प्रियदर्शी रंजन ।

बिहार की एक छोटी सी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) में आजकल बड़ा घमासान मचा हुआ है। इस पार्टी के पास 243 विधायकों वाली विधानसभा में दो विधायक हैं और लोकसभा में तीन सांसद। इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष केंद्र की एनडीए सरकार में राज्य मंत्री हैं। हाल के दिनों में अचानक मंत्री जी के पास भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फोन आता है कि मंत्री जी अपनी पार्टी का विवाद सुलझाइए और आपस में लड़ने की बजाय महागठबंधन की सरकार को उखाड़ फेंकने में जोर लगाइए। इसी के बाद यह 40 महीना पुरानी पार्टी अचानक राष्ट्रीय न्यूज चैनलों और प्रादेशिक अखबारों की सुर्खियों में आ जाती है। और फिर सामने आती है पार्टी की आंतरिक कलह।

दरअसल, जून के अंतिम दिनों में पार्टी के बिहार प्रदेश किसान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विजय कुशवाहा ने अपनी ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्र में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को एक पत्र लिखा, जिसमें मंत्री साहब के खिलाफ यह शिकायत की गई कि वे हवाला कारोबारियों के पैसे पर विदेश यात्रा कर रहे हैं। उससे नरेंद्र मोदी सरकार की छवि धूमिल हो रही है। पत्र में कुशवाहा को मंत्रिमंडल से बाहर करने की भी बात की गई। उपेंद्र कुशवाहा ने इस पत्र को अपनी ही पार्टी के सांसद और बिहार के प्रदेश अध्यक्ष की साजिश करार दिया। यहीं से शुरू हुआ राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष के बीच एक-दूसरे को नंगा करने का खेल।

राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने ही प्रदेश अध्यक्ष को दिल्ली में कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाकर बर्खास्त कर दिया। उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष व जहानाबाद से सांसद डॉ. अरुण कुमार का तेवर और तल्ख हुआ। आलम यह है कि इस छोटी सी पार्टी में यह समझना मुश्किल है कि पार्टी में बर्खास्त प्रदेश अध्यक्ष अरुण कुमार का कद बड़ा है या मंत्री उपेंद्र कुशवाहा का। बर्खास्त होने के बाद भी बड़ी संख्या में संगठन के लोग अरुण कुमार के साथ खड़े प्रतीत हो रहे हैं। उसकी बानगी रालोसपा के ही बैनर तले राजधानी पटना के पंचायत भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में देखने को मिला, जहां मुख्य रूप से अरुण कुमार उपस्थित थे। कार्यक्रम में पार्टी प्रदेश संगठन के नामचीन लोगों के साथ राष्ट्रीय कमेटी से शिव कुमार और राज कुमार सिंह ने भी भाग लिया। कार्यक्रम में अरुण ने अपनी ताकत का अहसास विधायक ललन पासवान के माध्यम से कराया। ललन पासवान की मौजूदगी उपेंद्र कुशवाहा को यह संकेत दिया जा रहा था कि संगठन के साथ माननीयों में अरुण कुमार बराबर की हैसियत बनाए हुए हैं। हालांकि जब ललन पासवान से इस बाबत ओपिनियन पोस्ट ने पूछा तो उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा से बातचीत कर समझौता करने की सलाह दी। ललन पासवान के मुताबिक दोनों सुलझे नेता हैं। इस विवाद का हल भी बातचीत से ही संभव है। दोनों कद्दावर नेताओं को एक बार वार्ता करनी चाहिए।

arun kumar

ललन पासवान की बातों से जाहिर है कि दोनों कद्दावर नेता हैं और लड़ाई भी कद की ही है। उपेंद्र कुशवाहा गुट के पार्टी प्रवक्ता अभयानंद सुमन के मुताबिक अरुण कुमार ने पार्टी के भीतर राष्ट्रीय अध्यक्ष का कद कम करने का भरसक प्रयास किया, जिसका नमूना अवर अभियंता भवन में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष द्वारा आयोजित जॉर्ज फर्नांडिस के जन्म दिवस के कार्यक्रम में देखने को मिला था। जॉर्ज के जन्मोत्सव के बहाने अरुण कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के विरोधियों को जुटाया। खासकर वैसे लोागों को जो कुशवाहा जाति से आते हों और उपेंद्र कुशवाहा के विरोधी भी थे। कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए असंसदीय भाषा का भी प्रयोग हुआ। वहीं पार्टी के पूर्व प्रवक्ता मनोज लाल दास मनु की मानें तो उपेंद्र कुशवाहा ने केंद्र में मंत्री बनने के बाद खुद को पार्टी का आलाकमान मान लिया। जबकि अरुण कुमार जहानाबाद से दूसरी बार सांसद बने हैं और प्रदेश की राजनीति में उनका कद और नाम बड़ा है। लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते केंद्रीय मंत्रिमंडल में उपेंद्र कुशवाहा को जगह मिली और अरुण कुमार देखते रह गए। केंद्र में मंत्री बनने के बाद उपेंद्र कुशवाहा को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ देना चाहिए था।

