निशा शर्मा।

एक लड़की जो भारत ही नहीं दुनिया की सैर करती है, एक ऐसे परिवेश से आती है जहां लड़की होने का मतलब पढ़ाई नहीं सिर्फ निकाह होता है, बच्चे होना और घर परिवार संभालना होता है। वह ऐसे परिवेश में रहकर सपने ही नहीं देखती बल्कि उन सपनो का पीछा करते हुए उन्हें हकीकत में तब्दील भी करती है।

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एक ऐसा मुस्लिम समाज जहां लड़की पढ़ती है, नहीं भी पढ़ती लेकिन रूढ़यों में बंधी जरुर रहती है। वहां यह सोचना बेमानी लगता है कि कोई लड़की अकेली उड़ना चाहती है अपने सपनों के सहारे, दुनिया की सैर करना चाहती है उसे अपने कैमरे में कैद करना चाहती है। कायनात काज़ी इसी माहौल से आती हैं। जो अपनी शादी के लिए और लड़कियों की तरह दहेज नहीं जोड़तीं थी, पेंटिग फ्रेम नहीं करवाती थी बल्कि दुनिया के नक्शे को पढ़ा करती थी। दुनिया के नक्शे फ्रेम करवाकर रखा करती थी। दुनिया के नक्शे पर अपने कदमों के निशान चाहती थी। लोग उसे बेवकूफ कहते थे, लेकिन वह बेवकूफ नहीं थी। वह तो अपने सपनों की वो चादर बुन रही थी जिसको ओड़कर उसे उड़ना था और वह उड़ी भी। आज कायनात काजी एक यायावर (ट्रेवलर) हैं। एक लाख किलोमीटर की यात्रा तय कर चुकी हैं। कायनात बताती हैं कि “जिस सामाजिक व्यवस्था से मैं आती हूं वहां यायावरी सोच से परे की बात है। लेकिन मैंने अपनी इच्छा को मरने नहीं दिया, एक नौकरी की जो मुझे अच्छी नहीं लगी। फिर घर में बताया कि मैं घूमना चाहती हूं, फोटोग्राफी करना चाहती हूं। पहले माता-पिता माने नहीं लेकिन जब माने तो अकेले जाने देने के लिए तैयार नहीं हुए। मुस्लिम कायदे कानून की बातें हुईं। पहला ट्रिप नीमराना का था वो भी परिवार के साथ। पर मुझे समझ आ चुका था कि परिवार के साथ घूमना-फिरना नहीं हो सकता। घूमने का चस्का लग चुका था, खुद को रोक पाना मुश्किल था। फिर परिवार भी समझ गया की मैं जो चाहती हूं वही करूंगी।”

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भारत में यायावरी को पुरुषों से जोड़कर देखा जाता है, और एक लड़की होने के नाते कई कठिनाईयां, कई सवालात जहन में रहते हैं जब आप किसी अनजानी जगह पर जाते हैं। सवाल के जवाब में कायनात कहती हैं कि स्त्रियों को आजादी कभी भी समाज थाली में परोस कर नहीं देगा। आपको उसके लिए संघर्ष करना पड़ता है। वह संघर्ष मैंने किया है, अपने आप पर विश्वास कायम करना पड़ता है जब मैं कहीं जाती हूं तो मैं चौकन्नी रहती हूं इस बात काख्याल रखती हूं कि मेरे आस-पास क्या हो रहा है, किसी अनचाही चीज का आभास होते ही वह जगह छोड़ देती हूं, कोशिश करती हूं कि अंधेरा होने से पहले अपने होटल या जहां ठहरी हूं वहां पहुंच जाऊं। लेकिन लीक से हटकर करने के लिए परिवार का सहयोग भी चाहिए।

