डॉ. संतोष मानव

मामा यानी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राजा से ठन गई है। कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को लोग दिग्गी राजा या राजा साहब भी कहते हैं। इस तनातनी का मूल कारण है व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम घोटाले को जोरदार तरीके से उठाना। दिग्विजय सिंह व्यापम घोटाला को उठाने में आगे रहे हैं। मुख्यमंत्री पर सर्वाधिक तीखा प्रहार उनका ही रहा है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने बीस साल पहले यानी दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते विधानसभा में कथित तौर पर 17 अवैध नियुक्तियों के गड़े मुर्दे उखाड़कर राजा को ही घेर लिया। अब शिवराज चैन से हैं और दिग्विजय कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं। सिंह 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

व्यापम के जरिए नियुक्तियों-परीक्षाओं में घोटाले का मामला दिग्विजय सिंह संसद, प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट तक ले गए। सड़क पर भी लड़ाई लड़ी। कहा कि घोटाले में मुख्यमंत्री तक शामिल हैं। बीच-बीच में कथित तौर पर इसके प्रमाण भी मीडिया, स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम और कोर्ट को सौंपते रहे। बीच में तो ऐसा लगा कि दिग्विजय सिंह ने पूरे प्रदेश में शिवराज, भाजपा के खिलाफ माहौल बना दिया है। टूटी कांग्रेस खड़ी हो गई है। लेकिन यह भ्रम साबित हुआ।

दिग्गी की प्रमुख मांग मामले की जांच सीबीआई से कराने की थी। उनकी यह मांग पूरी हो गई। लेकिन जैसे ही मामला सीबीआई के पास गया, कांग्रेस का आंदोलन कमजोर पड़ गया। एक तरह से उनका मुद्दा ही छिन गया। अब कांग्रेस चुप है। मामला दब गया है। घोटाले के आरोप में जेल गए आरोपी जमानत पर बाहर आ रहे हैं। जेल में महीनों रहे पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा भी अब आजाद हैं। लेकिन दिग्विजय सिंह ही फंस गए। कहें कि भाजपा या शिवराज सिंह ने उन्हें ही फंसा दिया। जेल जाते-जाते बचे दिग्गी ने कहा भी कि शिवराज सिंह ने गलत नंबर डायल कर दिया है। इस एक पंक्ति से ही संदेश गया कि दोनों के बीच कड़वाहट किस कदर बढ़ गई है।

पिछले साल जब दिग्विजय सिंह जोर-शोर से व्यापम-व्यापम कर रहे थे, उन्हीं दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री और श्रीनिवास तिवारी के विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए 1993 से 2003 के बीच विधानसभा में गलत नियुक्तियां हुई हैं। लगे हाथ पुलिस में मामला दर्ज करा दिया गया और सीएसपी स्तर के एक अधिकारी को जांच सौंप दी गई। इस 26 फरवरी को पुलिस ने कोर्ट में चालान भी पेश कर दिया। इसी दिन आठ आरोपियों को कोर्ट में पेश होना था। सात आरोपियों ने कोर्ट में जमानत अर्जी पेश की। उन्हें 30 हजार रुपए की जमानतdiggi पर छोड़ दिया गया। दिग्गी हाजिर नहीं हुए तो न्यायाधीश काशीनाथ सिंह ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। कहा कि नोटिस तामिल होने के बाद भी वे हाजिर नहीं हुए। उनके वकील अजय गुप्ता कि यह दलील काम नहीं आई कि वे पहले से तय कार्यक्रम के तहत पार्टी के दलित महाकुंभ में हैं।

दिग्गी के जेल जाने की नौबत आ गई थी। कहा गया कि वे जमानत नहीं लेंगे, जेल जाना पसंद करेंगे। लेकिन अगले दिन सैकड़ों नेताओं की फौज और चालीस से ज्यादा गाड़ियों के काफिले के साथ वे अदालत पहुंचे। वे चार घंटे अदालत में रहे। उनके साथ पूरे समय पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचैरी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, वकील विवेक तन्खा व पार्टी के सैंकड़ों नेता कोर्ट परिसर में डटे रहे। अंतत: कोर्ट ने 30 हजार की जमानत लेकर उन्हें छोड़ा।

