राखीगढ़ी में मिला सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पुराना अवशेष

इतिहास और पौराणिक मान्यताओं की ऐतिहासिकता का विवाद कोई नया नहीं है। यह विवाद पता नहीं कब से चल रहा है और कब तक चलेगा यह कहना कठिन है। लेकिन हिसार जिले का राखीगढ़ी गांव इस विवाद को एक नया आयाम दे सकता है। इस संदर्भ में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में अभी थोड़ा और समय लगेगा।

संध्या द्विवेदी

अब तक की स्थापित मान्यता के अनुसार मोहनजोदड़ो, हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल माना जाता है। लेकिन हरियाणा के हिसार जिले का राखीगढ़ी गांव इस मान्यता को चुनौती दे रहा है। राखीगढ़ी ने मोहनजोदड़ो को दूसरे स्थल पर धकेल दिया है। राखीगढ़ी की खुदाई से निकलने वाले तथ्य भारतीय इतिहास पर एक नई रोशनी डाल सकते हैं। ये पुरातात्विक प्रमाण इतिहास और पौराणिक ग्रंथों के आधार पर प्रचलित मान्यताओं में अन्योन्याश्रित संबंध भी स्थापित कर सकते हैं। लेकिन अभी निश्चयपूर्वक कुछ कहना कठिन है। हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी की सबसे पुरानी सभ्यता की खोज मोहन जोदड़ो तक ही सीमित नहीं रहेगी।

दिल्ली से करीब 175 किलोमीटर की दूरी पर बसे हिसार जिले के राखीगढ़ी गांव में पुरातत्वविद खुदाई कर रहे हैं। कहा जा रहा है यह एक सभ्यता को खोजने का प्रोजेक्ट है। लेकिन कहा यह भी जा रहा है कि दरअसल यह खोज एक नदी की है। नदी जिसे वेदों में सरस्वती कहा गया है। सत्ता में आने के बाद भाजपा ने एक बार फिर अतीत को खंगालने का काम पुरातत्वविदों को सौंप दिया है। राखीगढ़ी गांव में नवंबर, 2014 में फिर से खुदाई का काम शुरू हुआ। पुरातत्वविदों की निगरानी में यह खुदाई इतिहास को खंगालने के लिए हो रही है। हालांकि इस गांव में पहली बार पुरातत्वविदों ने अपना डेरा नहीं जमाया है, बल्कि 1963 में पहली बार आर्कियोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया ने यहां खुदाई शुरू की थी। 1997-2000 तक फिर खुदाई हुई। यह खुदाई अमरेंद्रनाथ के नेतृत्व में हो रही थी। अमरेंद्रनाथ ने इसे हड़प्पा सभ्यता का एक बेहद अहम स्थल करार दिया। सरस्वती नदी के वजूद को उन्होंने अपनी रिपोर्ट में मजबूती के साथ दर्ज किया। लेकिन 2001 में उन पर आर्थिक धांधली करने का आरोप लगाकर सीबीआई जांच बैठा दी गई।

राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान पाई गई पाट्री
राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान पाई गई पाट्री

