महाराष्ट्र के मालेगांव में 2006 में हुए चार धमाकों के मामले में सभी नौ आरोपियों को मुंबई की एक कोर्ट ने बरी कर दिया है। इस ब्लास्ट में 35 लोगों की मौत हो गई थी। रिहा किए गए सभी आरोपी पांच साल जेल में काट चुके हैं। मालेगांव धमाकों की शुरुआती जांच एटीएस ने की थी, जिसने नौ मुसलमानों को गिरफ्तार किया था। एटीएस की जांच में आरोपियों को सिमी का सदस्य बताया गया था और जांच के मुताबिक इन लोगों ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की मदद से ब्लास्ट की घटना को अंजाम दिया था। मालेगांव ब्लास्ट केस में बरी हुए नौ लोगों में से एक की मौत हो चुकी है ।

जब NIA ने लिया केस का चार्ज
एटीएस की जांच के बाद यह केस सीबीआई को दिया गया था और सीबीआई ने भी एटीएस की जांच को सही ठहराया था। इस केस में नया मोड़ तब आया, जब साल 2011 में केस का चार्ज एनआईए ने लिया। जांच के बाद दक्षिणपंथी हिंदू संगठन अभिनव भारत के सदस्यों को आरोपी बताया गया। बता दें कि इसी संगठन के सदस्यों को 2008 में हुए दूसरे मालेगांव ब्लास्ट का दोषी पाया गया था।

बयान से पलटे असीमानंद
समझौता ट्रेन ब्लास्टकेस में आरोपी स्वामी असीमानंद के मुताबिक सुनील जोशी नाम के शख्स ने यह बात बताई थी कि पहले और दूसरे मालेगांव ब्लास्ट में एक ही संगठन का हाथ है। सुनील जोशी की हत्या के बाद असीमानंद ने अपना बयान वापस ले लिया था।

फैसले पर NIA की आपत्ति

2014 में NIA ने दावा किया कि ATS और CBI ने जिन लोगों को आरोपी बताया, उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। हालांकि हाल में NIA ने आरोपियों को बरी करने की सुनवाई का विरोध किया था।

मुस्लिम आरोपियों ने अपने खिलाफ दर्ज मामले को ख़ारिज करने की अर्जी दी
जमानत पर छूटे मुस्लिम आरोपियों ने अपने खिलाफ दर्ज मामले को ख़ारिज करने की अर्जी दी थी, जिस पर सोमवार को फैसला आया। खास बात है कि इसी धमाके में दूसरे मोड्यूल को पकड़ने वाली एनआईए ने पहले वाले आरोपियों के डिस्चार्ज का समर्थन नहीं किया।एनआईए का कहना है कि डिस्चार्ज एप्लीकेशन एनआईए की जांच के आधार पर है ना कि एटीएस की जांच पर। इसलिए इस स्टेज पर फैसला लेने से बेहतर होगा कि मुक़दमा चले।