निशा शर्मा।

स्टीफन हॉकिंग को सापेक्षता, ब्लैक होल और बिग बैंग थ्योरी को विस्तृत रूप देने और उसे सरलता से समझाने के लिए याद किया जाता रहेगा। स्टीफन का 76 साल की उम्र में 14 मार्च को कैंब्रिज के अपने घर में निधन हो गया। वैज्ञानिक ही नहीं, जिंदगी की जटिलताओं में भी उन्होंने अपने लिए ऐसे रास्ते निकाल लिए जो लोगों के लिए मिसाल बन गए। महज 21 साल की उम्र में वह न्यूरॉन मोटर नामक एक ऐसी बीमारी के शिकार हो गए जिसका कोई इलाज ही नहीं है। मांसपेशियों से संबधित इस बीमारी के कारण मांसपेशियां धीरे-धीरे इतनी कमजोर हो जाती हैं कि मरीज की उम्र बहुत सीमित हो जाती है। लेकिन, स्टीफन ने अपने जीने की जिद्द और हौसले से इस बीमारी के कारण अपनी उम्र को कम नहीं होने दिया और जिंदगी की जंग बखूबी लड़ते रहे।
डॉक्टरों ने उन्हें उनकी 21 साल की उम्र में ही बता दिया था कि उनके जीवन के मात्र दो से तीन साल बचे हैं। बीमारी के कारण उनके बच्चे भी नहीं हो पाएंगे। लेकिन हॉकिंग ने डॉक्टरों के दावों को झूठला दिया। स्टीफन दो-तीन साल की बजाय 55 साल और (76 साल की उम्र तक) जीवित रहे। उनके तीन बच्चे भी हुए और वह अपने पीछे एक भरापूरा परिवार छोड़कर गए हैं। उनकी इस बीमारी ने उन्हें व्हीलचेयर पर एक तरफ सिर झुकाए और हाथों में खुद को संचालित करती एक मशीन पकड़े रहने की छवि में बांध दिया। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। बीमारी के कारण उनका पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया था। 1985 में गले की सर्जरी के बाद वह स्पीच सिंथेसाइजर के सहारे लोगों से बात करते थे। उनकी व्हीलचेयर के साथ एक खास तरह का कंप्यूटर था जिसके सहारे वह विज्ञान के अनसुलझे रहस्यों का उद्घाटन करते थे। हाकिंग का सिस्टम इनफ्रारेड बलिंक स्विंग से जुड़ा हुआ था, जो उनके चश्मे में लगाया गया था। इसी के माध्यम से वह बोलते थे। इसके अलावा उनके घर, आॅफिस के गेट, रेडियो, ट्रांसफॉरमेशन से जुड़े हुए थे।
स्टीफन हाकिंग छात्रों को लेक्चर देते वक्त अक्सर एक बात कहते थे कि ‘ऊपर सितारों की तरफ देखो अपने पैरों के नीचे नहीं। जो देखते हो उसका मतलब जानने की कोशिश करो और आश्चर्य करो की क्या है, जो ब्रह्मांड का अस्तित्व बनाए हुए है। उत्सुक रहो।
भौतिकी और ब्रह्मांड की ज्यामिति की समझ में योगदान के लिए उनको बहुत प्रभावशाली, कभी-कभी क्रांतिकारी माना गया। उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया, जिसमें अल्बर्ट आइंस्टीन पुरस्कार (1978), वॉल्फ प्राइज (1988), प्रिंस आॅफ आॅस्टुरियस अवार्ड (1989), कोप्ले मेडल (2006), प्रेसिडेंशियल मेडल आॅफ फ्रीडम (2009), विशिष्ट मूलभूत भौतिकी पुरस्कार (2012)। फिर भी नोबल पुरस्कार से सम्मानित न किए जाने का उन्हें कभी दुख नहीं रहा, क्योंकि पुरस्कारों से ज्यादा लोग उनके अविष्कारों के दीवाने थे।
एक बार स्टीफन हाकिंग ने कहा था- ‘मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्मांड को समझने में अपनी भूमिका निभाई। इसके रहस्य लोगों के लिए खोले और इस पर किए गए शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है।’
हाकिंग का जन्म 1942 में 8 जनवरी को इंग्लैंड के आॅक्सफोर्ड में हुआ था। उनकी पृष्ठभूमि अकादमिक थी, हालांकि सीधे तौर पर भौतिकी या गणित से नहीं थी। उनके पिता फ्रैंक, उष्णकटिबंधीय बीमारियों के एक विशेषज्ञ थे और उनकी मां, इसोबेल (नी वॉकर), एक स्वतंत्र-सोच की कट्टरपंथी थीं, जिन्होंने उन पर काफी प्रभाव डाला था। यूनिवर्सिटी कॉलेज, आॅक्सफोर्ड में पढ़ते समय उन्होंने भौतिकी में एक छात्रवृत्ति भी जीती थी। पढ़ने में वह हमेशा बेहतर रहे लेकिन पढ़ाई के तौर पर उन्हें वो सराहना कभी नहीं मिली जो उन्हें मिलनी चाहिए थी।
साल 1988 में उनकी किताब ए ब्रीफ हिस्ट्री आॅफ टाइम आई जिसकी एक करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिकीं। किताब का 40 भाषाओं में अनुवाद हुआ। इस पुस्तक में बिग बैंग सिद्धांत, ब्लैक होल, प्रकाश शंकु और ब्रह्मांड के विकास के बारे में नई खोजों का दावा किया गया था। 1988 में प्रकाशित इस किताब ने स्टीफन हॉकिंग को रातोंरात विज्ञान की दुनिया का सितारा बना दिया। संडे टाइम्स की बेस्टसेलर सूची में यह किताब 237 सप्ताह तक बनी रही और गिनीज बुक में इसका नाम दर्ज हुआ।
