राजीव थपलियाल/अनूप गैरोला।

भाजपा नेतृत्व को उत्तराखंड से बड़ा झटका लगने वाला है। ऐसा भाजपा के ही अंदरूनी सूत्र बताते हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत भाजपा को उसी की भाषा में जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो हरीश रावत का मास्टर गेम भी परवान चढ़ रहा है। इस रणनीति के तहत भाजपा के पांच विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में लाने की मुहिम धीरे-धीरे रंग ला रही है। भाजपा के कुमाऊ से तीन व गढ़वाल के दो मिलाकर पांचों विधायक हरीश रावत की कोर कमेटी के सदस्यों के सीधे संपर्क में हैं। इस संभावना से भी इनकार नहीं किया गया कि कांग्रेस भाजपा को उसी के दांव से मात देने के प्रयास में है। इससे आश्चर्यजनक तथ्य और क्या होगा कि गढ़वाल के जिस बड़े भाजपा नेता व विधायक को कांग्रेस तोड़ने की फिराक में है, वह वही विधायक है जिसने अमित शाह के उत्तराखंड आगमन की जिम्मेदारी संभाली थी। भाजपा का यह तेजतर्रार विधायक विधानसभा में कांग्रेस की चूलें हिला चुका है। खास बात यह कि इस विधायक से हरीश रावत की कोर कमेटी लगातार संपर्क में है और उसका दावा है कि यह विधायक अपने चार साथियों के साथ कभी भी कांगे्रस में आ सकता है। बहरहाल, आने वाले दिनों में उत्तराखंड के सियासी इतिहास में एक नया अध्याय लिखे जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। सीबीआई से जूझ रहे हरीश रावत का यह मास्टर गेम सफल हुआ तो भाजपा को मिशन 2017 में बड़ा झटका लगना तय है। राजनीतिक चालों से हरीश रावत को चित्त करने में नाकाम रही भाजपा के लिए यह बेहद शर्मनाक स्थिति होगी।

भले ही ऐसी बातों को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मीडिया की कोरी कल्पना करार देते हों, लेकिन सच यही है कि पार्टी संगठन और नेतृत्व के खिलाफ कार्यकर्ताओं और नेताओं में जबरदस्त आक्रोश है। इन कार्यकर्ताओं का साफ कहना है कि संगठन और पार्टी के आकाओं की कार्यशैली में एक खास गुट को ‘दुलार’ और शेष के लिए ‘दुत्कार’ है। भाजपा का प्रदेश कार्यालय इनकी नाराजगी का गवाह दिखा भी, जहां कभी भीड़ लगी रहती थी वहां गिने-चुने लोग ही नजर आते हैं।

दूसरी ओर, हरीश रावत सरकार सियासी संकट के बाद अब वित्तीय संकट से जूझ रही है। इस संकट से बचने का रास्ता तलाशते हुए हरीश ने चार व पांच जुलाई को विशेष सत्र आहूत किया है। कांग्रेस के एक बड़े नेता ने बताया कि हरीश रावत भी भाजपा को उसी के अंदाज में जवाब देने की रणनीति बना रहे हैं। उन्होंने इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया कि चार-पांच जुलाई को संभावित ‘बजट सत्र’ के दौरान मतविभाजन की नौबत आने पर कांग्रेस भाजपा को तगड़ा झटका भी दे सकती है।

वित्तीय संकट, सत्र के बहाने ‘शक्ति संदेश’
उत्तराखंड के बजट का मामला अभी तक सुलझा नहीं है। केंद्र की भाजपा सरकार राज्य की कांगे्रस सरकार पर वह हर दबाव बनाए रखना चाहती है, जिससे उसके अगली बार सत्ता में आने के रास्ते बंद हो जाएं। चुनावी वर्ष में घोषणाओं की बौछारों पर पानी फिरने से परेशान प्रदेश सरकार पुराने अंदाज में आने को बेताब है। इसीलिए हरीश सरकार ने बचाव के रूप में आरोपों की तोप का मुंह मोदी सरकार की ओर घुमा दिया है। साफ है कि वह इस वित्तीय संकट के लिए केंद्र सरकार को घेरने और राज्य में भाजपा की धार कुंद करने की रणनीति बना रही है। विनियोग विधेयक को नए सिरे से पारित कराने की संभावनाओं के बीच कांग्रेस की अंतर्कलह से निपटना भी हरीश की रणनीति का एक हिस्सा है। पलटवार करने में माहिर हरीश रावत को इस मोर्चे पर दोतरफा लड़ाई लड़नी है। एक तो सहयोगी दल पीडीएफ के असंतोष को रोकना है, दूसरे अंतर्कलह से जूझ रहे कांग्रेसियों को भी एकजुट करना है। अपने घर में उठ रहे विद्रोही स्वर थामने के लिए उन्होंने हाईकमान का सहारा लिया। हाईकमान ने हरीश के इशारे पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के कान उमेठने शुरू कर दिए हैं। दरअसल, वित्तीय संकट के नाम पर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए एक तरफ हरीश रावत ने सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साधा है, तो दूसरी ओर केदारनाथ दर्शन के लिए आए राष्ट्रपति के समक्ष भी वित्तीय संकट के बाबत अपनी बात रखते हुए गुहार लगाई। साफ है कि हरीश रावत सरकार विकास कार्यों में रोड़ा अटकने और कर्मचारियों के वेतन संकट के बहाने केंद्र सरकार को घेरने की तैयारी में है। हालांकि बीजेपी अध्यक्ष अजय भट्ट ने हरीश सरकार के आरोपों को गलत ठहराया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हरीश सरासर झूठ बोल रहे हैं। राज्यपाल के हरीश सरकार के बजट पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद केंद्र ने किसी मद का पैसा नहीं रोका है। पहले 25 हजार करोड़ रुपये केंद्र सरकार ने उत्तराखंड को दिए हैं और हाल ही में 11 हजार करोड़ रुपये सड़कों के लिए राज्य को दिए हैं। कई अन्य योजनाओं के लिए भी राज्य को हजारों करोड़ मिले हैं। हरीश रावत इन तथ्यों को न बताकर अल्पमत वाली सरकार की बजट पास न कर पाने की नाकामी छिपा रहे हैं।