दरअसल, इस विवाद का मवाद विधानसभा चुनाव के वक्त से भर रहा था। पार्टी सूत्रों की मानें तो अरुण कुमार अपने चहेतों को टिकट दिलाने में कमजोर साबित हुए थे। महत्वकांक्षी अरुण के लिए यह घुटन का दौर शुरू हो गया था। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि विधानसभा चुनाव के वक्त भाजपा से चुनाव लड़ने के लिए जो पैसा पार्टी को मिला उसका 80 प्रतिशत हिस्सा उपेंद्र कुशवाहा ने अपने पास रख लिया था। अरुण कुमार ने इसकी शिकायत भाजपा के केंद्रीय आलाकमान अमित शाह से भी की थी। इसी बीच विधानसभा चुनाव के दौरान सामाजिक जानकारों ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा अपनी जाति के वोट बैंक को एनडीए में ट्रांसफर कराने में नाकाम रहे। अरुण को अपने ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के खिलाफ एक और हथियार मिल गया। दरअसल उपेंद्र कुशवाहा और अरुण कुमार दोनों ने सोची समझी रणनीति के तहत रालोसपा का गठन किया था। इस पार्टी में अघोषित तौर पर जनाधार जोड़ने की जिम्मेदारी कुशवाहा के कंधों पर और संगठन खड़ा करने की जिम्मेदारी अरुण कुमार की थी। विधानसभा चुनाव में उपेंद्र अपने मिशन में नाकाम रहे और चुनाव के बाद संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत करने की फिराक में लग गए। कलह की महत्वपूर्ण वजहों में एक वजह यह भी है। अरुण कुमार गुट अक्सर उपेंद्र कुशवाहा गुट को यह अहसास कराता रहा कि भाजपा से उनके मुकाबले अरुण ज्यादा करीब हैं। अगर तुम यहां कमजोर करोगे तो दिल्ली में मंत्री जी को परेशानी होगी। यह स्थिति उपेंद्र के लिए घुटन पैदा कर रही थी। नए लोग और नए पंूजीपति मंत्री कुशवाहा की संगति ज्यादा करने लगे। चोरी-चोरी ही संगठन में सांप-सीढ़ी की लड़ाई उपेंद्र और अरुण के बीच जम कर हुई। संगठन में धाक जमाने की फिराक में उपेंद्र ने अरुण गुट के लोगों को दरकिनार किया। प्रदेश अध्यक्ष की पसंद के बावजूद कई लोगों को संगठन में जगह नहीं मिली। जिन्हें जगह मिली भी तो उनका कद कम करने का भरसक प्रयास केंद्रीय अध्यक्ष ने किया। पार्टी के युवा नेता सुशांत सिंह के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष ने अपने पद की हैसियत से प्रदेश कार्यालय का प्रभारी सुरेंद्र गोप को बनाया था। वहीं केंद्रीय अध्यक्ष ने एक कार्यालय प्रभारी के रहते हुए अपने करीबी सत्यानंद दांगी को उसी पद पर आसीन करा दिया। कुछ ऐसा ही माामला तब भी हुआ जब प्रदेश अध्यक्ष की सहमति के बगैर प्रदेश युवा अध्यक्ष पद पर हिमांशु पटेल को नियुक्त कर दिया। जबकि प्रदेश अध्यक्ष ने मनोज लाल दास को प्रवक्ता बनाया तो केंद्रीय अनुशासन समिति के अध्यक्ष राम कुमार वर्मा ने उन्हें निलंबित कर दिया।

