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इस बार मलमास या अधिकमास 16 मई से 13 जून तक ज्येष्ठ माह में रहेगा। इसे ही पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार चंद्र गणना विधि से ही काल गणना पद्धति विकसित की जाती है। चंद्रमा की 16 कलाओं को आधार मान कर दो पक्ष-कृष्ण व शुक्ल का एक मास माना जाता है। कृष्ण पक्ष के पहले दिन से पूर्णिमा की अवधि तक साढ़े 29 दिन होते हैं। इस प्रकार एक वर्ष 354 दिन का होता है।

पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365 दिन छह घंटे में करती है। इस कारण चंद्र गणना के हिसाब से 11 दिन तीन घड़ी व 48 पल का अंतर हर साल पड़ जाता है। फिर यही अंतर तीन वर्ष में बढ़ते-बढ़ते लगभग एक वर्ष का हो जाता है। इसे ही दूर करने के लिए तीन वर्ष में एक अधिकमास की परम्परा है। अधिकमास के दोनों पक्षों में सन्क्रांति नहीं होती है।

इस मास में विवाह, नवीन गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदारी आदि वर्जित है। अधिकमास में नृसिंह भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए उसके पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यपु का वध किया था। उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था- ‘मैं साल के 12 महीनों में न मरूं। शस्त्र-अस्त्र से न मरूं। न मनुष्य से मरूं न ही देवता-असुर आदि से। न रात को मरूं न दिन में मरूं।’ तभी नृसिंह भगवान, जो मनुष्य और सिंह का स्वरूप धारण किए हुए थे, ने उसे घर की देहरी पर अपने नाखूनों से फाड़ डाला।

अधिकमास के स्वामी श्रीहरि इसलिए बने,  क्योंकि अन्य देवताओं ने इसका स्वामी बनने से मना कर दिया। तभी यह पुरुषोत्तम मास हो गया। इन दिनों में श्रीहरि की प्रसन्नता के लिए स्नान-दान व्रत अवश्य करना चाहिए।

गंगा और अन्य पवित्र नदियों पर स्नान, व्रत और नारायण की पूजा व अन्न, वस्त्र, स्वर्ण-रजत, ताम्र आभूषण, पुस्तकों आदि का दान अक्षय पुण्य दिलवाता है। प्रथम पूज्य गणेश जी, शिव जी और अपने इष्टदेव-कुलदेवी,  कुलदेवता आदि की पूजा भी इस दौरान जरूर करते रहें।

जिन राशियों की शनि की साढे़साती (वृश्चिक, धनु और मकर) चल रही है और जिनकी शनि की ढैया (वृष और कन्या) चल रही है, उनको इस मास की पूजा जरूर करनी चाहिए। इस मास में गणेश जी, श्रीमद्भागवत गीता, रामचरितमानस, शिव कथा आदि पढ़ना और श्रवण करना शुभ माना जाता है। संभव हो तो अपने घर कथा करवाएं।

पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र  ओपिनियन पोस्ट के नियमित स्तंभकार हैं।