विकल्पों पर विचार
वरिष्ठ पत्रकार अजय गौतम की मानें तो वित्तीय संकट से निपटने के लिए कांग्रेस सरकार के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे थे। इनमें प्रत्यक्ष तौर पर दो ही विकल्प थे। एक तो हरीश रावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोबारा पत्र लिखकर राष्ट्रपति को भेजे गए विनियोग विधेयक की पैरवी करें। दूसरा यह कि राज्य सरकार इस मामले में अदालत का दरवाजा खटखटा कर प्रधानमंत्री को दिशा निर्देश देने की पैरवी करे। दोनों ही मामलों में उनकी मांग पूरी हो, यह जरूरी नहीं। केंद्र के रुख को देखते हुए पत्र लिखने के बाबत औपचारिकता ही दिखाई दी है। दूसरा विकल्प समय सीमा से जुड़ा है। दरअसल, केंद्र ने पूरे वित्तीय वर्ष के बजट की बजाय लेखानुदान पास करके भेजा है, जिसकी अवधि 31 जुलाई को खत्म हो रही है।

नई समस्या
लेखानुदान में नए मदों के बाबत बजट का कोई प्रावधान ही नहीं किया गया है। यही वजह है कि सरकार की पहले से चल रही योजनाओं के भी बंद होने के आसार पैदा हो रहे हैं। साफ है कि यदि विनियोग विधेयक दोबारा पेश किया जाता है तो विपक्ष सरकार से दोबारा मतविभाजन की मांग कर सकता है। तब अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। यही वजह है कि सरकार ने सत्र तो बुला लिया, लेकिन इसके मकसद पर चुप्पी भी साध ली है। फ्लोर टेस्ट की संभावना के मद्देनजर ही हरीश रावत ने इस मजबूरी का लाभ उठाते हुए भाजपा की धार को कुंद करने के मकसद से हमलावर रुख मोदी सरकार की तरफ मोड़ दिया है। अजय गौतम के मुताबिक, कांग्रेस के सामने नई समस्या वित्तीय संकट तो है ही, कांग्रेस में अंतर्कलह को भी थामना है। इसीलिए इस पूरे मोर्चे पर हरीश रावत के बाद अब अन्य कांग्रेसी भी धीरे-धीरे उन्हीं की तर्ज पर मोदी सरकार पर हमला बोलने लगे हैं।

सत्ता-विपक्ष में आग बराबर लगी हुई
कांग्रेस की तरह भाजपा में भी अंतर्कलह की आग बराबर लगी हुई है। दस विधायकों को तोड़कर भाजपा ने जहां कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया था, वहीं पीडीएफ की एकता और बचे कांग्रेस विधायकों की एकजुटता को बरकरार रखने के साथ भाजपा के दो विधायकों और राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले एक वरिष्ठ भाजपा महिला नेता को तोड़कर कांग्रेस भी अपने मंसूबे को जता चुकी है। अब आगे की मुश्किलों से निपटने के लिए भी हरीश रावत सरकार ने भाजपा विधायकों के अलावा बड़े नेताओं पर भी डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। भाजपा जहां कांग्रेस की अंतर्कलह और उठापटक का लाभ उठाना चाहती है, वहीं कांग्रेस भी ऐसा कोई मौका छोड़ना नहीं चाहेगी। हाल ही में देहरादून के मेयर और भाजपा के कद्दावर नेता विनोद चमोली के समर्थकों ने प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ काफी-कुछ कहा भी है। इस बात को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट मानते भी हैं। भट्ट ने बगैर किसी लागलपेट के कहा कि चुनावी वर्ष है, यह आना-जाना लगा ही रहेगा।

