उना से लौटकर अभिषेक रंजन सिंह।

उना में मृत गाय की खाल उतारने पर गौरक्षा समिति के लोगों ने दलित युवकों की पिटाई की। घटना की तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हुर्इं। उसके बाद देश में दलित उत्पीड़न पर बहसें और राजनीति भी तेज हो गई। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, बसपा प्रमुख मायावती और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई नेताओं ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की। दलित युवकों की पिटाई के विरोध में ‘उना दलित अत्याचार लड़त समिति’ की अगुवाई में अहमदाबाद से उना तक ‘आजादी कूच’ पदयात्रा हुई। पदयात्रा की अगुवाई समिति के संयोजक जिग्नेश मेवानी कर रहे थे। मेवानी उन्नीस अगस्त तक गुजरात में आम आदमी पार्टी के नेता थे। लेकिन बीस अगस्त को नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, ‘मेरे ऊपर आरोप लगाया जाता है कि मैं आम आदमी पार्टी से जुड़ा हूं और उना की घटना को राजनीतिक फायदे के लिए तूल दे रहा हूं, इसलिए मैं आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं।’

वैसे जिग्नेश यह कहना नहीं भूले कि उना में दलित उत्पीड़न के मसले पर समिति कोई राजनीति नहीं कर रही है। हालांकि उनका यह बयान वहां मौजूद कई पत्रकारों को रास नहीं आया। अहमदाबाद से शुरू हुई ‘आजादी कूच’ कहने को एक पदयात्रा थी, लेकिन उना में इस संवाददाता ने देखा कि पदयात्रा के नाम पर लोगों ने बसों और निजी वाहनों का सहारा लिया। स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित ‘दलित अस्मिता रैली’ का समापन तो हो गया, लेकिन इस रैली ने कई अन्तर्विरोधों को जन्म दिया है। इससे दस दिनों तक चली ‘आजादी कूच’ के नेतृत्व की राजनीतिक मंशा पर सवाल खड़े हो गए हैं। गिर सोमनाथ के जिलाधिकारी डॉ. अजय कुमार के मुताबिक, ‘उना के हाईस्कूल मैदान में ‘दलित अस्मिता रैली’ के आयोजकों ने अस्सी हजार लोगों के आने संबंधी लिखित सूचना दी थी। जबकि रैली में शामिल लोगों की संख्या बीस हजार से ज्यादा नहीं थी।

वैसे उम्मीद तो यह की जा रही थी कि रैली में सौराष्ट्र और काठियावाड़ के जिलों से काफी संख्या में दलित शामिल होंगे। लेकिन इसके बरअक्स उना तालुका, जहां दलित युवकों की पिटाई हुई थी, वहां के लोगों ने भी रैली में बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लिया। रैली खत्म होने के बाद दलित युवक किशोर भाई कहते हैं, ‘जिसे गैर राजनीतिक रैली बताया जा रहा था, उस मंच पर कांग्रेस के नौशाद सोलंकी, बागजी भाई जोगढ़िया, केवल सिंह राठौड़ और भाजपा के प्रदीप सोलंकी माइक थामे तकरीर दे रहे थे।’ उना दलित उत्पीड़न लड़त समिति के संयोजक जिग्नेश मेवानी कांग्रेस और भाजपा नेताओं की मंच पर मौजूदगी की बात स्वीकारते हुए कहते हैं, ‘‘उन लोगों को किसी ने बुलाया नहीं था। वे लोग एक साजिÞश के तहत इस आंदोलन को सियासी रंग देना चाहते थे। ’’

जिग्नेश की इस दलील को खारिज करते हुए जयंती भाई कहते हैं, ‘जिग्नेश खुद आम आदमी पार्टी से जुड़े हैं। इस रैली को वह गैर राजनीतिक और दलितों का स्वत: स्फूर्त आंदोलन बताते हैं, जो स्वयं एक विरोधाभास है।’