पुरातत्वविद और वैज्ञानिक तथ्य इस ओर इशारा कर रहे हैं कि राखीगढ़ी सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा और प्राचीन केंद्र है। अगर यह बात सच है तो अब सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा केंद्र पाकिस्तान स्थित मोहन जोदड़ो नहीं बल्कि भारत में स्थित हरियाणा जिले का राखीगढ़ी गांव होगा। मौजूदा समय में चल रही खुदाई के इंचार्ज पुणे स्थित डेक्कन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर वसंत शिंदे हैं। प्रो. शिंदे के अनुसार राखीगढ़ी में पाई गई सभ्यता का समय करीब 5000-5500 ई.पू. है जबकि मोहन जोदड़ो में पाई गई सभ्यता का समय लगभग 4000 ई.पू. माना जाता है। इसके अलावा मोहन जोदड़ो साइट का एरिया करीब 300 हेक्टेयर है जबकि राखीगढ़ी में यह क्षेत्र 550 हेक्टेयर से ज्यादा है। यानी एक बात तो तय है कि अब तक सबसे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का केंद्र माने जाने वाले मोहनजोदड़ो का नंबर राखीगढ़ी के बाद आएगा। प्रो. शिंदे के अनुसार बड़े क्षेत्रफल में फैली होने और प्राचीन सभ्यता के साक्ष्यों को संजोए राखीगढ़ी में मिले प्रमाण इस ओर भी इशारा करते हैं कि व्यापारिक लेन देन के मामले में भी यह स्थल हड़प्पा और मोहन जोदड़ो से ज्यादा समृद्ध था। इनके व्यापारिक संबंध अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, गुजरात और राजस्थान से थे। खासतौर पर आभूषण बनाने के लिए यह लोग कच्चा माल यहां से लाते थे, फिर इनके आभूषण बनाकर इन्हीं जगहों में बेचते थे। तांबा, कार्नेलियम, अगेट, सोने जैसी मूल्यवान धातुओं को पिघलाकर यह लोग इनसे नक्शीदार मनके की माला बनाते थे। पत्थरों या धातुओं से जेवर बनाने के लिए भट्ठियों का इस्तेमाल होता था। ‘हमें इस तरह की भट्ठियां भारी मात्रा में मिली हैं। घरों और बस्ती के विकास का क्रम भी यहां ज्यादा स्पष्ट मिला है।’ तो क्या अब राखीगढ़ी इतिहास के पन्नों में कुछ बड़े फेरबदल करने के लिए तैयार है? इस सवाल के जवाब में वह इतना भर कहते हैं कि सितंबर तक सब साफ हो जाएगा। हम यहां मिले कंकालों का डी.एन.ए. टेस्ट कर उसकी रिपोर्ट जारी करेंगे।’ सरस्वती नदी के सवाल पर भी वह कुछ ऐसा ही जवाब देते हैं। हालांकि वह यह भी साफ कर देते हैं कि वह अभी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि वहां सरस्वती नदी ही थी। लेकिन हां वहां एक नदी जरूर थी। इस ऐतिहासिक और पुरातत्वविद चर्चा के बीच एक सवाल और उठता है कि अगर पुख्ता तौर पर राखीगढ़ी सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण स्थल साबित हो जाती है तो इस सभ्यता का नाम बदलने की मांग भी उठ सकती है। इसके पीछे तर्क दिया जा सकता है कि अगर सिंधु नदी के किनारे बसे होने के कारण मोहन जोदड़ो की सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया तो फिर प्राचीन राखीगढ़ी जिस नदी के किनारे बसी थी, उस नदी के नाम पर ही यहां मिली सभ्यता का नामकरण भी होना चाहिए। फिर यह सरस्वती हो या कोई और नदी। यह बात भी सच है कि सरस्वती नदी की खोज को भाजपा के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट्स में एक माना जाता है। यह तो कुछ महीनों में साफ हो जाएगा कि सच क्या है? मगर अभी तक जो कुछ भी राखीगढ़ी में मिला है, उससे एक बात तो साफ है कि इतिहास में कुछ तो जरूर बदलेगा?

साक्षत्कार – प्रो. वसंत शिंदे, पुणे की डेक्कन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर

सरस्वती नदी… आर्य कौन थे… जवाब जल्द मिलेगा

pro-shindeराखीगढ़ी में हो रही खुदाई के इंचार्ज प्रोफेसर वसंत शिंदे का कहना है कि दशकों से पूछे जा रहे हैं कुछ अहम सवालों जैसे सरस्वती नदी का वजूद है या नहीं? आर्य कौन थे? इन सबका उत्तर खोजने के हम बेहद करीब हैं। पुख्ता प्रमाणों के साथ कुछ महीनों में ही हमारी टीम इन सारे सवालों का जवाब देगी। प्रस्तुत हैं प्रो. शिंदे से संध्या द्विवेदी की बातचीत के प्रमुख अंश।

राखीगढ़ी में ऐसा क्या खास है, जिसने हलचल मचा दी है?

राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी साइट है, मोहनजोदड़ो से भी बड़ी। मोहनजोदड़ो का एरिया 300 हेक्टेयर है। जबकि इसका एरिया 500 हेक्टेयर है। हालांकि अनदेखी की वजह से इसका बहुत सारा एरिया नष्ट हो गया है। दूसरी बात इसका टाइम-पीरियड काफी पीछे जा रहा है। जहां मोहनजोदड़ो का समय 4000 ई.पू. माना जाता है, वहीं राखीगढ़ी में हड़प्पन सभ्यता का समय 5000-5500 ई.पू. पाया गया है। यानी इसका समय अब तक सबसे पुरानी मानी जाने वाली पाकिस्तान की सिंधु नदी के किनारे पाई गई मोहनजोदड़ो की हड़प्पा सभ्यता से भी पुराना है। हालांकि यह भी हो सकता है कि मोहनजोदड़ो में भी और खुदाई की जाए तो वहां पर भी अब तक मिले सभ्यता के प्रमाणों से भी पुराने प्रमाण मिलें।

तो क्या यह कह सकते हैं कि राखीगढ़ी अभी तक सबसे पुरानी हड़प्पा सभ्यता साइट के रूप में स्थापित हो गई है?

हां, अभी तक तो यही सबसे पुरानी और बड़े क्षेत्र वाली हड़प्पा सभ्यता साइट के रूप में जानी जाएगी। केवल इतना ही नहीं इस साइट में हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक (अर्ली) और परिपक्व (मेच्योर) अवस्था के प्रमाण मिले हैं। लेट अवस्था में यहां से लोग चले गए। इसका कारण शायद यह होगा कि तब यहां जीवन जीने का स्थितियां नहीं बनी रही होंगी। जैसे यहां पर ड्राई बेड मिलने से पता चलता है कि यहां पर नदी रही होगी, लेकिन बाद की अवस्था में विलुप्त हो गई होगी। यानी 2000 ई.पू. के बाद यह सूख गई होगी। तब लोग यहां से चले गए होंगे क्योंकि खेती के लिए जो पानी चाहिए था वह खत्म हो गया था।

यह नदी कौन सी थी? क्या सरस्वती नदी के कोई पुख्ता प्रमाण मिले हैं?

अभी कहना मुश्किल है। हो सकता है, द्रषदवती और सरस्वती नदी ही हों। द्रषदवती नदी सरस्वती नदी की ही एक धारा होगी। लेकिन अभी हम पक्के तौर पर केवल इतना कह सकते हैं कि यहां नदी थी। कौन सी, यह पुख्ता करना बाकी है। सरस्वती नदी का नाम लेना अभी थोड़ा जल्दबाजी है। सितंबर तक हम प्रमाणों के साथ सबकुछ कहेंगे।

यह तो तय हो गया कि यहां कोई नदी थी। लेकिन यह सरस्वती ही थी या कोई और यह कैसे तय करेंगे?

हम खुद भी पहले पुख्ता प्रमाण इकट्ठा कर लेना चाहते हैं। देखिए ऋग्वेद में सरस्वती नदी का वर्णन है। इस एरिया के बारे में ही ऋग्वेद में कहा गया है। हम ऋग्वेद में नदी के बारे में बताई गई स्थितियों और सबूतों से इसका मिलान करेंगे। अगर सबकुछ मिलता गया तो पक्के तौर पर कहेंगे कि यह कोई और नहीं बल्कि सरस्वती नदी ही है। इससे यह भी तय हो जाएगा कि ऋग्वेदों की सत्यता पर संदेह करना ठीक है या नहीं! नहीं तो फिर पुख्ता तौर पर कह पाएंगे कि यह नदी सरस्वती नहीं है।

क्या शहरों के बारे में कुछ अलग तरह के प्रमाण मिले हैं। जैसे घर कैसे होते थे, कैसी टाउनशिप थी वगैरह-वगैरह?

हमें टाउनशिप के कुछ अलग और स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। ऐसे प्रमाण किसी और साइट में नहीं मिले हैं। जैसे यहां घरों के आकार को लेकर चार चरणों का पूरा सीक्वेंस मिला है। पहले चरण में लोग गोलाकार घर बनाते थे, फिर आयताकार, फिर कुछ बड़े और फिर पूरी सुनियोजित बस्ती यानी वेल प्लांड टाउनशिप होने के प्रमाण मिले हैं। इस तरह से स्पष्ट सीक्वेंस हमें कहीं नहीं मिले। इसके अलावा पौट्री भी मिली है जिसमें लगतार कुछ बदलाव होते गए। इससे साफ है कि राखीगढ़ी में सभ्यता का विकास तेजी से हो रहा था।

उनके रहन सहन से जुड़े कुछ और प्रमाण मिले हैं?