भाजपा में संशय, अंतर्कलह और संघर्ष
भाजपा के समक्ष राज्यस्तर पर सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके नेता ठोस रणनीति बनाने के बाबत लगातार मात खा रहे हैं। भाजपा सूत्रों की मानें तो अब अंतर्कलह के बीज और गहराई में जा चुके हैं। कांग्रेस के 10 विधायकों के टूटकर भाजपा में आने के बाद पार्टी में प्रदेश स्तर पर अंतर्कलह और भी बढ़ गई है। भाजपा नेताओं का कहना है कि ये विधायक अपने समर्थकों के साथ नहीं आए हैं, बल्कि अपनी महत्वाकांक्षा के साथ पार्टी में शामिल हुए हैं। कांग्रेसियों का यह आगमन पुराने कद्दावर भाजपाइयों के गले नहीं उतर पा रहा है। ये नेता पार्टी संगठन और प्रदेश अध्यक्ष की गतिविधियों से संतुष्ट नहीं हैं। पुराने भाजपाइयों का मानना है कि अजय भट्ट डमी के तौर पर काम करते हैं। केंद्रीय संगठन के कुछ लोगों का एक खास गुट अपनी बातें और रणनीति इन पर थोपता है और भट्ट उनके इशारे पर कठपुतली बने नाचते फिरते हैं। मायूस नेताओं की मानें तो केंद्रीय संगठन की राजनीति का एक मोहरा उत्तराखंड की सियासत का ऐसा चेहरा है, जिसकी स्वीकारोक्ति राजनीतिक तौर पर जनता के बीच कतई नहीं है। यह वही मोहरा है जो पूर्व में गुजरात के एक राज्यपाल का कारिंदा रह चुका है। इसी दौरान गुजराती नेताओं नरेंद्र मोदी और अमित शाह से उसकी नजदीकियां बढ़ीं और इसी का फायदा उनके प्रधानमंत्री और पार्टी मुखिया बनने पर उसे मिला है।
ज्यादातर पुराने भाजपाइयों का सियासी तजुर्बा कहता है कि पहले से ही इस राज्य में भाजपा के तीन गुट बने थे और फिर सतपाल महाराज ने कांग्रेस से आकर गुटबाजी को और शह दी। ऐसे में ‘दस का दम’ के रूप में एक नया गुट भाजपा की अंतर्कलह को और भी बढ़ा सकता है। भाजपा के अंदर इन नए सदस्यों के भय का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूर्व मंत्री और झारखंड प्रभारी त्रिवेंद्र सिंह रावत तक को यह कहना पड़ा कि पार्टी पुराने कार्यकर्ताओं का ख्याल तो रखेगी। इस स्थिति में भाजपा में अंतर्कलह को थामना मौजूदा पदाधिकारियों के लिए टेढ़ी खीर है, क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और संगठन मंत्री संजय कुमार गुप्ता सीधे तौर पर एक खास गुट को पोषित करने का जिम्मा उठाए हुए हैं।

फिलहाल भंग नहीं होगी विधानसभा!
सूत्रों की मानें तो हरीश सरकार ने भाजपा विधायकों को तोड़ने के लिए मास्टर प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है। एक बार फिर संसदीय कार्यमंत्री इंदिरा हृदयेश को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है। पहले भी वह सरकार को बचाने और सत्र के दौरान खास रणनीति तैयार कर कांगे्रस को गहरे संकट से उबारने में सफल रही हैं। अगली रणनीति के तहत इंदिरा ने सियासी गलियारों में उपज रही विधानसभा भंग किए जाने की गुंजाइश को सिरे से नकार दिया। उन्होंने अन्य विकल्पों पर विचार करने की बात कही और बताया कि भाजपा तो ऐसी साजिश पहले भी रच चुकी है जिसका क्या हश्र हुआ उसे पूरा प्रदेश ही नहीं देश भी देख चुका है। उन्होंने कहा कि एक चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश रचने का परिणाम केंद्र की मोदी सरकार ने भी देखा। बजट के बाबत केंद्र सरकार को दिशा निर्देश देने के लिए न्यायालय का रास्ता अभी खुला है और उस पर तैयारी भी की जा रही है। राज्यहित के मद्देनजर विकास योजनाओं को कैसे आगे बढ़ाना है, इस पर ही सरकार का ध्यान केंद्रित है। सरकार गिराने के भाजपाई मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे। कांग्रेस की इन आशंकाओं पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस का हंगामा महज लफ्फाजी है। केंद्र सरकार इस राज्य के प्रति संवेदनशील होने के साथ ही विकास के लिए तत्पर है। वह कोई भी ऐसा काम नहीं करेगी जिससे जनता का नुकसान हो। हालांकि अजय भट्ट ने कहा, हम तो चाहते हैं कि विधानसभा भंग हो और चुनाव मैदान में जाएं।