गुलाम चिश्ती

अखिल बोडोलैंड अल्पसंख्यक छात्र संघ (एबीएमएसयू) के अध्यक्ष लफिकुल इस्लाम अहमद के कई ओर से निशाने पर होने की वजह से उनकी हत्या का राज नहीं खुल रहा है।

अखिल बोडोलैंड अल्पसंख्यक छात्र संघ (एबीएमएसयू) के अध्यक्ष लफिकुल इस्लाम अहमद की हत्या किसने और क्यों की, इसकी गुत्थी फिलहाल सुलझती नहीं दिखती। वैसे इस सिलसिले में चार लोगों की गिरफ्तारी हुई है, परंतु पुलिस विश्वास के साथ नहीं कह रही कि इसके पीछे ये चार ही हैं। सोनोवाल सरकार ने मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने के लिए पत्र प्रेषित करने की बातें कही हैं, वहीं राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) को सीबीआई की विश्वसनीयता पर संदेह है। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख प्रद्युत बरदलै का कहना है कि सीबीआई आज कल मोदी और शाह के हाथों का राजनीतिक हथियार है। ऐसे में पार्टी ने मांग की कि यदि मामले की जांच सीबीआई करती है तो गौहाटी हाईकोर्ट जांच प्रक्रिया की निगरानी करे।

मुख्य विपक्षी का मानना है कि यदि हाईकोर्ट सीबीआई जांच की निगरानी करती है तो पीड़ित परिवार को पूरी तरह न्याय मिलेगा, जो उनकी इच्छा है। कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के प्रमुख अखिल गोगोई का कहना है कि राज्य सरकार की ओर से जांच प्रक्रिया सीबीआई को सौंपने के लिए जो प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए, वह अभी तक शुरू नहीं हुई है। अखिल ने आशंका व्यक्त की कि यह राजनीतिक हत्या है। इसलिए राज्य सरकार मामले की जांच के लिए ईमानदारी से पहल नहीं कर रही है। उल्लेखनीय है कि बोडो स्वायत्तशासी परिषद (बीटीसी) प्रमुख हग्रामा महिलारी लफिकुल की हत्या से सबसे ज्यादा चिंतित लगते हैं। इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल से मुलाकात की थी और मामले की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की थी। इस पर मुख्यमंत्री ने मामले की सीबीआई जांच के लिए पत्र प्रेषित करने का वादा किया और कहा कि इस मामले में दोषी पाए गए किसी भी व्यक्ति को छोड़ा नहीं जाएगा।

बता दें कि लफिकुल ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीपीएफ उम्मीदवार चंदन ब्रह्म का समर्थन नहीं किया था, उसने उस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार और पूर्व उल्फा कमांडर नव शरणिया उर्फ हीरा शरणिया का समर्थन किया। परिणामत: गैर बोडो मतदाता हीरा शरणिया के पक्ष में इकट्ठे हो गए और शरणिया छह लाख से ज्यादा मतों से जीत गए। वर्ष 2012 में बोडोलैंड इलाके में बोडो और अल्पसंख्यक समुदाय में सांप्रदायिक दंगे हुए थे और उसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। उस समय लफिकुल और हग्रामा के बीच संबंध सामान्य नहीं थे। परिणामत: 2014 के चुनाव में एबीएमएसयू ने हग्रामा के उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार किया। ऐसे हग्रामा की पार्टी बोडोलैंड की एकमात्र लोकसभा सीट भी बचाने में कामयाब नहीं हुई। याद रहे कि चुनाव के बीतते ही बोडो आतंकी संगठनों ने मुसलमानों पर हमला किया और कई को मौत के घाट उतार दिया, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल थे। आतंकियों ने यह हमला चुनाव परिणाम के आने से पूर्व किया था। चुनाव परिणाम हीरा शरणिया के पक्ष में रहा और वे छह लाख से भी अधिक मतों से जीतने में कामयाब रहे। कहते हैं कि उक्त चुनाव में लफिकुल ने शरणिया के पक्ष में जमकर चुनाव प्रचार किया था और उन्हें जिताने में अहम भूमिका निभाई थी अब लफिकुल का झुकाव हग्रामा की ओर था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भले ही कोकराझाड़ संसदीय सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है, परंतु वहां गैर जनजाति मतदाताओं की संख्या 70 प्रतिशत से अधिक है, उनमें अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है, लफिकुल जिनका सर्वमान्य नेता था। ऐसे में माना जा रहा है कि लफिकुल की हत्या के पीछे वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव भी हो सकता है, जिसकी तैयारी राजनीतिक पार्टियां अभी से करने लगी हैं।

माना जा रहा है कि लफिकुल गाय की तस्करी रोकने के प्रति काफी मुखर था, परंतु इस मामले में कोकराझाड़ पुलिस पर आरोप है कि वह गाय तस्करों से मिलकर अच्छी खासी आमदनी कर रही थी। ऐसे में लफिकुल गाय तस्कर और पुलिस दोनों के निशाने पर था। इस संबंध में प्रद्युत बरदलै का कहना है कि हत्याकांड के लिए वास्तव में कौन जिम्मेवार, फिलहाल किसी को मालूम नहीं है, परंतु इस मामले में कोकराझाड़ पुलिस के एसपी राजेन सिंह और उनके सहायक अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है। एसपी राजेन सिंह का राज्य सरकार के शक्तिशाली मंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा से करीबी का संबंध है, इस बारे में सभी जानते हैं। ऐसे में अब तक राज्य सरकार की ओर से कोकराझाड़ पुलिस के खिलाफ जो कार्रवाई की गई है, उससे स्पष्ट होता है कि सरकार उन्हें बच निकलने का मौका दे रही है।