रमेश कुमार ‘रिपु’

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह चौथी बार भी जीत का जादू चलाना चाहते हैं। अपने जादू को बरकरार रखने के लिए जब उन्होंने मुफ्त में 55 लाख स्मार्टफोन बांटने की योजना शुरू की तो रायपुर में चाट का ठेला लगाने वाले राकेश साहू ने कहा, ‘गजब का आइडिया है सर जी। एक रुपये किलो चावल के बाद अब स्मार्टफोन भी मुफ्त। छा गए चाउर वाले बाबा।’ स्मार्टफोन पर सरकारी कोष से 1,632 करोड़ रुपये खर्च किए गए। जनता के बीच अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने के लिए मुफ्त स्मार्टफोन बांटने की योजना लाकर रमन सिंह ने विपक्ष को चौंका दिया था। आवास एवं पर्यावरण मंत्री राकेश मूणत ने कहा, ‘स्मार्टफोन बांट कर हमने शुरुआती बढ़त बना ली।’ शुरुआत में ऐसा लगा भी लेकिन जब मुख्यमंत्री की विकास यात्रा 67 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी तो उन्हें जमीनी हकीकत का पता चला। जनता मुख्यमंत्री से नाराज नहीं है लेकिन उनके विधायकों और मंत्रियों के प्रति गुस्सा है। चुनावी साल में वैसे भी सरकार के प्रति जनता की नाराजगी छलक पड़ती है। सरकार के खिलाफ लहर तगड़ी है जिसका विपक्ष हर हाल में लाभ उठाना चाहता है।
कांग्रेस को भरोसा है कि जनता इस बार उसके हाथ में सत्ता की कमान देगी लेकिन उसे झटका तब लगा जब अजीत जोगी की पार्टी जिसे वह भाजपा की बी टीम कहती है, का गठबंधन बसपा से हो गया। अब प्रदेश में एक नए सियासी समीकरण पर बहस शुरू हो गई है। क्या अजीत जोगी किंगमेकर बनेंगे? यदि उनका गठबंधन सात से दस सीटें जीत जाता है तो बहुमत का संतुलन बिगड़ सकता है। बसपा के प्रदेश प्रभारी एमएल भारती ने दावा किया है-‘हमारी पार्टी को बहुमत नहीं भी मिला तो हम इतनी सीटें जरूर पा जाएंगे कि हमारे बगैर किसी की सरकार नहीं बनेगी।’ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी मानते हैं कि राज्य में अनुसूचित जाति के प्रभाव वाली 26 सीटें हैं। इन सीटों पर इस गठबंधन का असर नजर आएगा। भाजपा और कांग्रेस दोनों को मुश्किल होगी। वैसे, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दस सीटों में से अभी नौ पर भाजपा का और एक पर कांग्रेस का कब्जा है। ये सीटें हैं मुंगेली, मस्तूरी, नवागढ़, अहिवारा, डोंगरगढ़, बिलाईगढ़, आरंग, सारंगढ़, सराईपाली और पामगढ़। अजीत जोगी और मायावती का गठबंधन इन सीटों पर सेंध मार सकता है। इसलिए भी कि इन सभी सीटों पर सतनामी समुदाय का दबदबा है। जोगी को यह समुदाय अपना नेता मानता है। छत्तीसगढ़ की 12 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है जिनमें 75 फीसदी आबादी सतनामी समुदाय की है। इसी तरह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 29 सीटों पर वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा आगे थी। अब कांग्रेस यहां मजबूत है। जबकि आदिवासी बहुल 14 सामान्य सीटों पर मुकाबला बराबरी का है।
भाजपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ेंगे
