अभिषेक रंजन सिंह

गुजरात विधानसभा चुनाव इस बार न केवल रोचक हैं बल्कि कई पुराने रिकॉर्ड भी टूट सकते हैं। लगातार दो दशकों से सत्तारूढ़ भाजपा पहली बार नरेंद्र मोदी के बिना चुनाव लड़ रही है। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल के नेतृत्व में दो साल पहले आंदोलन की शुरुआत हुई जो राज्य सरकार के लिए न केवल मुसीबत बनी बल्कि इसके बाद भड़की हिंसा में कई पाटीदार युवक पुलिस की गोलियों के शिकार हुए। हार्दिक पटेल का आंदोलन जारी ही था कि ओबीसी और दलित नेता के रूप में अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी भी मैदार में उतर आए। शुरुआत में इन तीनों की पहचान गैर राजनीतिक आंदोलनकारी की थी। लेकिन 2017 के मध्य में हार्दिक और अल्पेश की राजनीतिक भूमिका दिखने लगी। अल्पेश गुजरात चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए वहीं हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को चुनाव में समर्थन देने का ऐलान कर दिया। कांग्रेस ने इसके बदले उनके चार समर्थकों को उम्मीदवार भी बनाया। वहीं जिग्नेश का झुकाव भी कांग्रेस की तरफ स्पष्ट रूप से दिख रहा है। भाजपा इस बार भी विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। लेकिन पाटीदार आंदोलन से पैदा हुए हालात का असर दोनों मुख्य पार्टियों के टिकट वितरण पर साफ दिखा। भाजपा और कांग्रेस ने इस बार लगभग पच्चीस फीसदी टिकट पाटीदार समाज के लोगों को दिये हैं। टिकट पाने में दूसरे स्थान पर रहे ओबीसी समुदाय के लोग। देश के बाकी राज्यों से अलग माने जाने वाले गुजरात में इस बार का चुनाव जातीय रंग में रंग चुका है। आम गुजरातियों में इसे लेकर एक गुस्सा भी देखा जा रहा है। अब तक विकास के मुद्दे पर मतदान करने वाले लोगों को लगता है कि हार्दिक पटेल और कांग्रेस की वजह से गुजरात का चुनाव भी उत्तर भारत के राज्यों जैसा प्रतीत होता है। 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा के पहले चरण में 89 सीटों पर नौ दिसंबर को मतदान होगा। जबकि दूसरे चरण में 93 सीटों पर चौदह दिसंबर को वोट डाले जाएंगे और नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे। यह चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए अहम है। लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए तो बेहद अहम है। चुनाव में कांग्रेस की स्थिति बेहतर होती है तो उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी। लेकिन पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो कांग्रेस में भी उनके खिलाफ आवाजें उठ सकती हैं। गुजरात के नतीजों का 2019 के लोकसभा चुनावों पर असर पड़ना लाजिमी है। बल्कि अगले साल कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी इसका असर पड़ेगा। हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर का सियासी मुस्तकबिल भी गुजरात चुनाव के नतीजे तय करेंगे।

विकास को नकारा नहीं जा सकता
अहमदाबाद में आॅटो स्पेयर कारोबारी भूपेंद्र पटेल का कहना है, ‘पहले स्पेयर पार्ट पर 31 फीसदी टैक्स था जो जीएसटी लागू होने के बाद 28 फीसदी रह गया। सूरत में 90 फीसदी टेक्सटाइल कारोबारी टैक्स चोरी करते हैं। जीएसटी का विरोध इन्हीं लोगों द्वारा किया जा रहा है। राजनीतिक फायदे के लिए कांग्रेस द्वारा जीएसटी का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण है।’ उनके मुताबिक, ‘विकास के मामले में गुजरात अग्रणी है और इसका श्रेय भाजपा को मिलना चाहिए। पंद्रह-बीस साल पहले सूरत देश के सबसे गंदे शहरों में शुमार था। आज सूरत की हालत बदली-बदली सी नजर आती है। बड़े पैमाने पर फ्लाई ओवर बनने से यातायात संबंधी दिक्कतें नहीं हैं। पहले सूरत में सांप्रदायिक तनाव और अपराधियों का बोलबाला था। आज वहां शांति है और महिलाएं सुरक्षित। कारोबार वहीं फल-फूल सकता है जहां कानून-व्यवस्था का राज हो और आधारभूत संरचनाएं मौजूद हों। यही वजह है कि मुंबई के कारोबारी भी बड़ी संख्या में सूरत आकर अपना व्यवसाय कर रहे हैं। कांग्रेस विकास के मुद्दे पर भाजपा के सवालों का जवाब नहीं देती। इसकी वजह है। जिस अहमदाबाद को भारत का मैनचेस्टर कहा जाता था उस अहमदाबाद में कपड़ों की तमाम मिलें बंद हो गईं। यह किसी और के शासन में नहीं, बल्कि कांग्रेस के शासन के दौरान हुआ। गुजरात के साथ कांग्रेस ने हमेशा सौतेला व्यवहार किया। देश के आजाद होने पर पंडित नेहरू प्रधानमंत्री बने। उस दौरान गुजरात में सरदार सरोवर बांध बनाने का प्रस्ताव पास हुआ। लेकिन इसकी जगह भाखड़ा-नांगल डैम बनाया गया। अगर उसकी जगह सरदार सरोवर डैम बनता तो गुजरात को काफी फायदा होता। बुलेट ट्रेन का विचार काफी अच्छा है। इससे अर्थव्यवस्था को काफी फायदा मिलेगा। भूकंप के बाद कच्छ लगभग तबाह हो चुका था। लेकिन वहां जिस प्रकार राहत कार्य चलाए गए उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। अहमदाबाद में साबरमती रीवर फ्रंट एक दूरदर्शी परियोजना है। पहले इस इलाके से गुजरना लोगों के लिए मुश्किल था। लेकिन अब न केवल इससे अहमदाबाद की खूबसूरती बढ़ी है, बल्कि शहर के तापमान में भी कमी आई है।’