उमेश सिंह

संन्यासी और सिंहासन। सत्ता के मचान पर संन्यासी। अंतर्विरोधी सा है। थोड़ा अटपटा सा लगता है। ‘संतन को कहा सीकरी सो काम ’। जनमानस के रचावट-बुनावट में कमोबेश ऐसा ही भाव है। अभी ठीक से एक बरस भी नहीं हुआ। सूबे की सियासत की ‘भगवा-अंतर्धारा’ भीतर ही भीतर ‘नया व्याकरण’ रच रही थी। बिल्कुल अनूठा, अलहदा। खतरे भी कम नहीं थे। सीएम कौन होगा? हवा में एक नाम उछला- योगी आदित्यनाथ। उनकी जुबां थोड़ी गर्म मिजाज थी, इसलिए सवालों के तीर चलने लगे। ये ‘सियासी जुबानी तीर’ इतने तल्ख थे कि भाषा की मर्यादा भी भंग हुई। उस दौर में सवाल ऐसे-ऐसे उठाए गए कि ‘भाषाएं नंगी हो गर्इं और बोलियां छिनाल’। यह कहना भाषाई संस्कृति से थोड़ा स्खलित होना है लेकिन तत्समय के सियासी वाक पाखंड पर सोलह आने सच है। शब्द की ध्वनि से तेज कर्म की आवाज होती है। योगी के उग्र हिंदुत्व व्यक्तित्व को लेकर सवाल करने वालों को उनके कुछ माह के कर्मों ने खरा-खरा जवाब दे दिया। वर्षों की अराजकता से उत्तर प्रदेश हर मोर्चे पर लड़खड़ा गया था। वर्तमान तो खराब था, भविष्य कैसे सुनहरा होता? भविष्य के अंधेरे से लोग भयभीत थे। ‘रोशन उंगलियों’ वाले नायक की प्रतीक्षा थी। संकेत बता रहे हैं कि यह प्रतीक्षा, यह साध संभवत: पूरी हो जाए। कुछ बड़े सवालों से जीवंत मुठभेड़ कर यदि आदित्यनाथ योगी कामयाब हो जाते हैं तो वे उत्तर प्रदेश के लिए ‘रोशन उंगली’ बन सकते हैं। लेकिन यह अभी भविष्य के गर्भ में है। त्वरित न्याय के लिए चर्चित ‘जहांगीरी घंटा’ इतिहास के पन्नों से बाहर निकल आया। ‘बंदूकों-संदूकों’ से घुटती लोकतंत्र की सांसों को प्राणवायु मिली। ताबड़तोड़ एनकांउटरों ने बंदूकचियों की कमर तोड़ दी। पिछली सरकारों में सत्ता से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष इन अपराधियों को ताकत मिलती रही। सत्ता प्रतिष्ठानों तक इनकी जो डोरी थी, वह कट गई। बाजार की बेढंगी-बेकाबू चाल भी काबू में हुई है। कालाबाजारी थमी है। शासन की नई रीति-नीति से बिचौलिये अभी खत्म तो नहीं हुए हैं लेकिन बौने हो गए। किसान कर्जमाफी से अन्नदाताओं के आंगन में राहत की फुहारें तो आर्इं, लागत मूल्य और बाजार मूल्य की विसंगतियां अभी बनी हुई हैं। जो भी सत्तासीन होता है, वह नई दिशा की ओर ले जाना चाहता है, उत्तम प्रदेश बनाना चाहता है। भयमुक्त, अपराधमुक्त, दंगा-फसाद मुक्त और अन्यायमुक्त। सूबे की जनता का अपना अनुभव निराशाजनक रहा- यह सब सिर्फ जुबां में और कागजों में ही कैद रहा। वास्तविक धरातल पर यह सब उतारने की कोशिशें बहुत गंभीरता से नहीं हुर्इं। प्रदेश सरकार हर मोर्चे पर मुस्तैदी से डटी है। लेकिन उसका असर देखने के लिए अभी प्रतीक्षा करनी होगी।