हां। जैसे गहनों को बनाने की प्रक्रिया के बारे में स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा काल में आभूषण पत्थरों के होते थे, यह तो सबको पता ही है। इन पत्थरों में पॉलिश करके इन्हें चमकाने के प्रमाण मिले हैं। पत्थरों पर कसीदाकारी के पुख्ता प्रमाण हैं। आभूषण को बनाने के वाली भट्ठियां मिली हैं। पत्थरों के छिलके मिले हैं, इससे पता चलता है कि पत्थरों को छीलकर उन्हें चिकना किया जाता था। यानी आभूषण बनाने की प्रक्रिया के प्रमाण मिले हैं। ऐसे भी प्रमाण मिले हैं कि बने बनाए आभूषणों को ये लोग उन जगहों पर भेजते थे जहां से इन्हें बनाने के लिए पत्थर लाते थे। ये लोग घर बनाने से लेकर आभूषण जैसी शौक की चीजों के लिए आत्मनिर्भर थे। पीले रंग का पत्थर अगेट और लाल रंग का पत्थर कार्नेलियन भारी मात्रा में मिला है। यहां के एक माउंट यानी एक एस्केवेसन साइट में 22 मीटर का इंटेसिव हैबिटेट डिपॉजिट मिला है। इससे पता चलता है कि यहां पर कितनी इंटेसिव एक्टिविटीज थीं, आबादी कितनी सघन थी, वगैरह-वगैरह। यह भी एक खास बात है जो यहां से पता चली है।

यहां कब्रगाह मिली है। हड़प्पा सभ्यता की मिली दूसरी कब्रगाहों से यह कुछ अलग है?

एक चीज है जो बिल्कुल अलग तो नहीं है लेकिन स्पष्ट ज्यादा है। यहां पर कई कंकाल एक साथ मिले हैं। अगल-बगल। जैसे एक कब्र मिली है जिसमें दो वयस्क और एक बच्चा है। इससे अंदाजा होता है कि एक ही वंश या परिवार के लोगों को एक साथ दफनाया जाता रहा होगा। पहले भी ऐसे प्रमाण मिले हैं मगर वे कब्रें एक के ऊपर एक थीं। जिनसे यह भी अनुमान होता था कि शायद यह न जानते हुए कि यहां कोई कब्र है, दूसरी कब्रें बना दी गई होंगी। इसलिए इस तरह के प्रमाण भी सभ्यता की गहराई जानने में अहम हैं।

यहां कब्रगाह से मिले कंकालों के अध्ययन से हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के क्या खास प्रमाण मिलने के आसार हैं?