जमानत के बाद दिग्गी प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचे और शिवराज पर जमकर बरसे। दिग्विजय सिंह ने कहा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। पैसा लेकर नियुक्तियां नहीं कीं, जैसा व्यापम में हुआ। हां, कुछ गरीबों की मदद जरूर की है। जो भी किया कैबिनेट की अनुशंसा पर किया। ऐसे में कोई मामला नहीं बनता। अब 20 साल बाद व्यापम घोटाला उठाने के कारण बदले की भावना से उन्हें फंसाया जा रहा है। लगे हाथ यह भी कह दिया कि शिवराज ने गलत नंबर डायल कर दिया है। वह डरने वाले नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है कि कैबिनेट के फैसलों की जांच सीएसपी स्तर का एक अधिकारी कर रहा है।

दरअसल, दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री व श्रीनिवास तिवारी के विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए विधानसभा में अवैध नियुक्तियों का मामला पहले भी उठता रहा है। लेकिन, तब यह मुद्दा चला नहीं। उस समय सरकार के एक उप सचिव एडी राजपाल ने कोर्ट में शपथपत्र देकर कहा था कि इसमें कोई मामला नहीं बनता। विधि विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव पीपी तिवारी ने भी कहा था कि यह प्रकरण जांच योग्य नहीं है। पर इस बार राजा फंस गए या कहें कि फांस लिए गए। कोर्ट में मामला होने के कारण कांग्रेस ज्यादा बोल भी नहीं पाई और व्यापम पर उसकी आवाज भी धीमी हो गई। अब लोग कह रहे हैं कि राजा पर मामा यहां भी भारी साबित हुए।

फरवरी माह के आखिरी दिन दिग्गी का मामला विधानसभा में भी उठा। विधायक सुंदरलाल तिवारी ने कहा कि सरकार पूर्व मुख्यमंत्री को फंसा रही है। जवाब में मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि आप जज नहीं हैं कि फैसला सुनाएं। प्रदेश कांगे्रस के अध्यक्ष अरुण यादव ने ओपिनियन पोस्ट से कहा, ‘शिवराज सरकार कांग्रेस के बड़े नेताओं की छवि धूमिल करने में जुटी है। लेकिन कोटर्कि में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। कांग्रेस के विचार विभाग के प्रमुख भूपेंद्र गुप्ता ने कहा कि शिवराज सिंह की नोटशीट पर भी नियुक्तियां हुई हैं, हिम्मत है तो भाजपा उसकी भी जांच करा ले।

बहरहाल, दिग्गी फंस चुके हैं और शिवराज चैन की बंसी बजा रहे हैं। व्यापम का शोर भी थम गया है। सीबीआई मामले की जांच कर रही है, लेकिन कोई नई गिरफ्तारी नहीं हुई है। जो जेल में बंद थे, धीरे-धीरे आजाद हो रहे हैं। एक बड़ा घोटाला शांति से उस अंजाम की ओर जा रहा है, जहां राज्य-देश के दूसरे घोटाले जाते रहे हैं। इधर, पूरी कांग्रेस दिग्विजय सिंह के साथ है। वे भी जो कल तक दिग्विजय सिंह को देखना भी पसंद नहीं करते थे। कांग्रेसियों के पास एक ही पंक्ति है- सरकार हमारे नेता को फंसा रही है। मामला दर्ज होने तक भाजपा के लोग मुखर थे, अब वे कहते हैं कि मामला कोर्ट में है इसलिए कुछ नहीं बोलेंगे। भाजपा के प्रवक्ता शैलेंद्र प्रधान ने कहा कि हम किसी को फंसा नहीं रहे। शायद! पर विधानसभा हो या व्यापम का सच… सच शायद ही सामने आए!