भौतिकी की दुनिया में आइंस्टाइन के बाद यह एक बड़ा तहलका था जिसकी गूंज आने वाले लंबे समय तक बनी रहने वाली थी। 21वीं सदी के दो दशक पूरे होने वाले हैं। और अभी यह जादू कायम है। 1993 में उनकी दूसरी किताब ‘ब्लैक होल्स एंड बेबी यूनिवर्सेस एंड अदर एसेस’ प्रकाशित हुई। इसी किताब में हॉकिंग ने ब्रह्मांड से जुड़े अपने अध्ययनों को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया और इसी में वह लेख भी है जिसमें हॉकिंग ने आइंस्टाइन की दुविधाओं पर अंगुली रखी। 2001 में आई उनकी किताब ‘द यूनिवर्स इन अ नटशैल’ ने पहली किताब की तरह प्रकाशन जगत में धूम मचाई।
ब्लैक होल के बारे में वैज्ञानिक मान्यता रही है कि प्रकाश तक उसमें जाकर डूब जाता है। लेकिन हॉकिंग का कहना था कि ब्लैक होल से भी बाहर कोई रास्ता जरूर निकलता होगा। 1970 के दशक में उन्होंने ब्लैक होल पर काम शुरू किया। हाकिंग ने स्मॉल ब्लैक होल का सिद्धांत दिया। इन्होंने बताया कि ब्लैक होल का आकार बढ़ सकता है कभी घट नहीं सकता। बलैक होल को छोटे ब्लैक होल में विभाजित नहीं किया जा सकता। दो ब्लैक होल के टकराने पर भी ऐसा नहीं होता। उन्होंने आधुनिक भौतिक विज्ञान, ब्रह्मांड विज्ञान के अलावा, गुरुत्वाकर्षण, क्वांटम थ्योरी, सूचना सिद्धांत और थमोर्डायनमिक्स पर भी काम किया। इसके अलावा उन्होंने करोड़ों लोगों को विज्ञान पढ़ने के लिए प्रेरित किया।
1974 में महज 32 साल की उम्र में वह ब्रिटेन की प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी के सबसे कम उम्र के सदस्य बने। पांच साल बाद ही वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर बन गए। यह वही पद था जिस पर कभी महान वैज्ञानिक आइनस्टीन नियुक्त रहे। हॉकिंग कई विवादों का हिस्सा भी रहे। उन्होंने स्वर्ग की परिकल्पना को सिरे से खारिज करते हुए इसे अंधेरे से डरने वालों की कहानी करार दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें मौत से डर नहीं लगता बल्कि इससे जीवन का और अधिक आनंद लेने की प्रेरणा मिलती है। हॉकिंग ने ये भी कहा है कि हमारा दिमाग एक कम्प्यूटर की तरह है। जब इसके पुर्जे खराब हो जाएंगे तो यह काम करना बंद कर देगा। खराब हो चुके कंप्यूटरों के लिए स्वर्ग और उसके बाद का जीवन नहीं है। स्वर्ग केवल अंधेरे से डरने वालों के लिए बनाई गई कहानी है। अपनी नई किताब द ग्रैंड डिजायन में प्रोफेसर हॉकिंग ने कहा है कि ब्रह्मांड खुद ही बना है। यह बताने के लिए विज्ञान को किसी दैवी शक्ति की जरूरत नहीं है। हॉकिंग ने पर्यावरण की दुर्दशा पर तीखी टिप्पणियां की थीं और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से दुनिया को आगाह किया था कि 200 साल तक यही हाल रहा तो एक दिन दुनिया खत्म हो जाएगी।
हाकिंग खिलंदड़ और मस्तमौला वैज्ञानिक थे। आइंस्टाइन की ही तरह पश्चिमी शास्त्रीय संगीत पर हॉकिंग की असाधारण पकड़ थी। संगीतकार मोत्जार्ट उनके प्रिय थे। वह अक्सर इस बात को दोहराते थे कि अगर उनके पास टाइम मशीन होती तो वह हॉलीवुड की सबसे खूबसूरत अदाकारा मानी जाने वाली मार्लिन मोनरो से मिलने जाते। हालांकि महिलाओं को वह हमेशा पहेली की नजर से ही देखते थे। 1974 में हॉकिंग ने भाषा की छात्रा और अपनी प्रेमिका जेन विल्डे से शादी की। दोनों के तीन बच्चे हुए लेकिन 1999 में तलाक भी हो गया। इसके बाद हॉकिंग ने दूसरी शादी की। एक बार जब इंटरव्यू में उनसे पूर्ण रहस्य के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि महिलाएं अभी भी पूर्ण रहस्य ही हैं।
ब्रहमांड के कई रहस्यों से पर्दा उठाने वाले हॉकिंग ने अपनी जिंदगी में खूब वाह वाही बटोरी और अपनी हर ख्वाहिश को पूरा भी किया। उनकी तुलना हमेशा आइंस्टीन से होती रही। भगवान को न मानने वाले इस वैज्ञानिक के लिए ये भी एक करिश्मा ही था कि जब दुनिया उनके निकट पूर्वज और महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन की जयंती मना रही थी, हॉकिंग ने इस दुनिया से विदा ले लिया।