ब्रह्माकुमारी शिवानी

अक्सर हम कहते हैं कि परिस्थिति ही अच्छी नहीं थी तो हम अच्छा कैसे सोच सकते थे? तो हमने क्या कर दिया। हमने अपनी सोच को परिस्थिति पर आधारित कर दिया है। ऐसा करें आप अपने बाएं हाथ पर अपने जीवन की कोई परिस्थिति रखें स्वास्थ्य, परीक्षा या कोई रिलेशनशिप या आॅफिस का कोई कॉन्फिलिक्ट… और दाहिने हाथ पर रखते हैं अपने मन की स्थिति। तो बाएं हाथ में परिस्थिति और दाएं हाथ में मेरी स्व की स्थिति या मन की स्थिति। इन दोनों का कोई कनेक्शन है। मान लीजिए यहां बैठा ये भइया मेरे जीवन की परिस्थिति है। ये जो चलता, उठता, बैठता है वह मेरे लिए बहुत डिस्टर्बिंग है। तो ये डिस्टर्बंेस किसने क्रिएट किया। जैसे बाएं हाथ में परिस्थिति और दाएं हाथ में मन की स्थिति। तो बाएं हाथ पर इन भइया को रख देते हैं। तो जितना भइया हिलेगा… उतना मैं हिलूंगी! अगर ऐसा है तो इक्वेशन यह बनी कि जब वह हिलेगा, चलेगा तो मैं डिस्टर्ब होऊंगी। ऐसा क्यों है कि उसके हिलने से मैं डिस्टर्ब हो जाती हूं और आप नहीं होते? क्योंकि मैंने अपने मन को कहा है कि जब वह हिलेगा तो मैं हिलूंगी। और आपने अपने मन को कहा है कि हिलने दो मुझे क्या फर्क पड़ रहा है। तो हमारी लाइन यह नहीं कि वो डिस्टर्बिंग है। बल्कि वह जब हिलता है तो मैं डिस्टर्बंेस क्रिएट करती हूं। अगर वो डिस्टर्बिंग है तो मुझे अपने को शांत रखने के लिए उसको बदलना पड़ेगा। पर वो नहीं बदलने वाला। और हम अच्छी तरह जानते हैं कि वह नहीं बदलने वाला। पर हम जीवन में क्या कर रहे हैं। सारा जीवन दूसरों को ही तो कह रहे हैं कि तुम ठीक हो जाओ। क्योंकि वो ठीक हो जाएंगे तो हम शांत रह सकेंगे। यानी परिस्थितियां डिस्टर्बिंग हैं। तो पहली बात यह कि परिस्थितियां डिस्टर्बिंग नहीं हैं। वह सिर्फ एक परिस्थिति है। अगर हमने उसके ऊपर डिस्टर्बिंग का लेबल लगा दिया तो अपने मन को कह दिया कि ये परिस्थिति आपको हमेशा हिलाएगी। लेकिन डिस्टर्बंेस तो मैं किएट कर रही हूं। और यह इस बात पर आधारित है कि उस परिस्थिति में मैं कैसा सोचूंगी। अगर अच्छा सोचूंगी तो ठीक रहूंगी, सही सोचा तो बहुत ठीक रहूंगी, गलत सोचा तो डिस्टर्ब हो जाऊंगी और बहुत गलत सोचा तो बहुत डिस्टर्ब हो जाऊंगी। लेकिन इन चारों आॅप्शन में मैंने क्या कह दिया? यह कि मेरे मन की स्थिति परिस्थिति पर निर्भर है, डिपेंडेंट है। तो मैंने अपने मन का रिमोट कंट्रोल उस परिस्थिति के पास सौंप दिया। पांच मिनट बाद दूसरी परिस्थिति आ गई तो मैंने अपने मन का रिमोट कंट्रोल उसे सौंप दिया। दस मिनट बाद किसी और परिस्थिति को सौंप दिया। तो मेरा रिमोट कंट्रोल कितने लोगों के पास चला गया। अगर मैंने माना कि मेरा रिमोट कंट्रोल औरों के पास है तो खुश रहना मुश्किल है। क्योंकि दूसरे तो चलते फिरते रहेंगे, ऊपर नीचे होते रहेंगे और मैंने कहा है कि मेरे मन की स्थिति उनके ऊपर निर्भर है। तो वे हिलेंगे तो मैं भी हिलती रहूंगी। स्थिर नहीं रह सकती। खुश नहीं रह सकती। परिस्थिति में कैसा सोचना है यह शक्ति किसके पास है। कुछ लोग कई बार अच्छी से अच्छी परिस्थिति में भी गलत सोच लेते हैं। उनको देखकर हम कहते हैं कि आपको हर चीज में इतनी समस्याएं कैसे मिल जाती हैं। सब कुछ तो ठीक था फिर भी उसमें प्रॉब्लम ढूंढ ली आपने। लेकिन हम शक्तिशाली आत्माएं क्या करेंगी- यह जान लेंगी कि हमारी मन की सोच का परिस्थिति के साथ कोई कनेक्शन नहीं है। अगर किसी एक ने दूसरे पर प्रभाव डालना है तो किसने किसके ऊपर प्रभाव डालना है- परिस्थिति ने सोच पर या सोच ने परिस्थिति पर? मानिए आप अपनी गाड़ी पर निकले और दूसरी गाड़ी ने टक्कर लगा दी हल्के से। थोड़ा डेन्ट लग गया गाड़ी को, यह एक परिस्थिति है। अब डिस्टर्ब होना तो आपके ऊपर है। यह नहीं कि जितना बड़ा डेन्ट उतना बड़ा डिस्टर्बंेस। गाड़ी पर डेन्ट लगा एक सिचुएशन है, लेकिन आपके मन की स्थिति पर डेन्ट लगा तो यह आपकी च्वॉयस है। तो हम सबने रोज एक प्रैक्टिस करनी है। वह यह कि ‘परिस्थिति का मेरी मन की स्थिति से कोई भी कनक्शन नहीं है। कोई भी परिस्थिति हो उसमें मैंने क्या सोचना है यह च्वॉयस मेरी है।’
प्रस्तुति- अजय विद्युत (नोएडा में आयोजित ब्रह्माकुमारीज के स्प्रिचुअल एक्सपो-2018 में 21 फरवरी को सिस्टर शिवानी के संबोधन के संपादित अंश)