यह हमारे अध्ययन का एक बड़ा और अहम हिस्सा है। हमें कंकाल तो दूसरी साइट पर भी मिले, लेकिन उनके डीएनए को सुरक्षित नहीं रखा जा सका। लेकिन पिछले साल हम डीएनए सुरक्षित रखने में सफल हुए। इस साल भी कुछ डीएनए हमने सुरक्षित किया है। करीब सौ सालों से हड़प्पा सभ्यता को लेकर खोज हो रही है। लेकिन अभी तक संदेह बना हुआ है कि ये लोग कौन थे? स्थानीय थे या बाहर से आए थे? दूसरे लोगों से क्या संबंध थे? इन सवालों की जानकारी के उत्तर जानना हमारे प्रोजेक्ट का अहम मकसद है। इसके लिए डीएनए का अध्ययन जरूरी है। पिछले साल भी हमने कुछ कंकालों से सुरक्षित डीएनए निकाला है। इस साल भी हम कुछ कंकालों का सुरक्षित डीएनए निकाल पाने में सफल हुए हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री रहे जगमोहन की देखरेख में शुरू हुई सरस्वती नदी की खोज को 2004 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने ठप कर दिया था। तत्कालीन संस्कृति मंत्री जयपाल रेड्डी ने संसद में कहा था कि नौ राज्यों में खुदाई हो चुकी है, लेकिन कहीं भी सरस्वती नदी के प्रमाण नहीं मिले हैं। कम्युनिस्ट पार्टी भी इसे एक काल्पनिक किस्सा ही मानती है। कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने कहा था कि नदी के रहस्य को खोजने में वक्त और पैसा दोनों बर्बाद हो रहा है। 2014 मई में जब एक बार फिर भाजपा सरकार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई तो उस वक्त से ही यह कयास लगने शुरू हो गए थे कि वेदों में बताई गई सरस्वती नदी की खोज फिर से शुरू होगी। माना यह भी जाता है कि सरस्वती नदी की खोज वेदों की सत्यता को स्थापित करने का भी एक बड़ा जरिया है। क्योंकि सरस्वती नदी के बारे में ऋग्वेद में वर्णन मिलता है। राखीगढ़ी के अतीत के साक्ष्यों पर कुछ लोगों की नजरें टिकी हैं तो कुछ लोगों की भौंहें तनी हैं। अतीत को खोदने के महारथी यानी पुरातत्वविद एवं पूर्व आर्कियोलॉजी विभाग के संयुक्त निदेशक आर.एस. बिष्ट तो कहते हैं, ‘आर्कियोलॉजिकली, जियोलॉजिकली, हिस्टोरिकली और कल्चरली हर तरह से सरस्वती नदी के प्रमाण मौजूद हैं।’ अमरेंद्रनाथ ने इस खुदाई से जुड़ी कई अहम जानकारियों को साझा करने के साथ एक सवाल भी उठाया। वह पूछते हैं, ‘आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के पास क्या ऐसे लोगों का टोटा पड़ चुका है जो इस ऐतिहासिक खुदाई में सक्षम हों?’ अमरेंद्रनाथ खुद इस सवाल का जवाब देते हैं कि ‘ए.एस.आई. के पास कई क्षमतावान लोग हैं। कई रिटायर्ड अधिकारी हैं जो इस तरह के काम करने में सक्षम हैं, लेकिन नियमों की धज्जियां उड़ाकर राखीगढ़ी जैसे प्रोजेक्ट बाहर के लोगों को सौंपे जा रहे हैं। ए.एस.आई के कानून को देखें तो खुदाई करने का पहला अधिकार यहां के कर्मचारियों को ही है। हां उसके मातहत कोई बाहरी टीम काम कर सकती है। यह सवाल बहुत बड़ा है क्योंकि इतिहास को खोदने वाले विभाग के भीतर अगर इस तरह की अंधेरगर्दी चल रही है तो फिर मुमकिन है कि इस रवैए का असर हमारे अतीत पर पड़े और उसकी परछार्इं भविष्य को भ्रमित करने का काम करे।’

राखीगढ़ी में मिला कब्र जिसमें दो वयस्क और एक बच्चे के कंकाल मिले हैं
राखीगढ़ी में मिला कब्र जिसमें दो वयस्क और एक बच्चे के कंकाल मिले हैं