इतिहास के पन्नों में ‘जहांगीरी घंटा’ का जिक्र है। यह किले के बाहर लटका रहता था। बजाने वाले फरियादी की बात जरूर सुनी जाती थी और उनकी समस्याओं का निस्तारण किया जाता था। योगी के शासनकाल में शिकायतों के प्रभावी व शीघ्र निस्तारण को विशेष तवज्जो दिया जा रहा है। शिकायत सुनवाई की व्यवस्था पहले भी थी लेकिन वह प्रभावी नहीं थी। मुख्यमंत्री के जनता दरबार, ई-मेल, पत्र, जन सुनवाई नाम की वेबसाइट आदि ऐसे अनेक माध्यम र्हैं जिनके जरिए जनता के दुख-दर्द से उनका सीधा संबंध है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में जन समस्याओं की सुनवाई और प्रभावी निदान के मामले में उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर आया है। छत्तीसगढ़ प्रथम, तमिलनाडु दूसरे स्थान पर है। छत्तीसगढ़ में 83.91 प्रतिशत, तमिलनाडु में 71.26 प्रतिशत तथा उत्तर प्रदेश में 68.89 फीसदी शिकायतों का निस्तारण हुआ। उत्तर प्रदेश में पिछले दस महीने में 2.46 लाख लोगों ने शिकायतें कीं जिसमें से 1.69 लाख लोगों की समस्याओं का समाधान किया गया। 2017 को गरीब कल्याण वर्ष घोषित किया गया था। यह कदम दीन दयाल के सपनों को सच करने की दिशा में उठाया गया था। अंतिम कतार में बैठे लोगों की चिंता, उनके हक-हकूक को लेकर संवेदनशीलता का व्यवहार। किसान कर्जमाफी के जरिए कर्जे के जाल में फंस चुके अन्नदाताओं को फौरी तौर पर बड़ी राहत दी गई। तकरीबन 86 लाख किसानों के सिर पर चढ़ा कर्ज खत्म कर दिया गया। कोष पर भारी वित्तीय दबाव पड़ा लेकिन किसानों की खुशहाली के लिए उस दबाव को योगी सरकार ने बर्दाश्त किया। बिजली वितरण की भेदभावयुक्त व्यवस्था के स्थान पर भेदभाव रहित व्यवस्था अपनाई गई। पूर्व की सरकार में पश्चिम के कई जिलों में चौबीस घंटे बिजली रहती थी जबकि पूर्व के जिलों के हिस्से में कई घंटे तक अंधेरा रहता था। योगी सरकार ने समतामूलक दृष्टि का परिचय देते हुए सभी जिलों के वीआईपी समझा। खराब ट्रांसफार्मर बदलने के लिए हेल्पलाइन 1912 शुरू की गई। शहरी क्षेत्रों में बारह और तथा गांव-गिरांव में अड़तालीस घंटे के अंदर ट्रांसफार्मर बदले जाने की नीति पर अमल हो रहा है। ई-डिस्ट्रिक्ट पोर्टल से 252 सेवाओं को जोड़ने की कोशिश की जा रही है, जिसमें निर्धारित समयावधि में काम पूरा करने का लक्ष्य होगा।
कानून व्यवस्था की स्थिति पूर्व की सरकारों में अच्छी नहीं थी। सत्ता संरक्षित केंद्रों से अपराध की संस्कृति फल-फूल रही थी। सत्ता से आपराधिक गिरोहों का संबध नाभिनाल जैसा हो गया था। उस ‘नाभि’ से ‘नाल’ को काट दिया गया जिससे माफिया का आपराधिक गिरोह और उसके गुर्गे इतना भय खा गए हैं कि वे अपनी जमानत निरस्त करा जेल की राह पकड़ ले रहे हैं। सूबे का हाल यह था कि गिरोहों ने अपने-अपने भौगोलिक क्षेत्र तय कर लिए थे और सत्ता के समानांतर अपनी सत्ता चला रहे थे। जिन माफियाओं को जेल में ‘दामाद’ जैसा दर्जा मिला था, कड़क व सख्त योगी-काल में वे जेल में ही