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एक लाख किलोमीटर की यात्रा के दौरान आपने ऐसी कोई चीज़ जिससे लगा हो कि डर के आगे जीत है का जवाब कायनात बैखोफ़ होकर देती हैं हालही में मैंने एक कम्यूनिटी ज्वाइन की जिसका नाम है काउचसर्फिंग। जिसके जरिये आप दुनिया में घूम सकते हैं। यहां आप दोस्त बनाते हैं और एक दूसरे को आमंत्रित करते हैं जैसे कि कोई विदेश से भारत आ रहा होगा तो मैं उस कम्यूनिटी में लोगों को आमंत्रित करुंगी कि अगर कोई भारत आए तो वह मेरे घर में रह सकता है। इस कम्यूनिटी का एक फायदा यह है कि आपको रहने के लिए घर मिल जाता है। दूसरा आप उस जगह के आम लोगों के रहन सहन ,खान-पान को करीब से देख सकते हैं। साथ ही आम लोगों के साथ रहकर वहां की संस्कृति को भी बखूबी समझ सकते हैं। हालही में मैंने काउचसर्फिंग के जरिये केरला की यात्रा की जिसमें मैं एक अजनबी के घर ठहरी। लेकिन जैसा कि आपने कहा कि डर। तो मुझे डर जरुर था। देखिये एक औरत होने के नाते आपके साथ क्या हो सकता है, ज्यादा से ज्यादा कोई आपसे शारिरीक संबंध बनाने की कोशिश करेगा और क्या कर सकता है? और यही डर एक औरत होने के नाते हमारे दिमाग में भी होता है। मैंने इसके बारे में सोचा और कंडोम के पैकेट बाजार से खरीदे और अपने सामान में पैक कर लिए। सोचा कि अगर कोई मेरे साथ जबरदस्ती करेगा या मेरे सामान की तोड़-फोड़ करना चाहेगा तो मैं उसे कहूंगी कि तुम मुझे और मेरे सामान को नुकसान मत पहुंचाओ हम सहमति से संबध बना सकते हैं। इसी सोच के साथ में केरल के लिए रवाना हुई। जिसके घर में मुझे ठहरना था वह एक डॉक्टर था वह भी यायावर है। लेकिन जब मैं उसके घर पहुंची तो वह वहां नहीं था। उसके माता और पिता  घर पर थे। मैं उनके साथ वहां रही। उन लोगों ने बहुत आदर- सम्मान दिया और एक बेटी की तरह मुझे मिठाई देकर विदा किया। मेरा केरल और काउचसर्फिंग का अनुभव बहुत बढ़िया रहा। देखो डर कर अगर मैं घर पर बैठ जाऊंगी तो खूबसूरत दुनिया को कैसे देख पाउंगी। यह यात्रा मेरे लिए डर के आगे जीत थी। एक बात साझा जरूर करना चाहूंगी कि विदेशों में बच्चों को उनके माता पिता दो से तीन साल के लिए घूमने भेज देते हैं साथ ही उनके ट्रेवल बैग में कंडोम के पैकेट रखते हैं ताकि वह सेक्स भी सुरक्षित तरीके से करें पर उन्हें घर से बाहर जाने से रोकते नहीं हैं। उन्हें दुनिया घूमने की सलाह देते हैं चाहे वह लड़की हो या लड़का।

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घूमना आपको अंदर से समृद्ध बनाता है, लेकिन घूमने के लिए पैसा भी तो चाहिए इस पर कायनात कहती हैं कि हां पैसा चाहिए लेकिन उतना नहीं जितना आप सोचते हो दुनिया में बहुत ऐसी चीज़ें हैं जिसके जरिये आप घूम सकते हो। दुनिया में कई लोग आपको ठहरने की जगह देते हैं कुछ घंटों के काम के साथ जैसे कंप्यूटर पर किसी को चार घंटे की मदद चाहिए तो वह कम्यूनिटी में डाल देता है कि रहना खाने के साथ पैसा भी मिलेगा दिन में चार घंटे इसी तरह दुनिया घूमना आसान है मुश्किन नहीं।

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मुझे याद है जब में लद्दाख रोड़ ट्रिप से गई थी और लद्दाख पहुंचते ही मैं शांति स्तूप देखने चली गई वहां जितना हम ऊपर जाते हैं उतना ऑक्सीजन की कमी होने लगती है ऐसे में मेरी हार्ट बीट बढ़ने लगी थी मेरा बीपी कम हो गया था और मुझे तुरंत नीचे लाया गया। दो दिन वहां मैंने अस्पताल में बिताए। मेरा इलाज करने वाले डॉक्टर थे मोहम्मद हुसैन। उन्होंने मेरा इलाज ही नहीं किया बल्कि मुझे लद्दाख भी दिखाया। दुनिया अच्छी है, लोग अच्छे हैं बस चन्द लोगों ने औरत के मन में एक खौफ़ पैदा कर रखा है कुछ घटनाओं से।  इस डर को अगर निकाल दो तो औरतें आजाद हैं और यायावर भी।

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