abhyanand sumanपार्टी के पूर्व प्रवक्ता मनोज लाल दास के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष ने संगठन की सभी इकाइयों को भंग कर दिया था। मगर राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मनमानी करते हुए युवा प्रकोष्ठ का अध्यक्ष हिमांशु पटेल को घोषित कर दिया, जो प्रदेश अध्यक्ष के अधिकार का हनन था। उसके बाद आनन-फानन में प्रदेश अध्यक्ष ने भी आठ प्रकोष्ठों का प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत कर दिया। उसमें कुछ ऐसे भी नाम थे जिन्हें उपेंद्र कुशवाहा नापसंद करते थे। हालांकि नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक फाउंडर मेंबर ने बताया कि कुशवाहा और कुमार दोनों ने अपने लोगों को छला है। संगठन में दानों ने निष्ठावान कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर चाटुकारों को जगह दी। विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों ने कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर अधिक से अधिक धनाड्यों को चुनाव टिकट दिलाने का प्रयास किया। अब दोनों एक-दूसरे को औकात बता कर अपने को पार्टी का आका मनवाने की कोशिश कर रहे हैं। अरुण कुमार की ताकत संगठन है, जहां वह मजबूती से खड़े हैं। वहीं विधानसभा चुनाव में कुशवाहा वोट को ट्रांसफर कराने में नाकामयाब रह उपेंद्र कुशवाहा अपने घटे कद को पार्टी संगठन पर पकड़ मजबूत कर पुन: हासिल करना चाहते हैं। शायद ही अब अरुण कुमार की प्रदेश अध्यक्ष पद पर वापसी संभव हो सकेगी। कुशवाहा अपने किसी चहते को इस कुर्सी पर बिठा कर वही संदेश देना चाहते हैं जो लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे नेता अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के माध्यम से देते आए हैं। होइ हैं सोइ जो आका रचि राखा। और रालोसपा में आका उपेंद्र कुशवाहा ही होंगे।

अरुण कुमार ने मंत्री पर हवाला कारोबारियों के पैसे पर विदेश घूमने के आरोप तो लगाए ही, उपेंद्र कुशवाहा पर हमलवार भी हो गए। कहा कि पार्टी अध्यक्ष साफ करें कि राहुल गांधी का पीए बताकर कोल ब्लॉक के आवंटन की पैरवी करने वाले प्रदीप मिश्रा के साथ उनके कैसे संबंध हैं। सीमा कौन हैं? वे किसके साथ विदेश यात्रा पर गए थे।

कुशवाहा पर गंभीर आरोप
उपेंद्र कुशवाहा पर पार्टी के भीतर ही लोगों ने गंभीर आरोप लगाया है, जिससे रालोसपा के साथ एनडीए का सबसे बड़ा घटक दल भाजपा भी सकते में है। आरोपों में कहा गया है कि एक ओर भाजपा काला धन विदेश से लाने की मुहिम में जुटी है तो दूसरी ओर उसकी सरकार के मंत्री पर हवाला कारोबारी के पैसे पर विदेश यात्रा कर रहे हैं। मंत्री कुशवाहा पर आरोप लगाने वाले सांसद अरुण कुमार के मुताबिक पिछले साल जब एनडीए घटक दलों के बीच सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत चल रही थी तो उपेंद्र कुशवाहा सपरिवार प्रदीप मिश्रा के साथ विदेश यात्रा कर रहे थे। ये वही प्रदीप मिश्रा हैं जिन पर 2013 में राहुल गांधी का पीए बनकर कोल आवंटन में पैरवी करने का आरोप लगा था। बकौल अरुण कुमार, चारा घोटाला के अभियुक्त डॉ. दीपक को झारखंड रालोसपा का प्रदेश अध्यक्ष भी प्रदीप मिश्रा की पसंद के आधार पर बनाया गया था। इतना ही नहीं, बिहार चुनाव के समय प्रदीप मिश्रा उपेंद्र कुशवाहा के साथ हेलीकॉप्टर से चुनाव प्रचार में भी शामिल रहे जबकि न तो वह पार्टी के सदस्य थे और न ही उनका एनडीए के किसी घटक दल के साथ संबंध था। अरुण कुमार ने कुशवाहा के एपीएस पर भी सवाल किया है। उनके मुताबिक, शशि शंकर बनकर राजेश यादव एक तरफ मंत्री के एपीएस का काम कर कर रहे हैं तो दूसरी ओर राजेश यादव के नाम से रालोसपा के कोषाध्यक्ष भी बने हैं। एक महिला सीमा के साथ कुशवाहा के संबंध पर भी सवाल खड़ा किया है। अरुण कुमार ने अपने इन सभी आरापों की जांच कराने की चुनौती कुशवाहा को दी है। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा ने प्रदीप मिश्रा के साथ विदेश जाने की बात स्वीकार की है, मगर विदेश यात्रा को जायज ठहराने को अरुण और उनके गुट की सामंती सोच बताया है। उपेंद्र कुशवाहा के मुताबिक उन्होंने प्रदीप मिश्रा के साथ विदेश यात्रा की है और उसमें कोई गुनाह नजर नहीं आता। 