बेहोश हो जा रहे हैं। सूबे के एक हिस्से में एनकाउंटर की आवाज ठीक से शांत भी नहीं हो पाती है, दूसरे हिस्से से गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाजें सुनाई पड़ने लगती हैं। विधान सभा चुनाव के दौरान ही योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अपराधी या तो जेल जाएंगे, या… (संकेत की भाव-भंगिमा में दृष्टि और उंगली को आकाश की ओर उठाया था)। पिछले दस माह में नौ सौ पच्चीस एनकाउंटर हुए जिसमें वर्षों से चुनौती बने कई अपराधी ढेर हुए। दो हजार से अधिक लोगों को जेल के सींखचों के पीछे पहुंचाया गया। मुठभेड़ में दर्जनों पुलिसकर्मी घायल हुए। चित्रकूट में मुठभेड़ के दौरान सब इंस्पेक्टर जयप्रकाश सिंह शहीद हो गए। गैगेंस्टर एक्ट के तहत बदमाशों की अपराध के जरिए अर्जित की गई संपत्तियों को सीज कर दिया गया। ‘बंदूक और संदूक संस्कृति’ का बोलबाला था। अपराधियों की कमर तोड़ने के साथ ही उन व्यापारियों की भी नकेल कसी गई जिनकी आदतें खराब हो गई थी। एसटीएफ ने पेट्रोल पंपों पर इलेक्ट्रॉनिक चिप लगाकर घटतौली करने का भंडाफोड़ किया और तमाम बड़े लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई।

अल्पसंख्यकों में भय जाग्रत कर उनका वोट हथियाने और सुरक्षा देने का जो छलप्रपंच चल रहा था, बनाई गई वह धारणा तकरीबन टूट रही है या टूटने के मुहाने पर है। केंद्र में नरेंद्र मोदी के शासन में देश ने देखा कि जिन्हें बेवजह डराया जा रहा था, वे सुरक्षित हैं, उनको कोई खतरा नहीं है। उत्तर प्रदेश में योगी की सरकार बने दस माह हो गए, कासगंज जैसे छुटपुट मामले छोड़ दिए जाएं तो सांप्रदायिक तनाव और दंगा जैसी बातें फिलहाल नहीं हैं। कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर हुई तो उद्योगपतियों का भी उत्तर प्रदेश में भरोसा जगा। मुंबई में देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों ने सीएम से मिलकर यूपी में निवेश की इच्छा जगाई। निवेश होने से स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार मिलेगा तथा विकास को नई गति भी मिलेगी। विपक्षी जिन हथियारों से सरकार पर हमला बोल रहे हैं, वे हथियार कारगर साबित नहीं होने वाले हैं। दरअसल उज्ज्वल नाथ पंरपरा की गहराइयों में यदि वे उतरेंगे तो पता चलेगा कि वहां जाति, धर्म और क्षेत्र जैसी कोई सीमा है ही नहीं। इन संकीर्णताओं, इन अंधेरों के खिलाफ उजाले के रूप में नाथपंथ का उदय हुआ था। योगी आदित्यनाथ ने एक बयान में कहा था कि चार भिन्न कालखंडों के महर्षि वाल्मीक, वेद व्यास, संत रविदास और डॉ. भीमराव अंबेडकर आए। इन चार दलित लेखकों ने रामायण, महाभारत, भक्ति साहित्य और संविधान के माध्यम से अथक सेवा की और समाज ने इनकी रचनाओं को सिर माथे लगाया। दलित बनाम हिंदुत्व पर बहस चलाने वाले भारत की आत्मा को नहीं जानते है।