उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है. बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि विधानसभा में फिलहाल फ्लोर टेस्ट नहीं होगा. अब तीन मई को मामले की अगली सुनवाई होगी।

उत्तराखंड के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे कुछ सवाल-

– क्या राज्यपाल ने आर्टिकल ने 175 (2) के तहत जिस तरीके से फ्लोर टेस्ट का मैसेज किया, इस तरीके से संदेश भेज सकता है?
– विधायकों की सदस्यता रद्द करने का स्पीकर का फैसला क्या राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार बनता है?
– क्या राष्ट्रपति विधानसभा की कार्यवाही का संज्ञान आर्टिकल 356 के तहत ले सकता है?
– विनियोग विधेयक का क्या स्तर रहा, वो पास रहा या फेल हुआ, राष्ट्रपति का इस मामले में क्या रोल है?
– फ्लोर टेस्ट में देरी होना क्या राष्ट्रपति शासन का आधार बनता है?
– लोकतंत्र कुछ स्थायी मान्यताओं पर आधारित होता है, उसके अस्थिर होने का मानक क्या हैं? ये बताया जाए?

अब माना जा रहा है कि इन सारे सवालों के जवाब के लिए मामला संविधान पीठ को भेजा जा सकता है।
पिछली सुनवाई में केंद्र की अर्ज़ी पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल तक उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के राष्ट्रपति शासन हटाने के फ़ैसले पर आज तक की रोक लगाई थी और हाईकोर्ट को लिखित आदेश देने के निर्देश दिए थे।

संसद में रहा इस मुद्दे पर हंगामा जारी रहा। उत्तराखंड को लेकर चल रहे हंगामे में राज्यसभा 2 बजे तक के लिए स्थगित करनी पड़ी। उत्तराखंड में केंद्र की भूमिका की आलोचना का जवाब देते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में जो हुआ, वैसा कभी नहीं हुआ। अरुण जेटली ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में प्रेजाइडिंग ऑफिसर ने अल्पमत को बहुमत में बदल डाला। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। जेटली ने यह भी कहा कि इस मामले में चर्चा होगी लेकिन तब होगी जब उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन का मामला सदन के सामने आएगा।