अतीत के निशान खुद कहेंगे अपनी कहानी

पुणे की डेक्कन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और राखीगढ़ में हो रही खुदाई के इंचार्ज प्रो. वसंत शिंदे ने राखीगढ़ी के लिए एक बिजनेस मॉडल भी तैयार किया है। इससे राखीगढ़ी को ख्याति तो मिलेगी ही साथ ही यहां के लोगों को रोजगार भी मिलेगा। राज्य सरकार का खजाना भी बढ़ेगा। शिंदे बताते हैं कि हमने पहली बार किसी साइट को संरक्षित करने का प्रस्ताव राज्य सरकार को दिया है। हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु से इस पर हमारी बात भी हो चुकी है। उन्होंने एक सुनियोजित प्रस्ताव मांगा है। वह इसमें वित्तीय मदद के लिए तैयार भी हैं। वैसे तो हर खुदाई के बाद रिसर्च पूरी होने के बाद हम उस साइट को मिट्टी से पाट देते हैं। लेकिन यहां हम चाहते हैं कि इस खुदी हुई साइट को इतिहास के पदचिह्नों की तरह संरक्षित किया जाए। इन जगहों पर एक शेड डाला जाए। सैलानी यहां हड़प्पा सभ्यता के निशानों को किसी म्यूजियम में देखने की जगह सीधे यहां आकर देखें। यकीनन दुनियाभर से लोग यहां आएंगे। यह कदम आय का एक बड़ा जरिया बनने के साथ ही राखीगढ़ी को मशहूर करेगा। स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। दूसरा प्रस्ताव है कि यहां एक संग्रहालय बने। जिसका उद्घाटन भी मार्च में हो गया है। तीसरा प्रस्ताव कन्जर्वेशन साइट बनाने का है जिससे आस-पास मिली चीजों को यहां संरक्षित किया जा सके। यहां रिसर्च की भी सुविधा हो। दूर दूर से यहां आकर लोग रिसर्च करें। तीसरा यहां इस गांव में खूब हवेलियां हैं। उन हवेलियों को टूरिज्म के मकसद से सैलानियों के रहने के लिए तैयार किया जाए। कुल मिलाकर ऐतिहासिक पर्यटन का एक बेमिसाल मॉडल तैयार किया जा रहा है। ऐसा मॉडल इससे पहले बनाया जाना तो दूर की बात, यह सोचा तक नहीं गया है।

सुरक्षित डीएनए निकालने के लिए अत्याधुनिक तकनीक

इस बार डीएनए निकालने के लिए हमने खास एहतियात बरते हैं। डीएनए के क्षतिग्रस्त होने के चांस बहुत होते हैं। किसी जिंदा व्यक्ति के संपर्क में आने पर डीएनए में मिलावट हो सकती है। यहां तक कि किसी की सांस के संपर्क में भी आने पर कंकाल का डीएनए क्षतिग्रस्त हो सकता है या उसके मूल स्वाभाव में बदलाव आ सकता है। इसलिए हमने इस बार बहुत चौकसी बरती है। इस साइट पर जो लेबर खुदाई कर रहे हैं पहले तो उनके डीएनए का टेस्ट हमने कर लिया है। दूसरे यहां काम करने वाले लोग मास्क और दस्ताने, गाउन पहने हुए हैं जिससे ओरिजिनल डीएनए में कोई मिलावट न हो। कंकालों को खुले में ज्यादा देर नहीं रखा जा रहा है। हम यहां से मिले डीएनए का टेस्ट एक जगह से नहीं बल्कि तीन जगह से कराएंगे जिससे नतीजे आने के बाद संदेह की कोई गुंजाइश ही न रहे। इस बार हमने डीएनए टेस्टिंग के सबसे आधुनिक तरीके को भी इसमें शामिल किया है। प्राचीन और आधुनिक डीएनए अगर मिल भी जाएगा तो हम इन दोनों को अलग करके बता देंगे की कौन सा आधुनिक है और कौन सा प्राचीन। यह सावधानी इसलिए बरती गई है क्योंकि साइट पर काम करते हुए लेबर या दूसरे लोगों का डीएनए अगर कंकालों के डीएनए में मिल जाए तो भी हमारे शोध को कोई फर्क न पड़े। डीएनए टेस्टिंग के लिए हमने तीन ग्रुप बनाए हैं। डेक्कन यूनिवर्सिटी और एक कोरियन यूनिवर्सिटी का ग्रुप है। कैंब्रिज और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और हैदराबाद के शोधार्थियों का एक समूह। हैदराबाद की सेंट्रल फार सेल्युलर बायोलोजी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम है। तीनों ग्रुप ये डीएनए टेस्ट करेंगे। फिर हम पुख्ता तरह से कहेंगे कि आखिर ये लोग थे कौन?

आर्य बाहर से आए या यहीं के

यह सवाल बड़ा है और विवादित भी है। अगर हम डीएनए टेस्ट कर पाए तो सौ प्रतिशत यह जान जाएंगे कि सच क्या है। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन हमें लगता है कि हम सच के करीब हैं। आने वाले चार महीने में इस सवाल के जवाब को प्रमाण समेत खोज निकालेंगे।

जारी……