पंजाब में होने वाले चुनावों को लेकर हर पार्टी अपनी कमर कसने में लगी हुई है। सियासत के गलियारों में एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ मची हुई है। राज्य में दो बड़ी पार्टियों को टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी जोरों शोरों से अपने लिए पंजाब में जमीन तैयार करने में जुट गई है।

हालही में आप पार्टी नें अपने मेनिफेस्टो की तुलना गुरू ग्रंथ साहिब से की थी। जिसकी आलोचना आप पार्टी को झेलनी पड़ी। लेकिन केजरीवाल नें पंजाब में अपने खिलाफ उड़ती हवा की नजाकत को समझा और स्वर्ण मंदिर पहुंचकर अनचाहे में हुई गलती के लिए माफी भी मांग ली। केजरीवाल पार्टी के राज्य में उभरने के मायनों से अच्छी तरह वाकिफ हैं।

आप पार्टी के पंजाब में उभरने और होती आलोचना पर वरिष्ठ पत्रकार दीपक मेहरा कहते हैं कि ‘केजरीवाल पंजाब में अपनी पार्टी के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। जब केजरीवाल अमृतसर पहुंचे थे तो उन्हे काले झंडे दिखाए गए। बाद में जब उन्होने माफी मांगी तो बोला गया कि उन्होने तो साफ बर्तनों को ही धोया है। पंजाब के साथ-साथ नेशनल मीडिया में यह खबर छा गई । पंजाब में पढ़े- लिखे लोगों की भी एक लॉबी है जो यह अच्छी तरह जानती है कि पंजाब में पहले से सता पार्टी कभी यह नहीं चाहती कि पंजाब में तख्तापलट हो इसी वजह से केजरीवाल के खिलाफ हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।यह सब आप पार्टी को हतोत्साहित करने के लिए किया जा रहा है जिसका कहीं ना कहीं पार्टी को ही फायदा मिलने वाला है।’

वहीं दूसरी ओर पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अशोक मलिक का कहना है कि आप पार्टी को सत्ताधारी पार्टी के नेगेटिव वोट मिलने की उम्मीद है। साथ ही अकाली दल को 10 साल होने जा रहे हैं । पार्टी सत्ता में रहने के विरोध का खामियाजा भुगत सकती है।’

राज्य में  जमीनी तौर पर जो रिपोर्ट सामने आ रही हैं उसके मुताबिक ‘आप’ पार्टी मोर्चा मार सकती है। लेकिन पार्टी में भी कई खामियां हैं जो सता तक पहुंचाने में पार्टी के आड़े आ सकती हैं।

वरिष्ठ पत्रकार अशोक मलिक मानते हैं कि आप पार्टी की अपनी सीमाएं हैं। पार्टी के पास जमीनी तौर पर कोई बड़ा चेहरा नहीं है। कोई अच्छा नेतृत्व नहीं है जिस पर उम्मीद की जा सके। हालांकि केजरीवाल के नाम को भूनाने की कोशिश पार्टी जोरों शोरों से कर रही है लेकिन पार्टी के पास अच्छे कार्यकर्ताओं की कमी है जो उसके वोटों पर असर डाल सकती है।’

अशोक बताते हैं कि ‘कांग्रेस की बात करें तो पार्टी गुटबाजी की तो शिकार है ही साथ ही लोगों को प्रभावित करने में भी नाकाम साबित हो रही है।’

ऐसे में माना जा सकता है कि पंजाब में होने वाले चुनाव काफी रोमांचक और निर्णायक साबित होंगे। किस पार्टी को पंजाब की सत्ता हासिल होती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।