ने मनाया

भाजपा ने राम टहल चौधरी एवं रवींद्र राय के अलावा 2014 में खूंटी से जीते कडिय़ा मुंडा एवं गिरिडीह से जीते रवींद्र पांडेय के भी टिकट काट दिए. कडिय़ा मुंडा ने बिना किसी विरोध के आलाकमान का फैसला मान लिया और वहां से भाजपा उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को आशीर्वाद भी दे दिया. कांग्रेस ने उनके मुकाबले काली चरण मुंडा को अपना उम्मीदवार बनाया है. काली चरण पिछले विधानसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे थे. रांची में राम टहल चौधरी ने बगावत कर दी. रवींद्र पांडेय के बसपा के टिकट पर गिरिडीह से चुनाव लडऩे के कयास लगाए जा रहे थे, वहीं रवींद्र राय की ओर से भी भितरघात का अंदेशा था. इसलिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने वाराणसी दौरे के समय दोनों नेताओं को बुलाकर समझाया. उसके बाद रवींद्र पांडेय ने घोषणा की कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे. रवींद्र राय भी शांत हो गए. अब चुनाव के दौरान उनकी क्या भूमिका होगी, कहना कठिन है. गिरिडीह सीट पर महागठबंधन की ओर से डुमरी के झामुमो विधायक जगन्नाथ महतो उम्मीदवार हैं, जबकि एनडीए की ओर से यह सीट आजसू को दी गई, जिसने झारखंड सरकार में मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी को मैदान में उतारा है. यहां एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधी लड़ाई है.

सिंह मेंशन का दखल

धनबाद में भाजपा ने पशुपति नाथ सिंह को एक बार फिर मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने उनके मुकाबले में कीर्ति आजाद को खड़ा किया है. सिंह मेंशन के सिद्धार्थ गौतम भी मैदान में हैं, वह भाजपा के बागी उम्मीदवार हैं. सिंह मेंशन कोयलांचल की राजनीति में विशेष महत्व रखता है. कोयला मजदूरों के बीच उनके जनता मजदूर संघ की जबर्दस्त पकड़ है, लिहाजा वह चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने की हैसियत रखते हैं. कांग्रेस के कीर्ति आजाद का राजनीतिक कद चाहे जो हो, लेकिन कोयलांचल के लिए वह नए हैं. कांग्रेस के परंपरागत वोट तो उन्हें मिलेंगे, लेकिन तटस्थ वोटों को वह कितना आकर्षित कर पाएंगे, कहना कठिन है. चाईबासा सीट पर कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को अपना उम्मीदवार बनाया है, जो भाजपा के लक्ष्मण गिलुआ को टक्कर देंगी. कोड़ा परिवार का इलाके में दबदबा रहा है. यहां लड़ाई दिलचस्प होने के आसार हैं. लोहरदगा सीट पर भाजपा के सुदर्शन भगत और कांग्रेस के सुखदेव भगत के बीच मुकाबला है. चतरा सीट महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के हिस्से में थी, लेकिन राजद ने सुभाष यादव को मैदान में उतार दिया. भाजपा ने सुनील सिंह पर दोबारा दांव लगाया है, जबकि कांग्रेस ने बरही विधायक मनोज यादव को चुनाव मैदान में उतारा है. यहां त्रिकोणात्मक संघर्ष तय है. गोड्डा में भाजपा के निशिकांत दूबे और झाविमो के प्रदीप यादव के बीच सीधा मुकाबला है. दोनों राजनीति के कद्दावर खिलाड़ी हैं. बाजी कौन मारेगा, कहना मुश्किल है.

शिबू ने मांगा जीत का आशीर्वाद

दुमका सीट पर झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने सुनील सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है. शिबू सोरेन काफी बुजुर्ग हो चुके हैं. संभवत: यह उनका अंतिम चुनाव होगा. वोटरों से भी वह अंतिम बार जीत का सेहरा बांधकर विदा करने की अपील कर रहे हैं. पलामू सीट से राज्य के पूर्व डीजीपी दोबारा मैदान में हैं. राजद ने धूरन राम को उतारा है. यह अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है. जमशेदपुर सीट पर भाजपा के विद्युत चरण महतो दोबारा मैदान में हैं, वहीं महागठबंधन की ओर से यह सीट झामुमो के पाले में है, जिसने जाने-माने नेता चंपई सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है. राजमहल सीट से 2014 में झामुमो के विजय हांसदा ने बाजी मारी थी, वहीं भाजपा के हेमलाल मुर्मु दूसरे स्थान पर रहे थे. इस बार पुन: अपने-अपने दलों की ओर से यही दोनों मैदान में हैं. राज्य के वोटरों के मिजाज का अंदाजा लगाना कठिन है, लेकिन इतना तय है कि भाजपा को कई सीटों पर लोहे के चने चबाने की नौबत आ सकती है.