नई दिल्ली। एनजीटी के सख्‍त होने के बावजूद प्रदूषण का कोई समाधान नहीं निकल रहा है। दिल्ली के आसमान में धुंध पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्र और दिल्ली सरकार को जमकर फटकार लगाई। एनजीटी ने कहा कि वे एक दूसरे पर दोषारोपण करना बंद करें। एनजीटी के अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार ने कहा कि दिल्ली के लोगों से यह अन्याय है। हर चीज में प्रशासन अपने हाथ खड़े कर देता है। हमें कुछ करना है, आप यह नहीं कह सकते कि वक्त इसे करेगा।

एनजीटी ने सोमवार को बुलाई बैठक में दिल्ली सरकार से पांच सवाल किए जिसका उनके पास कोई जवाब नहीं था। एनजीटी का पहला सवाल था-अगर दिल्ली सरकार ने इमरजेंसी घोषित की है तो बताइए कि रविवार को बिल्डरों और कूड़ा जलाने वालों के कितने चालान किए गए। सरकार के पास कोई जवाब नहीं था। एनजीटी ने कहा, ‘एक्शन में आइए, कागजी कार्रवाई से कुछ नहीं होगा और अगर ऐसा नहीं होगा तो हम अफसरों की तनख्वाह काटेंगे और जरूरत पड़ी तो जेल भी भेजेंगे।’

एनजीटी ने पूछा, आपने प्रदूषण का अंदर और बाहर का स्तर बिना जाने स्कूलों की छुट्टी कर दी। घर और स्कूल दोनों के अंदर प्रदूषण का स्तर बराबर है तो फिर छुट्टी की जरूरत ही नहीं है। सरकार ने इस पर कोई रिसर्च करने की जरूरत समझी ही नहीं।

एनजीटी ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि क्या हेलीकॉप्टर सिर्फ वीवीआईपी लोगों के लिए है। प्रदूषण को कम करने के लिए हेलीकॉप्टर से पानी का छिड़काव अब तक क्यों नहीं कराया गया। जो एनजीटी ने सोचा वो सरकार और एजेंसी सोच ही नहीं पाई तो फिर करती कैसे।

एनजीटी का सवाल था कि पंजाब में 70 फ़ीसदी किसान फसल जला रहे हैं। उनको वो मशीन कैसे और कब तक दी जा सकती है। सरकार इसमें एक दूसरे का क्या सहयोग कर सकती हैं, हमें बताए। ताकि फसलों को खेत में जलाया न जाए बल्कि सरकार मशीन के इस्तेमाल से फ़सल के उस हिस्से को खेत से ही निकाल सके।

सरकारों ने इस पर भी कुछ करना तो दूर, सोचना भी जरूरी नहीं समझा। ऑड-इवेन क्यों फेल हुआ सरकार ने लागू करने से पहले कोई रिसर्च क्यों नहीं की। सरकारें प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए क्या चीज़ें जरुरी हैं, ये प्रदूषण बढ़ने के बाद ही हर साल क्यों सोचती हैं। पूरे साल क्यों नहीं सोचतीं।