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एक ‘अराजनीतिक’ मंच पर जिस तरह नेताओं का जमघट दिख रहा था, उसके कई निहितार्थ निकाले जा सकते हैं। इसमें शक नहीं कि इस रैली ने कई ऐसे अन्तर्विरोधों को जन्म दिया है, जिससे आजादी कूच के सियासी मंसूबे और निजी हितों पर भी सवाल उठ गए हैं। आयोजकों की ओर से रैली में अस्सी हजार लोगों के आने का दावा किया जा रहा था, लेकिन मैदान में उनकी तादात बीस-पच्चीस हजार से ज्यादा नहीं थी। रैली में बड़ी संख्या में उना से दलित समुदाय के लोगों के आने की उम्मीद थी, लेकिन इसके बरअक्स रैली में दूसरे राज्यों से आए लोगों की भीड़ अधिक थी। रैली से एक दिन पहले यानी चौदह अगस्त को आजादी कूच का कारवां उना स्थित राठौड़ हॉल पहुंचा। यहां बमुश्किल तीन से चार हजार लोगों की भीड़ थी। इनमें कई गैर सरकारी संगठनों के कारकुन, टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंस और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र बड़ी संख्या में थे इस संवाददाता ने वहां मौजूद कई एनजीओ कार्यकर्ताओं से इस बाबत सवाल पूछा तो वे झल्ला उठे और स्पष्ट बात करने से बचते दिखे। मुंबई से आर्इं लेखिका और फिल्मकार राजश्री बताती हैं, ‘देश में दलितों पर काफी अत्याचार हो रहा है। उना की घटना तो इसकी इंतिहा है। इसलिए मैं उना की रैली में हिस्सा लेने आई हूं।’

महाराष्ट्र में सक्रिय रिपब्लिकन पैंथर्स से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता सुवर्णा के मुताबिक इससे पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की मौत के विरोध में हुए कार्यक्रमों में वे हिस्सा ले चुकी हैं। इस रैली की एक खास बात यह रही कि इसे दलित और मुस्लिम एकता के रूप में प्रचारित किया गया था। लेकिन रैली में दलित और मुस्लिम एकता की बात करने वाले नेताओं ने गुजरात में मुसलमानों की बेहतरी की कोई बात नहीं की। अहमदाबाद से आए जन संघर्ष मंच के अशफाक और इमरान खान बताते हैं, ‘संस्था की ओर से हम लोगों को उना जाने को कहा गया। बीस-पच्चीस लोगों की तादात में हम यहां आए हैं। लेकिन इस रैली का क्या मकसद है, इस बारे में हमें कोई मालूमात नहीं है।’

घटिया बंदोबस्त
दलित अस्मिता रैली में कुप्रबंधन का आलम यह था कि जिन लोगों को इसे सफल बनाने की जिÞम्मेदारी सौंपी गई थी, वे चौदह अगस्त (रविवार) से ही गायब हो गए। इस रैली में उना दलित अत्याचार लड़त समिति के संयोजक जिग्नेश मेवानी, रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार मुख्य वक्ता थे। दिलचस्प यह कि ये सभी वक्ता भाषण देने के बाद बिना देरी किए वहां से रवाना हो गए। उसके बाद मंच पर अज्ञात और अपरिचित नेताओं की भीड़ उमड़ पड़ी। इस तरह घंटे भर के भीतर मंच वक्ताओं से और मैदान श्रोताओं से खाली हो गया।

जिला अमरेली से आए रमेश परमार के मुताबिक, ‘यह रैली पूरी तरह राजनीतिक थी, जिसे कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने हाईजैक कर लिया। नतीजतन दलित समुदाय स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।’

रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया के नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता चंद्र सिंह महीढ़ा बताते हैं, ‘यह रैली दलित हित के नाम पर आयोजित की गई थी, लेकिन यह गैर राजनीतिक न होकर विशुद्ध राजनीति में तब्दील हो गई।’ उनके अनुसार, ‘जिग्नेश मेवानी ने अपने सियासी फायदे के लिए दलितों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने भाषण तो अच्छा दिया, लेकिन उना के दलितों की बुनियादी समस्याओं पर कोई बात नहीं की। मसलन तालुके के काठी दरबार (राजपूत), कोली और पटेल बहुल बयासी गांवों ने दलितों का बहिष्कार कर दिया है। लेकिन इस बारे में किसी वक्ता ने कोई बात नहीं की।’

मोटा समढियाला वही गांव है, जहां मृत गाय की खाल उतारने को लेकर दो युवकों रमेश बालू भाई और वत्सराम की पिटाई हुई थी। रैली से एक दिन पहले रमेश बालू भाई के यहां दलित संगठनों ने एक बैठक की। इसमें भारतीय बौद्ध संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष संघप्रिय राहुल, दलित सेना के प्रहलाद भाई और लोक अधिकार मंच के अध्यक्ष गोविंद ढाढल मौजूद थे। भारतीय बौद्ध संघ के अध्यक्ष संघप्रिय राहुल ने कहा, ‘उनका संगठन इस रैली में शामिल नहीं होगा क्योंकि इस रैली का सियासी मकसद है। इससे दलितों को कोई फायदा नहीं होगा। उना की घटना निंदनीय थी, लेकिन इसका समाधान राजनीति से नहीं बल्कि सामाजिक स्तर पर होना चाहिए।’ उनके अनुसार, ‘इस समस्या का वास्तविक हल बातचीत से संभव है। इस संबंध में हम राज्य के मुख्यमंत्री, गौरक्षा समिति, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं से बात करेंगे।’