मायावती अपनी पार्टी का सियासी कद बढ़ाने के लिए कांग्रेस से तालमेल करना चाहती थीं लेकिन सीटों को लेकर बात न बनने पर उन्होंने जोगी की पार्टी छजकां से गठबंधन कर छत्तीसगढ़ में एक नई सियासी पारी शुरू की। 13 अक्टूबर को बिलासपुर के सरकंडा में एक विशाल आम सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘बसपा और छजकां गठबंधन को बहुमत मिला तो अजीत जोगी मुख्यमंत्री होंगे। अजीत जोगी के साथ कांग्रेस ने सही व्यवहार नहीं किया। जबकि उन्होंने अपना पूरा जीवन कांग्रेस को समर्पित कर दिया था। उन्हें बसपा पूरा सम्मान देगी।’ मायावती जब यह कह रही थीं तब रायपुर स्थित भाजपा और कांग्रेस के कार्यालय में सन्नाटा पसर गया। कुछ देर बाद दोनों पार्टियों के प्रवक्ता कहने लगे कि जोगी ने मायावती को अच्छे दिन का अच्छा सपना दिखाया है तभी मायावती ऐसा कह रही हैं। कांग्रेस प्रवक्ता विकास तिवारी कहते हैं, ‘जोगी के पास उम्मीदवार ही नहीं हैं तो बहुमत कहां से पाएंगे। वे गिन के बता दें कहां-कहां की सीट जीतेंगे।’ वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर कहते हैं, ‘मायावती ने जोगी को सीएम बनाने की घोषणा बहुत सोच समझ कर की है। वैसे भी जोगी लोकप्रिय नेता हैं। प्रदेश कांग्रेस में उनसे बड़ा कोई नेता नहीं था। भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों की घोषणा के बाद कई दूरगामी परिणामों का आकलन किया जाएगा। जिन्हें टिकट नहीं मिलेगा वे जोगी की पार्टी से चुनाव लड़ेंगे तो चौंकाने वाले परिणाम आ सकते हैं। यदि जोगी सात-आठ सीट भी पा गए तो खेल बिगाड़ सकते हैं।’

बदल सकता है सत्ता का रास्ता
छत्तीसगढ़ की राजनीति में बरसों से एक कहावत चली आ रही है कि सत्ता का रास्ता बस्तर से होकर निकलता है। लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार यह कहावत बदल जाएगी। इसलिए कि बिलासपुर संभाग में 24 सीटें हैं जिनमें 12 सीट भाजपा के पास है, 11 सीट कांग्रेस के पास और एक सीट बसपा के पास है। इस बार यहां का सियासी गणित बदल सकता है। बिलासपुर संभाग की 11 ऐसी सीटें हैं जिन पर बसपा का असर अधिक है। इनमें चंद्रपुर, जैजैपुर, पामगढ़, तखतपुर, जांजगीर, सारंगढ़, अकलतरा, सक्ती, बेलतरा, मस्तूरी और मुंगेली शामिल हैं। वैसे प्रदेश की 16 सीटों पर 2 फीसदी से लेकर 33 फीसदी तक बसपा का जनाधार है। जबकि इस संभाग में जोगी की पार्टी छजकां के प्रभाव वाली सीटों में मरवाही, कोटा, लोरमी, मुंगेली, तखतपुर, बिल्हा, मस्तूरी और अकलतरा हैं। मरवाही विधानसभा क्षेत्र से अमित जोगी और बिल्हा से सियाराम कौशिक विधायक हैं। दोनों पिछली बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते थे लेकिन अब जोगी की पार्टी में हैं। कोटा विधानसभा सीट से रेणू जोगी कांग्रेस के टिकट पर पिछला चुनाव जीती थीं। कांग्रेस इस बार उन्हें टिकट नहीं दे रही है। यानी एक और सीट पर जोगी की पार्टी का दखल बढ़ सकता है। वैसे भी कांग्रेस की तुलना में जोगी की पार्टी अभी तक इस संभाग की चुनावी सभाओं में अधिक भीड़ खींचती आई है। बसपा से जोगी का गठबंधन होने से यहां कांग्रेस के लिए खतरा और बढ़ गया है।
प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रहे और पाली तानाखार सीट से विधायक रामदयाल उइके फिर से भाजपा में शामिल होकर पहले ही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा चुके हैं। अजीत जोगी ही उन्हें भाजपा से कांग्रेस में लाए थे। मुख्यमंत्री रमन सिंह ने रामदयाल उइके की भाजपा में दोबारा वापसी पर उनकी तारीफ की और कहा, ‘रामदयाल उइके ने पाली तानाखार और मरवाही समेत आस-पास के क्षेत्रों में आदिवासी समाज के लिए कल्याणकारी काम किया है। आदिवासी समाज के हितों को लेकर उइके हमेशा सजग रहे हैं। आदिवासी समाज में उनका जनाधार है। उइके कांग्रेस का साथ छोड़कर घर वापस आए हैं, हम उनका स्वागत करते हैं।’ सूत्रों का कहना है कि अजीत जोगी के कहने पर ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ी। यदि यह सच है तो फिर जोगी ने रामदयाल उइके को अपनी पार्टी में शामिल क्यों नहीं किया यह हैरानी वाली बात है। ऐसे में भाजपा से मुकाबले के लिए अब कांग्रेस को और अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। इसके अलावा उसे राष्ट्रीय स्तर पर मोदी बनाम अन्य के लक्ष्य की दिशा में बढ़ने में भी पहले की तुलना में अधिक जोर लगाना पड़ेगा। इसलिए कि विधानसभा चुनाव के कुछ ही महीनों बाद लोकसभा चुनाव है। हालांकि रमन सरकार के खिलाफ कांग्रेस के पास मुद्दों की कमी नहीं है। आदिवासियों से लेकर किसानों के मुद्दों को लेकर कांग्रेस गांव-गांव तक जा रही है।

भाजपा की समस्या
सत्ता विरोधी रुझान होने के बाद भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 65 प्लस सीट पर विजय हासिल करने का लक्ष्य पार्टी को दे रखा है। रमन सिंह ने पिछली दफा 17 विधायकों का टिकट काट कर नए उम्मीदवारों को मौका दिया था जिससे वे तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रहे थे। इस बार भी भाजपा कुछ ऐसा ही करने जा रही है। पार्टी के अंदरूनी सर्वे में जिन विधायकों की जीत की संभावना नहीं है उन्हें टिकट न देने का निर्णय किया गया है। भाजपा ने 14 विधायक और महिला बाल विकास मंत्री रमसिला साहू का टिकट काट दिया है। वहीं 14 महिलाओं, 53 किसान, एक पूर्व आईएएस, चार डॉक्टर और 25 युवाओं को टिकट दिया है। कांग्रेस के भी करीब आधा दर्जन विधायकों के टिकट कटने की आशंका है।

तीस सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने जून में पार्टी के बूथ पदाधिकारियों से दो टूक कहा था कि कोशिश करें कि किसी भी विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति न हो। लेकिन कांग्रेस इसमें नाकाम हो गई। राजनीति के छात्र कौशलेश तिवारी कहते हैं, ‘इस बार जिस तरह की स्थिति दिख रही है उससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान होगा। यदि दोनों को सियासी घाटा होगा तो फिर सीटें जोगी और बसपा के पाले में जाएंगी।’ माना जा रहा है कि प्रदेश की 90 सीटों में से 30 पर त्रिकोणीय मुकाबला रहेगा। ऐसी सीटों में प्रमुख हैं सारंगढ़, लैलूंगा, जांजगीर, चांपा, अकलतरा, सक्ती, पामगढ़, जैजैपुर, चंद्रपुर, बिलाईगढ़, कसडोल, तखतपुर, मरवाही, कोटा, बिल्हा, लोरमी, बेलतरा, राजनांदगांव, मनेंद्रगढ़, खल्लारी, बलौदा बाजार, गुंडरदेही, मस्तूरी, बेमेतरा, दंतेवाड़ा, कोंटा, खुज्जी, नवागढ़, भाटापारा, महासमुंद और रायपुर ग्रामीण। बिलासपुर संभाग की 24 सीटों में से 15 सीटों पर त्रिकोणीय स्थिति रहेगी। छत्तीसगढ़ में 18 विधानसभा सीटों पर पहले चरण का मतदान 12 नवंबर को होना है। इसमें बस्तर की 12 विधानसभा और राजनांदगांव की छह विधानसभा सीटें हैं। जोगी की नजर बस्तर की12 सीटों पर है। वे पहले ही कह चुके हैं कि उनकी सरकार बनी तो बस्तर से चलेगी। यहां से एक डिप्टी सीएम होगा। जाहिर है कि मतदाताओं को लुभाने का यह सियासी हथकंडा है। देखना है कि भाजपा के विकास के ब्रह्मास्त्र और कांग्रेस के सरकार विरोधी मुद्दों के अस्त्रों के बीच माया, जोगी और सीपीआई गठबंधन को जीत की कितनी चाबियां मिलती हैं। 